- गुरुनानक देव जी के संदेशों को आत्मसात करते हुए सिक्ख मानवता की रक्षा के लिए निर्मित हुए हैं – श्री सुरेंद्रसिंह अरोरा
- सदैव प्रकाश देते रहेंगे गुरुनानक देव जी के विचार – कुलपति प्रो पांडेय
- श्री गुरु नानक देव जी की वाणी और विश्व – आध्यात्मिकता पर केंद्रित राष्ट्रीय संगोष्ठी सम्पन्न
- श्री गुरुनानक प्रकाश पर्व पर विक्रम विश्वविद्यालय में हुआ राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन
उज्जैन । विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन की हिंदी अध्ययनशाला, गुरुनानक अध्ययन पीठ एवं ललित कला अध्ययनशाला द्वारा श्री गुरुनानक देव जी के प्रकाश पर्व के अवसर पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन कुलपति प्रो अखिलेश कुमार पांडेय की अध्यक्षता में सम्पन्न हुआ। आयोजन के मुख्य अतिथि जत्थेदार सरदार श्री सुरेंद्रसिंह जी अरोरा, सरदार श्री सुरेंद्र सिंह जी नारंग, संभागीय प्रवक्ता, सिख समाज, सरदार श्री सुरजीत सिंह जी डंग, संभागीय अध्यक्ष, मध्य प्रदेश - छत्तीसगढ़ केंद्रीय श्री गुरु सिंघ सभा, विश्वविद्यालय के कुलानुशासक एवं हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा, सरदार श्री कंवलदीप सिंह ठकराल, प्रो जगदीश चंद्र शर्मा ने गुरु नानक वाणी के वैश्विक योगदान पर विचार व्यक्त किए। 25 नवम्बर, शनिवार की दोपहर में विक्रम विश्वविद्यालय के वाग्देवी भवन में हुई यह संगोष्ठी श्री गुरु नानक देव जी की वाणी और विश्व – आध्यात्मिकता पर केंद्रित थी।
अपने प्रभावी उद्बोधन में सिक्ख समाज के जत्थेदार सरदार श्री सुरेंद्रसिंह अरोरा ने कहा कि गुरुनानक देव जी के संदेशों को आत्मसात करते हुए सिक्ख मानवता की रक्षा के लिए निर्मित हुए हैं और वे मानवता के लिए मिटने को भी तैयार रहते हैं। हमारी वजह से दूसरे मुसकुराएँ ऐसे कार्य हमें करने चाहिए। सिक्ख जन मानते हैं कि दूसरे के लिए मरने का आनंद ही परमानंद है। मातृभूमि और मानवता के लिए प्राण देना सिक्ख समाज अपना कर्तव्य समझता है। सिक्खों के लिए गुरु ग्रंथ साहिब से बड़ा कुछ नहीं है। गुरु ग्रंथ साहिब को देहधारी गुरु माना जाता है। उसमें गुरु के उपदेश हैं, जिनके महत्व को पूरी दुनिया जानती - समझती है। लंगर की प्रथा समता का प्रतीक है। सिख पंथ में जाति प्रथा के लिए कोई स्थान नहीं है।
अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो अखिलेश कुमार पांडेय ने कहा कि गुरु नानक देव जी का योगदान बहुआयामी है। उन्होंने विपरीत परिस्थितियों के बीच समाज के नवनिर्माण की दिशा दी। भारत के विकास में अध्यात्म मूल आधार में है। गुरु नानक जी के विचार सदैव प्रकाश देते रहेंगे। नए भारतवर्ष के निर्माण में सिख समुदाय का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। उनके पीछे गुरु नानक देव जी की प्रेरणा निरंतर कार्य कर रही है।
कुलानुशासक प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा ने कहा कि धर्म और अध्यात्म की सार्वभौमिकता को गुरु नानक देव जी ने नए सिरे से प्रतिष्ठित किया। गुरुनानक जी आत्मा हैं तो सिख धर्म उनका शरीर। अनेक सदियों से सांस्कृतिक, सामाजिक और राजनीतिक क्षेत्र में व्याप्त अंधकार को समाप्त कर उन्होंने उजाला फैलाया था। गुरुनानक देव जी का मार्ग पलायन और निष्कर्म का नहीं, दायित्वबोध का मार्ग है। संन्यास लेने भर से मुक्ति नहीं मिलती, वह तो स्वभाव की प्राप्ति से ही सम्भव है। गुरुनानक जी का सन्देश है कि स्वयं को पहचाने बगैर भ्रम की काई नहीं मिटेगी।
विशिष्ट अतिथि सरदार श्री सुरेंद्र सिंह नारंग ने कहा कि श्री गुरुनानक देव जी की वाणी मानवीय शख्सियत को अंदर और बाहर से रोशन कर देती है। आध्यात्मिकता अपने मूल रूप में मानव के जीवन- आदर्श की पूर्णता के लिए सहायक होती है। श्री गुरु नानक देव जी के अनुभव में आया सत्य, एकता और अखंडता का सूचक है। इसकी निर्मलता, पवित्रता और आत्म सत्य विश्व धर्मों के साथ सांझी हैl उनकी वाणी आध्यात्मिकता के क्षेत्र में ऐसा अमृतमय चश्मा है जिससे कोई भी आस्थावान जिज्ञासु अपनी तृप्ति कर सकता है। गुरु नानक देव जी ने जिस धर्म की स्थापना की, वह अपने बुनियादी रूप में आध्यात्मिकता पर आधारित हैl
विशिष्ट वक्ता सरदार श्री कंवलदीप सिंह ठकराल ने कहा कि संपूर्ण दुनिया को आध्यात्मिक शिक्षा भारतवर्ष ने दी है। उसका निचोड़ गुरु नानक देव जी ने शबद के माध्यम से दिया। आध्यात्मिक सत्ता की प्राप्ति शब्द के माध्यम से संभव है। निर्गुण भक्ति धारा में शब्द के माध्यम से ही भक्ति की जाती है। व्यक्ति ईश्वर के साथ कैसे जुड़े, इसके लिए गुरु नानक जी ने सामान्य जन की वाणी को महत्व दिया। विश्व अध्यात्म को उनकी देन अविस्मरणीय है।
कार्यक्रम में मंचासीन अतिथियों को मौक्तिक माल एवं पुस्तकें अर्पित कर उनका सम्मान किया गया। प्रारंभ में अतिथियों और उपस्थित जनों ने वाग्देवी के पूजन के साथ गुरु नानक देव जी के चित्र पर माल्यार्पण एवं पुष्पांजलि अर्पित की।
इस महत्वपूर्ण आयोजन में आईक्यूएसी के डायरेक्टर प्रो डी डी बेदिया, डॉ शैलेंद्र भारल, डॉ गणपत अहिरवार, डॉ प्रतिष्ठा शर्मा, डॉ एल एन सिंहरोडिया, डॉ आशीष मेहता, डॉ नेहा माथुर, डॉ रुचिका खंडेलवाल, डॉ महिमा मरमट आदि सहित अनेक शिक्षक, शोधार्थी एवं विद्यार्थियों की बड़ी संख्या में गरिमामयी उपस्थिति रही।
संचालक ललित कला अध्ययनशाला के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर जगदीश चंद्र शर्मा ने किया। आभार प्रदर्शन शोधार्थी पूजा परमार ने किया।
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