अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस पर हुआ विक्रम विश्वविद्यालय के वाग्देवी भवन में मेरी मातृभाषा, मेरा स्वाभिमान पर केंद्रित विशिष्ट परिसंवाद और व्याख्यान सत्र
मातृभाषा के माध्यम से व्यक्तित्व विकास पर केंद्रित भाषण प्रतियोगिता सम्पन्न, लोक संस्कृति पर केंद्रित चित्रों की प्रस्तुति की ललित कला के विद्यार्थियों ने
उज्जैन। अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के अवसर पर 21 फरवरी को विक्रम विश्वविद्यालय के वाग्देवी भवन में हिंदी अध्ययनशाला, विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन, शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास, नई दिल्ली एवं बैंक ऑफ बड़ौदा के संयुक्त तत्वावधान में अंतरराष्ट्रीय परिसंवाद एवं व्याख्यान सत्र आयोजित किया गया। सह आयोजन विश्वविद्यालय की ललित कला अध्ययनशाला एवं पत्रकारिता और जनसंचार अध्ययनशाला ने किया। कुलपति प्रो अखिलेश कुमार पांडेय की अध्यक्षता में बुधवार को दोपहर में मेरी मातृभाषा, मेरा स्वाभिमान पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय परिसंवाद एवं व्याख्यान सत्र का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि रासेयो के पूर्व समन्वयक प्रो राममोहन शुक्ला, बैंक ऑफ बड़ौदा, भोपाल के मुख्य प्रबन्धक, राजभाषा श्री चंदन कुमार वर्मा, विभागाध्यक्ष एवं कुलानुशासक प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा, प्रो गीता नायक, प्रो जगदीश चंद्र शर्मा, डॉ प्रतिष्ठा शर्मा आदि ने विषय के विभिन्न पक्षों पर प्रकाश डाला।
इस अवसर पर बैंक ऑफ बड़ौदा, अंचल कार्यालय, भोपाल के सौजन्य से विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के विद्यार्थियों के लिए 'मातृभाषा के माध्यम से व्यक्तित्व विकास' पर केंद्रित ऑनलाइन भाषण प्रतियोगिता आयोजित की गई, जिसमें विभिन्न अध्ययनशालाओं के विद्यार्थियों ने भाग लिया।
कुलपति प्रोफेसर अखिलेश कुमार पांडेय ने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि मातृभाषा के माध्यम से समुचित प्रगति संभव है। मातृभाषा से आत्मीयता प्रकट होती है, वह हमें आत्मविश्वास देती है। भारत एक बहुभाषी देश है जो इसकी विशेषता है। विश्व के सभी समृद्ध देशों में शोध कार्य उनकी अपनी मातृभाषा के माध्यम से हो रहा है। प्रत्येक व्यक्ति को अपनी मातृभाषा पर गर्व होना चाहिए। विक्रम विश्वविद्यालय की अपनी सांस्कृतिक पहचान है। इससे जुड़ा स्वाभिमान का भाव विद्यार्थियों में होना चाहिए।
पूर्व रासेयो समन्वयक डॉ राममोहन शुक्ला ने कहा कि विज्ञान और तकनीकी के क्षेत्र में हमने व्यापक उन्नति कर ली है। इसके बावजूद वर्तमान दौर में मातृभाषा का महत्व फिर से सिद्ध हो रहा है। सबसे पहले बच्चे और मां के संपर्क से मातृभाषा विकसित हुई है। मातृभाषा में मां के भाव छुपे होते हैं। प्राथमिक शिक्षा मातृभाषा के माध्यम से दी जानी चाहिए।
विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के कुलानुशासक प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि मातृभाषा बौद्धिक क्षमता और मानसिक शक्ति का हिस्सा है। सीखने के साथ मौलिक चिंतन मातृभाषा में ही सम्भव है। मातृभाषा को मनुष्य स्वाभाविक रूप से जन्म से अर्जित करता है। यह बच्चे को उसके मानसिक, नैतिक और भावनात्मक विकास में मदद करती है। संसार की प्रत्येक मातृभाषा में अपने बोलने वालों की अभिव्यक्ति की आवश्यकताओं को पूरा करने की स्वाभाविक क्षमता होती है।
बैंक ऑफ़ बड़ौदा, अंचल कार्यालय के वरिष्ठ प्रबंधक राजभाषा श्री चंदन कुमार वर्मा ने कहा कि अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस अपनी अपनी मातृभाषा के लिए समर्पित बलिदानियों का स्मरण दिलाता है। भाषा का जीवन में सर्वोपरि महत्व है। जीवन में संस्कारों का अर्जन मातृभाषा में ही संभव है। हमें गुलामी की मानसिकता से मुक्त होना होगा।
प्रोफ़ेसर गीता नायक ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति में मातृभाषा को विशेष महत्व मिला है। हम लोग अपने परिवार में संवाद की भाषा को महत्व दें। भाषा व्यक्तित्व की पहचान होती है। विलुप्ति के कगार पर पहुंची मातृ भाषाओं की रक्षा अत्यंत आवश्यक है।
प्रारम्भ में डॉक्टर मोहन बैरागी ने कपास कातकर वह डोरिया बना रहा गीत की प्रस्तुति की। इस अवसर पर ललित कला अध्ययनशाला के विद्यार्थियों ने विभिन्न चित्र कृतियों के माध्यम से लोक संस्कृति और परंपराओं की प्रस्तुति की।
विक्रम विश्वविद्यालय को पीएम उषा योजना के अंतर्गत एक सौ करोड़ के अनुदान की घोषणा के लिए कुलपति प्रो अखिलेश कुमार पांडेय को शॉल एवं पुष्पमाला अर्पित कर उनका सम्मान किया गया। परिसंवाद में प्रोफेसर उमा शर्मा, प्रोफेसर बी के आआंजना, डॉक्टर प्रतिष्ठा शर्मा, डॉ अजय शर्मा, डॉ महिमा मरमट, डॉक्टर हीना तिवारी आदि ने सहभागिता की।
भाषण प्रतियोगिता में भाग लेने वाले विद्यार्थियों में मोहम्मद अब्दुल लतीफ, सूडान, पूर्वा सिंह, मोहन सिंह तोमर, गोपाल गर्वित, कर्णगी ठाकुर, भूपेंद्र सिंह सिसौदिया, झलक शिकारी आदि सम्मिलित हुए। इसके विजेताओं को बैंक ऑफ बड़ौदा द्वारा पुरस्कृत किया जाएगा। इस महत्वपूर्ण आयोजन में अनेक प्रबुद्धजनों, शिक्षकों और विद्यार्थियों ने भाग लिया।
कार्यक्रम का संचालन प्रोफेसर जगदीश चंद्र शर्मा ने किया आभार प्रदर्शन डॉ अजय शर्मा ने किया।
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