Skip to main content

विक्रम विश्वविद्यालय के विद्यार्थी गुजरात (मुंद्रा) अदानी ग्रुप में दो दिवसीय इंडस्ट्रियल विजिट कर वापस लौटे

उज्जैन। विक्रम विश्वविद्यालय के आई.आई.पी.एस एमबीए विभाग के  37 विद्यार्थी 1 शिक्षक डॉ. टीना यादव एवं अर्थशास्त्र विभाग के 15 विद्यार्थी एवं 2 शिक्षक डॉ. संग्राम भुषण एवं डॉ. दीपा द्विवेदी गुजरात (मुंद्रा) अदानी ग्रुप में  दो दिवसीय इंडस्ट्रियल विजिट कर वापस लौटे।  यह एक एजुकेशनल ट्रिप थी जो सफलतापूर्वक संपन्न हुई, जिसमें विद्यार्थियों ने अदानी ग्रुप के कई प्लांट जैसे अदानी विल्मर प्लांट, अदानी सोलर प्लांट, अदानी पोर्ट, अदानी सेज, अदानी थर्मल प्लांट आदि स्थानों का विद्यार्थियों को औद्योगिक भ्रमण कराया गया। 

इस दौरान कंपनी के अधिकारियों एवं कर्मियों ने विद्यार्थियों को इंडस्ट्रीज की बारीकियों को प्रत्यक्ष रुप से दिखाया और समझाया। विद्यार्थियों ने ध्यानपूर्वक सभी तथ्यों को समझा एवं प्रसन्नता व्यक्त की। अंतिम सत्र में विद्यार्थियों से मुंद्रा प्रोजेक्ट उड़ान के हेड जिग्नेश विभांदिक जी ने चर्चा की । 

अंतिम सत्र के विद्यार्थी मयूर पवार, संस्कार तिवारी, खुशी विजयवर्गीय ने चर्चा उपरांत बताया कि, अदानी ग्रुप द्वारा भविष्य में उज्जैन आकर अदानी ग्रुप में चयन संबंधी प्रक्रिया की जावेगी जिस पर सभी विद्यार्थियों ने हर्ष व्यक्त किया। शिविर प्रतिभागिता के संदर्भ में ऑनलाइन फीडबैक लिया साथ ही प्रमाण पत्र भी दिए।

आई.आई.पी.एस विभाग के डायरेक्टर डॉ. एस. के. मिश्रा द्वारा बताया गया कि, विक्रम विश्वविद्यालय से पहली बार एम.पी से बाहर कोई इंडस्ट्रियल विजिट इतने बड़े विद्यार्थियों के समूह के साथ और इतनी बड़ी कंपनी में सफलता पूर्वक सम्पन्न हुई है ।

शिविर के सफल संचालन पर आयोजकों को कुलपति प्रो. अखिलेश कुमार पाण्डेय द्वारा डॉ. संग्राम भुषण, डॉ. दीपा द्विवेदी, डॉ. टीना यादव सहित समस्त विद्यार्थियों को शुभकामनाएं दी।




Comments

मध्यप्रदेश समाचार

देश समाचार

Popular posts from this blog

आधे अधूरे - मोहन राकेश : पाठ और समीक्षाएँ | मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे : मध्यवर्गीय जीवन के बीच स्त्री पुरुष सम्बन्धों का रूपायन

  आधे अधूरे - मोहन राकेश : पीडीएफ और समीक्षाएँ |  Adhe Adhure - Mohan Rakesh : pdf & Reviews मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा हिन्दी के बहुमुखी प्रतिभा संपन्न नाट्य लेखक और कथाकार मोहन राकेश का जन्म  8 जनवरी 1925 को अमृतसर, पंजाब में  हुआ। उन्होंने  पंजाब विश्वविद्यालय से हिन्दी और अंग्रेज़ी में एम ए उपाधि अर्जित की थी। उनकी नाट्य त्रयी -  आषाढ़ का एक दिन, लहरों के राजहंस और आधे-अधूरे भारतीय नाट्य साहित्य की उपलब्धि के रूप में मान्य हैं।   उनके उपन्यास और  कहानियों में एक निरंतर विकास मिलता है, जिससे वे आधुनिक मनुष्य की नियति के निकट से निकटतर आते गए हैं।  उनकी खूबी यह थी कि वे कथा-शिल्प के महारथी थे और उनकी भाषा में गज़ब का सधाव ही नहीं, एक शास्त्रीय अनुशासन भी है। कहानी से लेकर उपन्यास तक उनकी कथा-भूमि शहरी मध्य वर्ग है। कुछ कहानियों में भारत-विभाजन की पीड़ा बहुत सशक्त रूप में अभिव्यक्त हुई है।  मोहन राकेश की कहानियां नई कहानी को एक अपूर्व देन के रूप में स्वीकार की जाती ...

खाटू नरेश श्री श्याम बाबा की पूरी कहानी | Khatu Shyam ji | Jai Shree Shyam | Veer Barbarik Katha |

संक्षेप में श्री मोरवीनंदन श्री श्याम देव कथा ( स्कंद्पुराणोक्त - श्री वेद व्यास जी द्वारा विरचित) !! !! जय जय मोरवीनंदन, जय श्री श्याम !! !! !! खाटू वाले बाबा, जय श्री श्याम !! 'श्री मोरवीनंदन खाटू श्याम चरित्र'' एवं हम सभी श्याम प्रेमियों ' का कर्तव्य है कि श्री श्याम प्रभु खाटूवाले की सुकीर्ति एवं यश का गायन भावों के माध्यम से सभी श्री श्याम प्रेमियों के लिए करते रहे, एवं श्री मोरवीनंदन बाबा श्याम की वह शास्त्र सम्मत दिव्यकथा एवं चरित्र सभी श्री श्याम प्रेमियों तक पहुंचे, जिसे स्वयं श्री वेद व्यास जी ने स्कन्द पुराण के "माहेश्वर खंड के अंतर्गत द्वितीय उपखंड 'कौमारिक खंड'" में सुविस्तार पूर्वक बहुत ही आलौकिक ढंग से वर्णन किया है... वैसे तो, आज के इस युग में श्री मोरवीनन्दन श्यामधणी श्री खाटूवाले श्याम बाबा का नाम कौन नहीं जानता होगा... आज केवल भारत में ही नहीं अपितु समूचे विश्व के भारतीय परिवार ने श्री श्याम जी के चमत्कारों को अपने जीवन में प्रत्यक्ष रूप से देख लिया हैं.... आज पुरे भारत के सभी शहरों एवं गावों में श्री श्याम जी से सम्बंधित संस्थाओं...

दुर्गादास राठौड़ : जिण पल दुर्गो जलमियो धन बा मांझल रात - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा

अमरवीर दुर्गादास राठौड़ : जिण पल दुर्गो जलमियो धन बा मांझल रात। - प्रो शैलेन्द्रकुमार शर्मा माई ऐड़ा पूत जण, जेहड़ा दुरगादास। मार मंडासो थामियो, बिण थम्बा आकास।। आठ पहर चौसठ घड़ी घुड़ले ऊपर वास। सैल अणी हूँ सेंकतो बाटी दुर्गादास।। भारत भूमि के पुण्य प्रतापी वीरों में दुर्गादास राठौड़ (13 अगस्त 1638 – 22 नवम्बर 1718)  के नाम-रूप का स्मरण आते ही अपूर्व रोमांच भर आता है। भारतीय इतिहास का एक ऐसा अमर वीर, जो स्वदेशाभिमान और स्वाधीनता का पर्याय है, जो प्रलोभन और पलायन से परे प्रतिकार और उत्सर्ग को अपने जीवन की सार्थकता मानता है। दुर्गादास राठौड़ सही अर्थों में राष्ट्र परायणता के पूरे इतिहास में अनन्य, अनोखे हैं। इसीलिए लोक कण्ठ पर यह बार बार दोहराया जाता है कि हे माताओ! तुम्हारी कोख से दुर्गादास जैसा पुत्र जन्मे, जिसने अकेले बिना खम्भों के मात्र अपनी पगड़ी की गेंडुरी (बोझ उठाने के लिए सिर पर रखी जाने वाली गोल गद्देदार वस्तु) पर आकाश को अपने सिर पर थाम लिया था। या फिर लोक उस दुर्गादास को याद करता है, जो राजमहलों में नहीं,  वरन् आठों पहर और चौंसठ घड़ी घोड़े पर वास करता है और उस पर ही बैठकर बाट...