Skip to main content

कोरोना काल में सेमीकंडक्टर चिप के महत्व को दुनिया ने समझा - प्रो. सी. सी. त्रिपाठी



भोपाल। एनआईटीटीटीआर भोपाल  ऑउटसौर्सेड  सेमीकंडक्टर असेंबली एंड टेस्ट (ओसेट) के लिए स्किलिंग सेंटर प्रारम्भ करने जा रहा है। इस सेंटर में सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री से रिलेटेड हर तरह की ट्रेनिंग प्रदान की जाएगी। इस स्किल सेंटर के रोडमैप बनाने हेतु देशभर के जाने माने विशेषज्ञों ने आज एक कार्यक्रम में अपने सुझाव एवं रूपरेखा प्रस्तुत की। इस सेंटर के माध्यम से इंडस्ट्री रेडी मैनपावर तैयार की जाएगी एवं स्टूडेंट्स , टीचर्स एवं इंडस्ट्री में कार्यरत लोगों को भी ट्रेनिंग प्रदान की जाएगी। 

निटर निदेशक प्रो सी सी त्रिपाठी ने कहा कि, आज दुनिया सेमीकंडक्टर के क्षेत्र में भारत की ओर देख रही है। कोरोना काल में सेमीकंडक्टर चिप के महत्व को दुनिया ने समझा।  कोरोना काल में सेमीकंडक्टर चिप का संकट पैदा हो गया था, ग्लोबल चिप सप्लाई शॉर्टेज के कारण दुनियाभर की कंपनियों को भारी नुकसान हुआ। इसका इस्तेमाल इलेक्ट्रॉनिक प्रॉडक्ट्स, व्हीकल्स, स्मार्टफोन और दूसरे गैजेट बनाने में होता है। 

इस अवसर पर एक्सपर्ट के रूप में डॉ डी एन सिंह एवं डॉ बी आर सिंह ने सेमीकंडक्टर प्रोडक्ट , चिप मैन्युफैक्चरिंग , जॉब्स , बाजार की सुलभता , इंडस्ट्री स्टैण्डर्ड , फाइनेंसियल सस्टेनेबिलिटी , पैकेजिंग प्रोसेस , टेस्टिंग आदि विषयों पर अपने सुझाव प्रस्तुत किये। 

इस कार्यक्रम में प्रो राजेश्वरी शिवगुण्ड़े ,  प्रो आशीष देशपांडे , प्रो पी के पुरोहित, प्रो सुब्रत रॉय , प्रो ए एस वाल्के , प्रो आर पी खंबायत, प्रो अंजलि पोटनीस उपस्थित थे।

Comments

मध्यप्रदेश समाचार

देश समाचार

Popular posts from this blog

आधे अधूरे - मोहन राकेश : पाठ और समीक्षाएँ | मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे : मध्यवर्गीय जीवन के बीच स्त्री पुरुष सम्बन्धों का रूपायन

  आधे अधूरे - मोहन राकेश : पीडीएफ और समीक्षाएँ |  Adhe Adhure - Mohan Rakesh : pdf & Reviews मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा हिन्दी के बहुमुखी प्रतिभा संपन्न नाट्य लेखक और कथाकार मोहन राकेश का जन्म  8 जनवरी 1925 को अमृतसर, पंजाब में  हुआ। उन्होंने  पंजाब विश्वविद्यालय से हिन्दी और अंग्रेज़ी में एम ए उपाधि अर्जित की थी। उनकी नाट्य त्रयी -  आषाढ़ का एक दिन, लहरों के राजहंस और आधे-अधूरे भारतीय नाट्य साहित्य की उपलब्धि के रूप में मान्य हैं।   उनके उपन्यास और  कहानियों में एक निरंतर विकास मिलता है, जिससे वे आधुनिक मनुष्य की नियति के निकट से निकटतर आते गए हैं।  उनकी खूबी यह थी कि वे कथा-शिल्प के महारथी थे और उनकी भाषा में गज़ब का सधाव ही नहीं, एक शास्त्रीय अनुशासन भी है। कहानी से लेकर उपन्यास तक उनकी कथा-भूमि शहरी मध्य वर्ग है। कुछ कहानियों में भारत-विभाजन की पीड़ा बहुत सशक्त रूप में अभिव्यक्त हुई है।  मोहन राकेश की कहानियां नई कहानी को एक अपूर्व देन के रूप में स्वीकार की जाती ...

खाटू नरेश श्री श्याम बाबा की पूरी कहानी | Khatu Shyam ji | Jai Shree Shyam | Veer Barbarik Katha |

संक्षेप में श्री मोरवीनंदन श्री श्याम देव कथा ( स्कंद्पुराणोक्त - श्री वेद व्यास जी द्वारा विरचित) !! !! जय जय मोरवीनंदन, जय श्री श्याम !! !! !! खाटू वाले बाबा, जय श्री श्याम !! 'श्री मोरवीनंदन खाटू श्याम चरित्र'' एवं हम सभी श्याम प्रेमियों ' का कर्तव्य है कि श्री श्याम प्रभु खाटूवाले की सुकीर्ति एवं यश का गायन भावों के माध्यम से सभी श्री श्याम प्रेमियों के लिए करते रहे, एवं श्री मोरवीनंदन बाबा श्याम की वह शास्त्र सम्मत दिव्यकथा एवं चरित्र सभी श्री श्याम प्रेमियों तक पहुंचे, जिसे स्वयं श्री वेद व्यास जी ने स्कन्द पुराण के "माहेश्वर खंड के अंतर्गत द्वितीय उपखंड 'कौमारिक खंड'" में सुविस्तार पूर्वक बहुत ही आलौकिक ढंग से वर्णन किया है... वैसे तो, आज के इस युग में श्री मोरवीनन्दन श्यामधणी श्री खाटूवाले श्याम बाबा का नाम कौन नहीं जानता होगा... आज केवल भारत में ही नहीं अपितु समूचे विश्व के भारतीय परिवार ने श्री श्याम जी के चमत्कारों को अपने जीवन में प्रत्यक्ष रूप से देख लिया हैं.... आज पुरे भारत के सभी शहरों एवं गावों में श्री श्याम जी से सम्बंधित संस्थाओं...

दुर्गादास राठौड़ : जिण पल दुर्गो जलमियो धन बा मांझल रात - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा

अमरवीर दुर्गादास राठौड़ : जिण पल दुर्गो जलमियो धन बा मांझल रात। - प्रो शैलेन्द्रकुमार शर्मा माई ऐड़ा पूत जण, जेहड़ा दुरगादास। मार मंडासो थामियो, बिण थम्बा आकास।। आठ पहर चौसठ घड़ी घुड़ले ऊपर वास। सैल अणी हूँ सेंकतो बाटी दुर्गादास।। भारत भूमि के पुण्य प्रतापी वीरों में दुर्गादास राठौड़ (13 अगस्त 1638 – 22 नवम्बर 1718)  के नाम-रूप का स्मरण आते ही अपूर्व रोमांच भर आता है। भारतीय इतिहास का एक ऐसा अमर वीर, जो स्वदेशाभिमान और स्वाधीनता का पर्याय है, जो प्रलोभन और पलायन से परे प्रतिकार और उत्सर्ग को अपने जीवन की सार्थकता मानता है। दुर्गादास राठौड़ सही अर्थों में राष्ट्र परायणता के पूरे इतिहास में अनन्य, अनोखे हैं। इसीलिए लोक कण्ठ पर यह बार बार दोहराया जाता है कि हे माताओ! तुम्हारी कोख से दुर्गादास जैसा पुत्र जन्मे, जिसने अकेले बिना खम्भों के मात्र अपनी पगड़ी की गेंडुरी (बोझ उठाने के लिए सिर पर रखी जाने वाली गोल गद्देदार वस्तु) पर आकाश को अपने सिर पर थाम लिया था। या फिर लोक उस दुर्गादास को याद करता है, जो राजमहलों में नहीं,  वरन् आठों पहर और चौंसठ घड़ी घोड़े पर वास करता है और उस पर ही बैठकर बाट...