Skip to main content

विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन का अट्ठाईसवाँ दीक्षांत समारोह 9 अप्रैल, चैत्र शुक्ल प्रतिपदा- गुड़ीपड़वा पर्व पर होगा, पारम्परिक परिधान में सम्मिलित होंगे अतिथि, सुधीजन और दीक्षार्थी

5 अप्रैल तक ऑनलाइन पंजीयन करवा सकेंगे पात्रता रखने वाले दीक्षार्थी

दीक्षांत समारोह का पूर्वाभ्यास किया जाएगा एक दिन पहले 8 अप्रैल को दो बार

उज्जैन। विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन में अट्ठाईसवाँ दीक्षांत समारोह 9 अप्रैल, चैत्र शुक्ल प्रतिपदा- गुड़ीपड़वा के पर्व पर आयोजित होने जा रहा है। दीक्षांत समारोह के गरिमामय आयोजन को लेकर तैयारियों को अंतिम रूप दिया जा रहा है। समारोह में सभी अतिथि, सुधीजन और दीक्षार्थी पारम्परिक परिधान में सम्मिलित होंगे, जिसका विवरण विश्वविद्यालय की वेबसाइट पर अपलोड किया गया है। 

विक्रम विश्वविद्यालय के कुलानुशासक प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा ने बताया कि दीक्षांत समारोह के सफल आयोजन के लिए विभिन्न समितियों का गठन किया गया है, जो इस कार्य को सफलतापूर्वक संचालित करेंगी। विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के अट्ठाईसवें दीक्षान्त समारोह का आयोजन चैत्र शुक्ल प्रतिपदा, गुड़ी पड़वा, दिनांक 9 अप्रैल 2024 को प्रातः काल 11:00 बजे विश्वविद्यालय के प्रशासनिक भवन परिसर स्थित स्वर्ण जयंती सभागार में होगा। दीक्षांत समारोह में वर्ष 2023 के पीएच डी उपाधि धारकों को डिग्री और 2023 की स्नातक परीक्षाओं की प्रावीण्य सूची में प्रथम स्थान प्राप्त विद्यार्थियों को स्वर्ण पदक प्रदान किए जाएंगे। वर्ष 2023 की स्नातकोत्तर परीक्षाओं की प्रावीण्य सूची में प्रथम स्थान प्राप्त  विद्यार्थियों को उपाधियां और स्वर्ण पदक प्रदान किए जाएंगे। विक्रम विश्वविद्यालय में आयोजित अट्ठाईसवें दीक्षांत समारोह में सम्मिलित होने के लिए पात्र विद्यार्थियों के लिए पंजीयन की तिथि 5 अप्रैल 2024 तक बढ़ाई गई है। समारोह में सम्मिलित होने की अर्हता रखने विद्यार्थियों की सूची विश्वविद्यालय की वेबसाइट पर उपलब्ध कराई गई है, उसके आधार पर विद्यार्थी एमपी ऑनलाइन के माध्यम से आवेदन कर सकेंगे। 

दीक्षांत समारोह में प्रतिभागी विद्याार्थियों से निर्धारित पारंपरिक वेशभूषा में उपस्थित होने का अनुरोध किया गया है। इसके अंतर्गत छात्राओं हेतु ऑफ व्हाईट या क्रीम रंग की साड़ी अथवा सलवार सूट तथा छात्रों हेतु ऑफ व्हाईट या क्रीम रंग का कुर्ता - पायजामा निर्धारित किया गया है। इसके अतिरिक्त समस्त विद्याार्थियों को पीली पगड़ी, गोल्डन ब्राउन जैकेट, डी. लिट, पीएच. डी. विद्यार्थियों को क्रीम रंग का उत्तरीय, स्नातकोत्तर विद्यार्थियों को लेमन यलो रंग का उत्तरीय तथा स्नातक विद्यार्थियों को ऑरेंज रंग का उत्तरीय धारण करना होगा। दीक्षांत समारोह में परिधान के लिये खादी या अन्य हथकरघा कपड़े का उपयोग करने का अनुरोध विश्वविद्यालय प्रशासन ने किया है।

दीक्षान्त समारोह के अवसर पर  उपाधि एवं गोल्ड मेडल प्राप्त  करने वाले पात्र विद्यार्थियों की संख्या कुल 251 हैं, इनमें पीएच.डी. उपाधि प्राप्तकर्ता विद्यार्थियों की संख्या 128, स्नातक एवं स्नातकोत्तर गोल्ड मेडल प्राप्तकर्ता विद्यार्थियों की संख्या 123 है। दीक्षांत समारोह का पूर्वाभ्यास एक दिन पहले 8 अप्रैल को दो बार प्रातः काल 10 बजे एवं दोपहर 3:30 बजे किया जाएगा।

विश्वविद्यालय प्रशासन ने अधिकाधिक अर्हता प्राप्त दीक्षार्थियों से दीक्षांत समारोह में सम्मिलित होने के लिए पंजीयन करवाने का अनुरोध किया है।

Comments

मध्यप्रदेश समाचार

देश समाचार

Popular posts from this blog

आधे अधूरे - मोहन राकेश : पाठ और समीक्षाएँ | मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे : मध्यवर्गीय जीवन के बीच स्त्री पुरुष सम्बन्धों का रूपायन

  आधे अधूरे - मोहन राकेश : पीडीएफ और समीक्षाएँ |  Adhe Adhure - Mohan Rakesh : pdf & Reviews मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा हिन्दी के बहुमुखी प्रतिभा संपन्न नाट्य लेखक और कथाकार मोहन राकेश का जन्म  8 जनवरी 1925 को अमृतसर, पंजाब में  हुआ। उन्होंने  पंजाब विश्वविद्यालय से हिन्दी और अंग्रेज़ी में एम ए उपाधि अर्जित की थी। उनकी नाट्य त्रयी -  आषाढ़ का एक दिन, लहरों के राजहंस और आधे-अधूरे भारतीय नाट्य साहित्य की उपलब्धि के रूप में मान्य हैं।   उनके उपन्यास और  कहानियों में एक निरंतर विकास मिलता है, जिससे वे आधुनिक मनुष्य की नियति के निकट से निकटतर आते गए हैं।  उनकी खूबी यह थी कि वे कथा-शिल्प के महारथी थे और उनकी भाषा में गज़ब का सधाव ही नहीं, एक शास्त्रीय अनुशासन भी है। कहानी से लेकर उपन्यास तक उनकी कथा-भूमि शहरी मध्य वर्ग है। कुछ कहानियों में भारत-विभाजन की पीड़ा बहुत सशक्त रूप में अभिव्यक्त हुई है।  मोहन राकेश की कहानियां नई कहानी को एक अपूर्व देन के रूप में स्वीकार की जाती ...

खाटू नरेश श्री श्याम बाबा की पूरी कहानी | Khatu Shyam ji | Jai Shree Shyam | Veer Barbarik Katha |

संक्षेप में श्री मोरवीनंदन श्री श्याम देव कथा ( स्कंद्पुराणोक्त - श्री वेद व्यास जी द्वारा विरचित) !! !! जय जय मोरवीनंदन, जय श्री श्याम !! !! !! खाटू वाले बाबा, जय श्री श्याम !! 'श्री मोरवीनंदन खाटू श्याम चरित्र'' एवं हम सभी श्याम प्रेमियों ' का कर्तव्य है कि श्री श्याम प्रभु खाटूवाले की सुकीर्ति एवं यश का गायन भावों के माध्यम से सभी श्री श्याम प्रेमियों के लिए करते रहे, एवं श्री मोरवीनंदन बाबा श्याम की वह शास्त्र सम्मत दिव्यकथा एवं चरित्र सभी श्री श्याम प्रेमियों तक पहुंचे, जिसे स्वयं श्री वेद व्यास जी ने स्कन्द पुराण के "माहेश्वर खंड के अंतर्गत द्वितीय उपखंड 'कौमारिक खंड'" में सुविस्तार पूर्वक बहुत ही आलौकिक ढंग से वर्णन किया है... वैसे तो, आज के इस युग में श्री मोरवीनन्दन श्यामधणी श्री खाटूवाले श्याम बाबा का नाम कौन नहीं जानता होगा... आज केवल भारत में ही नहीं अपितु समूचे विश्व के भारतीय परिवार ने श्री श्याम जी के चमत्कारों को अपने जीवन में प्रत्यक्ष रूप से देख लिया हैं.... आज पुरे भारत के सभी शहरों एवं गावों में श्री श्याम जी से सम्बंधित संस्थाओं...

दुर्गादास राठौड़ : जिण पल दुर्गो जलमियो धन बा मांझल रात - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा

अमरवीर दुर्गादास राठौड़ : जिण पल दुर्गो जलमियो धन बा मांझल रात। - प्रो शैलेन्द्रकुमार शर्मा माई ऐड़ा पूत जण, जेहड़ा दुरगादास। मार मंडासो थामियो, बिण थम्बा आकास।। आठ पहर चौसठ घड़ी घुड़ले ऊपर वास। सैल अणी हूँ सेंकतो बाटी दुर्गादास।। भारत भूमि के पुण्य प्रतापी वीरों में दुर्गादास राठौड़ (13 अगस्त 1638 – 22 नवम्बर 1718)  के नाम-रूप का स्मरण आते ही अपूर्व रोमांच भर आता है। भारतीय इतिहास का एक ऐसा अमर वीर, जो स्वदेशाभिमान और स्वाधीनता का पर्याय है, जो प्रलोभन और पलायन से परे प्रतिकार और उत्सर्ग को अपने जीवन की सार्थकता मानता है। दुर्गादास राठौड़ सही अर्थों में राष्ट्र परायणता के पूरे इतिहास में अनन्य, अनोखे हैं। इसीलिए लोक कण्ठ पर यह बार बार दोहराया जाता है कि हे माताओ! तुम्हारी कोख से दुर्गादास जैसा पुत्र जन्मे, जिसने अकेले बिना खम्भों के मात्र अपनी पगड़ी की गेंडुरी (बोझ उठाने के लिए सिर पर रखी जाने वाली गोल गद्देदार वस्तु) पर आकाश को अपने सिर पर थाम लिया था। या फिर लोक उस दुर्गादास को याद करता है, जो राजमहलों में नहीं,  वरन् आठों पहर और चौंसठ घड़ी घोड़े पर वास करता है और उस पर ही बैठकर बाट...