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एक रचनाकार आंतरिक मांग के कारण नए प्रकार के माध्यम चुनता है – डॉ प्रमोद त्रिवेदी

लेखक से संवाद कार्यक्रम में सुधी श्रोताओं ने किए तीन वरिष्ठ लेखकों से सृजन कौशल और भाषा से जुड़े सवाल 

उज्जैन। राष्ट्रीय पुस्तक मेले में मंगलवार शाम को लेखक से संवाद कार्यक्रम आयोजित किया गया। इस सत्र में प्रख्यात कवि एवं उपन्यासकार डॉ प्रमोद त्रिवेदी, वरिष्ठ कथाकार एवं पूर्व संभागायुक्त डॉ मोहन गुप्त एवं मालवी रचनाकार डॉ शिव चौरसिया, उज्जैन से उनके सृजन सरोकारों पर बातचीत की गई। अध्यक्षता महर्षि पाणिनि संस्कृत एवं वैदिक विश्वविद्यालय उज्जैन के कुलपति प्रो सी जी विजयकुमार मेनन ने की। संवाद कार्यक्रम का समन्वय विक्रम विश्वविद्यालय के आचार्य डॉ जगदीश चंद्र शर्मा ने किया।  

संवाद कार्यक्रम की शुरुआत में उपन्यासकार एवं कवि डॉ प्रमोद त्रिवेदी ने कहा कि एक रचनाकार आंतरिक मांग के कारण नए प्रकार के माध्यम चुनता है। यांत्रिक रूप में बंधे नगरीय मनुष्य से हटकर जीवंत आदमी की तलाश के लिए मैंने मालवा की पृष्ठभूमि पर केंद्रित उपन्यास हंस अकेला का सृजन किया। इसके लिए मैंने अपनी जन्मभूमि बड़नगर के परिवेश को चुना।  

डॉ मोहन गुप्त ने कहा कि रचना प्रक्रिया प्रतिभा से प्रारंभ होती है। श्रेष्ठ सृजन के लिए विशेष प्रतिभा की जरूरत होती है। राम कथा पर केंद्रित तीन उपन्यासों में मैंने तीन प्रकार की प्रशासनिक व्यवस्थाओं का चित्रण किया है। पहले उपन्यास अराज राज में राम या भरत के स्थान पर शत्रुघ्न द्वारा चलाई गई राजव्यवस्था का चित्रण किया है। दूसरे उपन्यास विराज राज में निषाद राज द्वारा एवं तीसरे उपन्यास स्वराज राज में विभीषण को शासक के रूप में प्रस्तुत किया है। कोई भी शासन व्यवस्था तभी उपयुक्त होती है जब दंड व्यवस्था प्रबल हो। वर्तमान दौर में संस्कृति के लोक कल्याणकारी पक्षों को लेकर कार्य करते रहना जरूरी है। 

डॉ शिव चौरसिया ने कहा कि जिस दौर में मैंने कविता की शुरुआत की उस समय राष्ट्रभक्ति की लहर पूरे देश में व्याप्त थी। चीन के आक्रमण के विरुद्ध कवियों ने प्रेरणा भरने वाली कविताएं लिखीं। पुरातन रूढ़ियों के विरुद्ध जनजागरण का प्रयास मालवी के रचनाकारों ने किया है। यदि बोली आज जीवित रहेगी तो राष्ट्रभाषा बचेगी। उन्होंने अपनी कविता असो मालवो है म्हारो के माध्यम से श्रोताओं को प्रभावित किया।

अध्यक्षीय उद्बोधन में महर्षि पाणिनि संस्कृत एवं वैदिक विश्वविद्यालय के  कुलपति प्रो सी जे विजयकुमार मेनन ने कहा कि भाषा और संस्कृति में परिवर्तन निरन्तर चलता रहता है। इस दौर में लोक भाषाओं के संरक्षण के लिए विशेष प्रयास किए जाने चाहिए।  

समन्वयक प्रो जगदीश चंद्र शर्मा ने सभी लेखकों के योगदान प्रकाश डाला। उन्होंने तीनों रचनाकारों की सृजन प्रेरणा, कौशल और उनके कथ्य एवं भाषा से जुड़े अनेक प्रश्न किए। संवाद कार्यक्रम में प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा, प्रो हरिमोहन बुधौलिया, डॉक्टर पिलकेंद्र अरोरा, श्रीराम दवे, डॉ देवकरण शर्मा, प्रो अशोक भाटी, डॉ उपेंद्र भार्गव, डॉ उर्मि शर्मा, श्री आर पी एस जादौन, ग्वालियर, राजेश सक्सेना, डॉ मोहन बैरागी आदि सहित अनेक शोधकर्ताओं ने भाग लिया और लेखकों से प्रश्न किए।

अतिथियों का स्वागत पुस्तक भेंट कर एनबीटी नई दिल्ली की ओर से उप निदेशक श्री मयंक सुरोलिया ने किया। इस अवसर पर बड़ी संख्या में गणमान्य नागरिक, प्रबुद्ध जन, शोधकर्ता और विद्यार्थी उपस्थित थे। स्वागत भाषण प्रो जगदीश चंद्र शर्मा ने दिया।

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