भारत मात्र धर्म, दर्शन, तत्वज्ञान एवं श्रेष्ठ जीवन मूल्यों में ही नहीं, अपितु ज्ञान, विज्ञान, कला, कौशल में भी अग्रणी रहा है - कुलपति प्रोफेसर अखिलेश कुमार पाण्डेय
कुलपति प्रो पांडेय ने प्राचीन भारत में ज्ञान विज्ञान की परंपरा पर विशिष्ट व्याख्यान दिया
विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन के कुलपति प्रोफेसर अखिलेश कुमार पाण्डेय ने दिनांक 28 नवंबर को भोपाल के शासकीय हमीदिया कला एवं वाणिज्य महाविद्यालय में प्राचीन भारत में ज्ञान विज्ञान की परंपरा विषय पर विशिष्ट व्याख्यान दिया
उज्जैन। दिनांक 28 नवंबर को विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के कुलपति प्रोफेसर अखिलेश कुमार पाण्डेय द्वारा भोपाल के शासकीय हमीदिया कला एवं वाणिज्य महाविद्यालय में प्राचीन भारत में ज्ञान विज्ञान की परंपरा विषय पर विशिष्ट व्याख्यान दिया गया। विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए माननीय कुलपति जी ने कहा कि भारत में ज्ञान विज्ञान की परंपरा प्राचीन काल से रही है। भारत उपासना पंथों की भूमि, मानव जाति का पालक, भाषा की जन्म भूमि, इतिहास की माता, पुराणों की दादी एवं परंपरा की परदादी है।
उन्होंने कहा कि मनुष्य के इतिहास में जो भी मूल्यवान एवं सृजनशील सामग्री है, उसका भंडार अकेले भारत में ही है। अपनी बात को बढ़ाते हुए माननीय कुलपति जी ने कहा कि इतिहास में भारत मात्र धर्म, दर्शन, तत्वज्ञान एवं श्रेष्ठ जीवन मूल्यों में ही नहीं अपितु ज्ञान, विज्ञान, कला, कौशल में भी अग्रणी रहा है।
भारतीय ज्ञान विज्ञान परंपरा के बारे में विस्तार से चर्चा करते हुए बताया कि भारत के ऋषि ज्ञान, विज्ञान के क्षेत्र में निपुण रहे हैं। उन्होंने कहा कि भगवान शिव विश्व के सबसे अच्छे और पहले पर्यावरण विशेषज्ञ थे, उन्होंने जटा में गंगा धारण कर पर्यावरण संरक्षण का उदाहरण स्थापित किया था, उनके परिवार में विभिन्न प्रजातियों के प्राणी वास करते थे और इसीलिए उनका परिवार जैव विविधता का उपयुक्त उदाहरण था। उन्होंने अपने वक्तव्य में प्राचीन भारतीय ऋषि एवं वैज्ञानिकों की खोज जैसे आर्यभट्ट, बोधायन, आर्यभट, ब्रह्मगुप्त, वराहमिहिर, ऋषि भारद्वाज, कणाद, नागार्जुन, धन्वंतरि, सुश्रुत एवं ऋषि अगस्त्य जैसे ऋषियों की खोज पर प्रकाश डाला।
माननीय कुलपति जी ने अपने संबोधन में बताया कि भारत में प्राचीन काल से ही अंग प्रत्यारोपण, क्लोनिंग, कृत्रिम निषेचन, सरोगेसी, प्लास्टिक सर्जरी आदि का प्रचलन रहा है। उन्होंने बताया कि भारतीय धार्मिक ग्रन्थ आदि में भी इसके प्रमाण है जैसे पृथ्वी और सूर्य की दूरी 17 वीं शताब्दी में वैज्ञानिकों ने बताई किंतु 15 वी शताब्दी मे ही तुलसीदास जी ने हनुमान चालीसा में इसका उल्लेख किया है। विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए माननीय कुलपति जी ने कहा कि आज की पीढ़ी अगर हमारे ग्रंथों से सीख ले तो बहुत कुछ सीख सकती है, और भारत को फिर विश्वगुरु बनाने में अहम भूमिका निभा सकती है।
विक्रम विश्वविद्यालय के कुलानुशासक प्रोफेसर शैलेंद्र कुमार शर्मा ने इस महत्वपूर्ण व्याख्यान के लिए कुलपति जी को बधाई दी।
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