Skip to main content

भारतीय ज्ञान परंपरा के विविध संदर्भ पर हुई दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला

वनस्पति विज्ञान का प्रचलन भारत में वैदिक काल से, विश्व के प्रथम विनस्पति शास्त्री और विष वैज्ञानिक थे भगवान शिव - कुलपति प्रो पाण्डेय

उज्जैन। भारतीय ज्ञान परंपरा के विविध संदर्भ पर दो दिवसीय कार्यशाला का आयोजन मध्यप्रदेश शासन उच्च शिक्षा विभाग एवं मध्यप्रदेश हिंदी ग्रंथ अकादमी द्वारा दिनांक 27 और 28 फरवरी 2024 को शासकीय सरोजिनी नायडू कन्या स्नातकोत्तर महाविद्यालय, भोपाल में हुआ, जिसमें विक्रम विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो अखिलेश कुमार पांडेय ने वनस्पति विज्ञान एवं कुलानुशासक प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा ने हिंदी साहित्य विषय पर केंद्रित सत्रों में व्याख्यान दिए। उनके साथ ही अनेक शिक्षाविदों ने भाग लिया। 

भारतीय ज्ञान परंपरा के विविध संदर्भ पर दो दिवसीय कार्यशाला का आयोजन दिनांक 27 और 28 फरवरी 2024 को शासकीय सरोजिनी नायडू कन्या स्नातकोत्तर महाविद्यालय, भोपाल में हुआ। कार्यक्रम का शुभारंभ दिनांक 27 फरवरी 2024 को प्रातः 10:00 बजे शासकीय सरोजिनी नायडू कन्या स्नातकोत्तर महाविद्यालय के मुख्य सभागृह में हुआ। कार्यक्रम की अध्यक्षता मध्यप्रदेश के माननीय राज्यपाल श्री मंगुभाई पटेल ने की। मुख्य अतिथि प्रदेश के माननीय मुख्यमंत्री डॉक्टर मोहन यादव थे।  विशिष्ट अतिथि प्रदेश के माननीय उच्च शिक्षा मंत्री श्री इंदरसिंह परमार, शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास, नई दिल्ली के अध्यक्ष श्री अतुल कोठारी एवं अकादमी के संचालक श्री अशोक कड़ेल सम्मिलित हुए। इस अवसर पर विभिन्न विषय के विशेषज्ञों ने अपने-अपने विषय पर भारतीय ज्ञान परंपरा के दृष्टिकोण पर चर्चा की। 

विक्रम विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर अखिलेश कुमार पाण्डेय ने भारतीय ज्ञान परंपरा में वनस्पति विज्ञान विषय पर अपना संबोधन दिया। इस विषय पर अपने विचार व्यक्त करते हुए माननीय कुलपति जी ने कहा कि भारत में वनस्पति शास्त्र का ज्ञान वैदिक काल से है। वेदों के अनुसार भगवान शिव को विश्व का प्रथम वनस्पति शास्त्री और विषविज्ञानी माना गया है। अपनी बात को बढ़ाते हुए उन्होंने बताया कि आयुर्वेद का जिक्र वेदों में मिलता है साथ ही वेदों में कई औषधीय पौधों का वर्णन है। वही दूसरी ओर प्राचीन ग्रन्थों में चरक और सुश्रुत द्वारा वनस्पतियों का वर्गीकरण भी वर्णित है। अपनी बात को समझते हुए माननीय कुलपति जी ने कहा कि वनस्पति विज्ञान के क्षेत्र में भारत बहुत अग्रणी रहा है। जब दुनिया को सूचक पौधों के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी, तभी वराहमिहिर ने पानी के सूचक पौधों के बारे में, उपरोहण अर्थात् ग्राफ्टिंग जैसी तकनीकों के बारे में समझाया था। माननीय कुलपति जी ने कहा कि आज की पीढ़ी को इन बातों का ज्ञान दिया जाना आवश्यक है ल। अतः इन सभी विषयों को वनस्पति विज्ञान के पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है। 

इस अवसर पर विक्रम विश्वविद्यालय के कुलानुशासक प्रो शैलेन्द्र कुमार शर्मा ने हिंदी भाषा एवं साहित्य में भारतीय ज्ञान परम्परा के समावेश पर केंद्रित सत्र में विषय विशेषज्ञ के रूप में व्याख्यान दिया। उन्होंने अपने व्याख्यान में कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा सनातन ज्ञान और प्रज्ञा का प्रतीक है, जिसमें ज्ञान और विज्ञान, लौकिक और आध्यात्मिक तथा भोग और त्याग का अद्भुत समन्वय है। साहित्य के पाठ्यक्रम में संवेदना के विकास के साथ लिपि और भाषा के क्षेत्र में भारत के अविस्मरणीय योगदान का समावेश किया जाना आवश्यक है। प्राचीन समय से ही शिक्षा प्रणाली जीवन के नैतिक, भौतिक, आध्यात्मिक और बौद्धिक मूल्यों पर केंद्रित होकर विनम्रता, सत्य, अनुशासन, आत्मनिर्भरता और सभी के लिए सम्मान जैसे मूल्यों पर बल देती थी।  भारत में विद्या को मनुष्यता की श्रेष्ठता का आधार माना गया है।

कार्यशाला के विभिन्न सत्रों में उज्जैन से पूर्व डीएसडब्ल्यू प्रो राकेश ढंड, विद्यार्थी संकायाध्यक्ष प्रोफेसर एस के मिश्रा, प्रो प्रेमलता चुटैल, प्रो गीता नायक, प्रो डी डी बेदिया आदि सम्मिलित हुए।

Comments

मध्यप्रदेश समाचार

देश समाचार

Popular posts from this blog

आधे अधूरे - मोहन राकेश : पाठ और समीक्षाएँ | मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे : मध्यवर्गीय जीवन के बीच स्त्री पुरुष सम्बन्धों का रूपायन

  आधे अधूरे - मोहन राकेश : पीडीएफ और समीक्षाएँ |  Adhe Adhure - Mohan Rakesh : pdf & Reviews मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा हिन्दी के बहुमुखी प्रतिभा संपन्न नाट्य लेखक और कथाकार मोहन राकेश का जन्म  8 जनवरी 1925 को अमृतसर, पंजाब में  हुआ। उन्होंने  पंजाब विश्वविद्यालय से हिन्दी और अंग्रेज़ी में एम ए उपाधि अर्जित की थी। उनकी नाट्य त्रयी -  आषाढ़ का एक दिन, लहरों के राजहंस और आधे-अधूरे भारतीय नाट्य साहित्य की उपलब्धि के रूप में मान्य हैं।   उनके उपन्यास और  कहानियों में एक निरंतर विकास मिलता है, जिससे वे आधुनिक मनुष्य की नियति के निकट से निकटतर आते गए हैं।  उनकी खूबी यह थी कि वे कथा-शिल्प के महारथी थे और उनकी भाषा में गज़ब का सधाव ही नहीं, एक शास्त्रीय अनुशासन भी है। कहानी से लेकर उपन्यास तक उनकी कथा-भूमि शहरी मध्य वर्ग है। कुछ कहानियों में भारत-विभाजन की पीड़ा बहुत सशक्त रूप में अभिव्यक्त हुई है।  मोहन राकेश की कहानियां नई कहानी को एक अपूर्व देन के रूप में स्वीकार की जाती ...

खाटू नरेश श्री श्याम बाबा की पूरी कहानी | Khatu Shyam ji | Jai Shree Shyam | Veer Barbarik Katha |

संक्षेप में श्री मोरवीनंदन श्री श्याम देव कथा ( स्कंद्पुराणोक्त - श्री वेद व्यास जी द्वारा विरचित) !! !! जय जय मोरवीनंदन, जय श्री श्याम !! !! !! खाटू वाले बाबा, जय श्री श्याम !! 'श्री मोरवीनंदन खाटू श्याम चरित्र'' एवं हम सभी श्याम प्रेमियों ' का कर्तव्य है कि श्री श्याम प्रभु खाटूवाले की सुकीर्ति एवं यश का गायन भावों के माध्यम से सभी श्री श्याम प्रेमियों के लिए करते रहे, एवं श्री मोरवीनंदन बाबा श्याम की वह शास्त्र सम्मत दिव्यकथा एवं चरित्र सभी श्री श्याम प्रेमियों तक पहुंचे, जिसे स्वयं श्री वेद व्यास जी ने स्कन्द पुराण के "माहेश्वर खंड के अंतर्गत द्वितीय उपखंड 'कौमारिक खंड'" में सुविस्तार पूर्वक बहुत ही आलौकिक ढंग से वर्णन किया है... वैसे तो, आज के इस युग में श्री मोरवीनन्दन श्यामधणी श्री खाटूवाले श्याम बाबा का नाम कौन नहीं जानता होगा... आज केवल भारत में ही नहीं अपितु समूचे विश्व के भारतीय परिवार ने श्री श्याम जी के चमत्कारों को अपने जीवन में प्रत्यक्ष रूप से देख लिया हैं.... आज पुरे भारत के सभी शहरों एवं गावों में श्री श्याम जी से सम्बंधित संस्थाओं...

दुर्गादास राठौड़ : जिण पल दुर्गो जलमियो धन बा मांझल रात - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा

अमरवीर दुर्गादास राठौड़ : जिण पल दुर्गो जलमियो धन बा मांझल रात। - प्रो शैलेन्द्रकुमार शर्मा माई ऐड़ा पूत जण, जेहड़ा दुरगादास। मार मंडासो थामियो, बिण थम्बा आकास।। आठ पहर चौसठ घड़ी घुड़ले ऊपर वास। सैल अणी हूँ सेंकतो बाटी दुर्गादास।। भारत भूमि के पुण्य प्रतापी वीरों में दुर्गादास राठौड़ (13 अगस्त 1638 – 22 नवम्बर 1718)  के नाम-रूप का स्मरण आते ही अपूर्व रोमांच भर आता है। भारतीय इतिहास का एक ऐसा अमर वीर, जो स्वदेशाभिमान और स्वाधीनता का पर्याय है, जो प्रलोभन और पलायन से परे प्रतिकार और उत्सर्ग को अपने जीवन की सार्थकता मानता है। दुर्गादास राठौड़ सही अर्थों में राष्ट्र परायणता के पूरे इतिहास में अनन्य, अनोखे हैं। इसीलिए लोक कण्ठ पर यह बार बार दोहराया जाता है कि हे माताओ! तुम्हारी कोख से दुर्गादास जैसा पुत्र जन्मे, जिसने अकेले बिना खम्भों के मात्र अपनी पगड़ी की गेंडुरी (बोझ उठाने के लिए सिर पर रखी जाने वाली गोल गद्देदार वस्तु) पर आकाश को अपने सिर पर थाम लिया था। या फिर लोक उस दुर्गादास को याद करता है, जो राजमहलों में नहीं,  वरन् आठों पहर और चौंसठ घड़ी घोड़े पर वास करता है और उस पर ही बैठकर बाट...