Skip to main content

ओपन अंडर 15 शतरंज प्रतियोगिता सम्पन्न

उज्जैन। मध्यप्रदेश शतरंज संघ के तत्वाधान में उज्जैन डिस्ट्रिक्ट चेस कॉर्पोरेशन एसोसिएशन के द्वारा आयोजित नटखट ओपन अंडर 15 शतरंज स्पर्धा का शुभारंभ नगर निगम सभापति श्रीमती कलावती यादव  के मुख्य आतिथ्य एवं अ. भा. क्षत्रिय महासभा के राष्ट्रीय महामंत्री एवं विक्रम विश्वविद्यालय कार्य परिषद के सदस्य राजेश सिंह कुशवाह के विशेष आतिथ्य में व पार्षद प्रतिनिधि सुनील चावंड, बालकृष्ण पटेल के आतिथ्य में सरस्वती वंदना एवं दीप प्रज्वलन के साथ संपन्न हुआ।

स्पर्धा के मुख्य निर्णायक नीरज सिंह कुशवाह के साथ ही भोपाल के अनिल श्रीवास्तव, ललित पाटीदार, इंदौर के नितेश जैन, उज्जैन के मोहित यादव, शिवम जोशी, समर शिप्रे एवं एवं राजस बागदरे ने निर्णायक के रूप में स्पर्धा निर्विवाद संपन्न करवाई।

सात चक्र में संपन्न स्पर्धा का प्रथम चक्र बड़े उलट फेर के साथ प्रारंभ हुआ। 

  1. प्रथम वरीयता प्राप्त आनंद सिंह कुशवाह को 49वी वरीयता प्राप्त प्रत्यूष महाजन ने मात देकर सनसनी मचा दी।
  2. द्वितीय चक्र में प्रत्युष महाजन  तीसरी वरीयता प्राप्त इंदौर के अर्थ तपड़िया के साथ मैच में बराबरी पर रहे।
  3. तृतीय चक्र में उज्जैन के आशय जैन ने पांचवीं वरीयता प्राप्त कविन कपूर को बराबरी पर रोका।
  4. चतुर्थ चक्र में देवास के नवल निमा ने चौथी वरीयता प्राप्त इंदौर के दर्शील अय्यर को बराबरी पर रोका, वही उज्जैन की प्रावि सिंह तोमर ने तीन चक्र में ढाई अंक बनाने वाले प्रत्यूष महाजन को बड़ी आसानी से आक्रामक रुख अपनाते हुए मात दी।
  5. पांचवें चक्र में सिया नीरज कुशवाहा ने नवल नीमा को, स्वरा सूर्या ने शौर्य वीर सिंह शेखावत को वहीं अर्थ तपाड़िया ने संघर्ष पूर्ण मुकाबले में आशय जैन को हराया।
  6. छठे चक्र में छठी वरीयता प्राप्त स्वरा सूर्या ने दूसरी वरीयता प्राप्त सिया नीरज कुशवाह को हराकर स्पर्धा में 6 अंकों के साथ एकल बढ़त बनाई वहीं अर्थ तापड़िया ने दर्शील अय्यर को हराकर दूसरा स्थान सुनिश्चित किया।
  7. सातवें चक्र में स्वरा सूर्या के साथ संघर्षपूर्ण मुकाबले में अर्थ तपाड़िया ने अंत खेल में भारी भूल करते हुए बाज़ी गवा दी।

अंतिम परिणाम इस प्रकार रहे

  • अंडर 15 आयु वर्ग में प्रथम स्वरा सूर्या, द्वितीय सिया नीरज कुशवाह, तृतीय आनंद सिंह कुशवाह, चतुर्थ कविन कपूर, पांचवा अर्थ तपाड़िया, छठा नैतिक परमार, सातवां शौर्य वीर सिंह शेखावत, आठवां नवल नीमा, नवां वैदिक मोहिते एवं दसवां स्थान दर्शील अय्यर ने प्राप्त किया।
  • बालिका वर्ग में प्रथम प्रावी सिंह तोमर, द्वितीय श्रेया सिन्नरकर एवं तृतीय स्थान अनुषा दीवी तिवारी ने प्राप्त किया।
  • अंडर 11 आयु वर्ग में प्रथम द्विषा कुलकर्णी, द्वितीय पार्थ शर्मा एवं तृतीय स्थान कुंश अग्रवाल ने प्राप्त किया।
  • अंडर 9 आयु वर्ग में प्रथम दक्षित सोडाणी, द्वितीय अपार मकवाना एवं तृतीय स्थान शुश्रित गोपीशेट्टी ने प्राप्त किया।
  • अंडर 7 आयु वर्ग में प्रथम अविक अग्रवाल, द्वितीय लिपिका माहेश्वरी एवं तृतीय स्थान फाल्गुन पांडे ने प्राप्त किया।
  • वही सबसे कम उम्र का खिताब रूतवी कुलकर्णी ने बालिका वर्ग एवं पन्नव अग्रवाल ने बालक वर्ग में अपने नाम किया।

पुरस्कार वितरण के मुख्य अतिथि भाजपा जिला उपाध्यक्ष आनंद सिंह खींची, विशेष अतिथि कमलेश बेरवा पूर्व पार्षद, आयोजन अध्यक्ष प्रतीक सिंह तोमर, आयोजन निर्देशक रश्मि जैन एवं कोषाध्यक्ष डॉ दीपाली कुलकर्णी के द्वारा संपन्न हुआ।

कार्यक्रम का संचालन डॉ विभा सिंह तोमर ने किया व आभार सहसचिव रोहित परमार ने व्यक्त किया। जानकारी आयोजन सचिव श्रीमती रुपेश कुमारी कुशवाह ने दी।

Comments

मध्यप्रदेश समाचार

देश समाचार

Popular posts from this blog

आधे अधूरे - मोहन राकेश : पाठ और समीक्षाएँ | मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे : मध्यवर्गीय जीवन के बीच स्त्री पुरुष सम्बन्धों का रूपायन

  आधे अधूरे - मोहन राकेश : पीडीएफ और समीक्षाएँ |  Adhe Adhure - Mohan Rakesh : pdf & Reviews मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा हिन्दी के बहुमुखी प्रतिभा संपन्न नाट्य लेखक और कथाकार मोहन राकेश का जन्म  8 जनवरी 1925 को अमृतसर, पंजाब में  हुआ। उन्होंने  पंजाब विश्वविद्यालय से हिन्दी और अंग्रेज़ी में एम ए उपाधि अर्जित की थी। उनकी नाट्य त्रयी -  आषाढ़ का एक दिन, लहरों के राजहंस और आधे-अधूरे भारतीय नाट्य साहित्य की उपलब्धि के रूप में मान्य हैं।   उनके उपन्यास और  कहानियों में एक निरंतर विकास मिलता है, जिससे वे आधुनिक मनुष्य की नियति के निकट से निकटतर आते गए हैं।  उनकी खूबी यह थी कि वे कथा-शिल्प के महारथी थे और उनकी भाषा में गज़ब का सधाव ही नहीं, एक शास्त्रीय अनुशासन भी है। कहानी से लेकर उपन्यास तक उनकी कथा-भूमि शहरी मध्य वर्ग है। कुछ कहानियों में भारत-विभाजन की पीड़ा बहुत सशक्त रूप में अभिव्यक्त हुई है।  मोहन राकेश की कहानियां नई कहानी को एक अपूर्व देन के रूप में स्वीकार की जाती ...

खाटू नरेश श्री श्याम बाबा की पूरी कहानी | Khatu Shyam ji | Jai Shree Shyam | Veer Barbarik Katha |

संक्षेप में श्री मोरवीनंदन श्री श्याम देव कथा ( स्कंद्पुराणोक्त - श्री वेद व्यास जी द्वारा विरचित) !! !! जय जय मोरवीनंदन, जय श्री श्याम !! !! !! खाटू वाले बाबा, जय श्री श्याम !! 'श्री मोरवीनंदन खाटू श्याम चरित्र'' एवं हम सभी श्याम प्रेमियों ' का कर्तव्य है कि श्री श्याम प्रभु खाटूवाले की सुकीर्ति एवं यश का गायन भावों के माध्यम से सभी श्री श्याम प्रेमियों के लिए करते रहे, एवं श्री मोरवीनंदन बाबा श्याम की वह शास्त्र सम्मत दिव्यकथा एवं चरित्र सभी श्री श्याम प्रेमियों तक पहुंचे, जिसे स्वयं श्री वेद व्यास जी ने स्कन्द पुराण के "माहेश्वर खंड के अंतर्गत द्वितीय उपखंड 'कौमारिक खंड'" में सुविस्तार पूर्वक बहुत ही आलौकिक ढंग से वर्णन किया है... वैसे तो, आज के इस युग में श्री मोरवीनन्दन श्यामधणी श्री खाटूवाले श्याम बाबा का नाम कौन नहीं जानता होगा... आज केवल भारत में ही नहीं अपितु समूचे विश्व के भारतीय परिवार ने श्री श्याम जी के चमत्कारों को अपने जीवन में प्रत्यक्ष रूप से देख लिया हैं.... आज पुरे भारत के सभी शहरों एवं गावों में श्री श्याम जी से सम्बंधित संस्थाओं...

दुर्गादास राठौड़ : जिण पल दुर्गो जलमियो धन बा मांझल रात - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा

अमरवीर दुर्गादास राठौड़ : जिण पल दुर्गो जलमियो धन बा मांझल रात। - प्रो शैलेन्द्रकुमार शर्मा माई ऐड़ा पूत जण, जेहड़ा दुरगादास। मार मंडासो थामियो, बिण थम्बा आकास।। आठ पहर चौसठ घड़ी घुड़ले ऊपर वास। सैल अणी हूँ सेंकतो बाटी दुर्गादास।। भारत भूमि के पुण्य प्रतापी वीरों में दुर्गादास राठौड़ (13 अगस्त 1638 – 22 नवम्बर 1718)  के नाम-रूप का स्मरण आते ही अपूर्व रोमांच भर आता है। भारतीय इतिहास का एक ऐसा अमर वीर, जो स्वदेशाभिमान और स्वाधीनता का पर्याय है, जो प्रलोभन और पलायन से परे प्रतिकार और उत्सर्ग को अपने जीवन की सार्थकता मानता है। दुर्गादास राठौड़ सही अर्थों में राष्ट्र परायणता के पूरे इतिहास में अनन्य, अनोखे हैं। इसीलिए लोक कण्ठ पर यह बार बार दोहराया जाता है कि हे माताओ! तुम्हारी कोख से दुर्गादास जैसा पुत्र जन्मे, जिसने अकेले बिना खम्भों के मात्र अपनी पगड़ी की गेंडुरी (बोझ उठाने के लिए सिर पर रखी जाने वाली गोल गद्देदार वस्तु) पर आकाश को अपने सिर पर थाम लिया था। या फिर लोक उस दुर्गादास को याद करता है, जो राजमहलों में नहीं,  वरन् आठों पहर और चौंसठ घड़ी घोड़े पर वास करता है और उस पर ही बैठकर बाट...