स्वास्थ्य दिवस 7 अप्रैल 2024
प्रतिवर्ष की भांति इस बार भी विश्व स्वास्थ्य दिवस 7 अप्रैल 2024 को मनाया जा रहा है। इस वर्ष का विषय है माय हेल्थ, माय राइट - मेरा स्वास्थ्य, मेरा अधिकार। विश्व स्वास्थ्य संगठन आयुर्वेद के सिद्धांतों को मान्यता प्रदान करता है, जो आयु का ज्ञान करता है उसे आयुर्वेद कहते हैं। आयुर्वेद जीवन का विज्ञान है। स्वास्थ्य देखभाल की प्राचीन और व्यापक पद्धतियों में से एक है जो समग्र स्वास्थ्य पर ध्यान देता है। चरक संहिता का प्रारंभ ही दीर्घ जीवन की कामना से हुआ है, शरीर इंद्रियां मन व आत्मा के संयोग को आयु कहते हैं। आयुर्वेद स्वास्थ्य को दोष ( शरीर की नियामक एवं कार्यात्मक इकाई) धातु संरचनात्मक इकाई ,मल (उत्सर्जन इकाई) और अग्नि (पाचन और चयापचय कारक) के संतुलन की स्थिति के साथ-साथ आत्मा के साथ मन की स्वस्थ स्थिति में उनके सामंजस्य पूर्ण संबंध के साथ परिभाषित करता है।
स्वस्थ रहने पर ही मनुष्य धर्म अर्थ काम और मोक्ष चार पुरुषार्थों को प्राप्त कर सकता है। रोग इस कल्याणकारी और मूल स्वरूप आरोग्य जीवन को नष्ट करने वाले हैं।
जो मनुष्य विशेष कर युवा है, शारीरिक मानसिक रोगों से आक्रांत नहीं है, प्रत्येक कार्य को करने में समर्थ हैं, बल वीर्य पुरुषार्थ पराक्रमशील है , ज्ञान विज्ञान और इंद्रियों के बल के समुदाय से युक्त हैं , संपत्तिशाली है, जो व्यक्ति अपनी इच्छा अनुसार भ्रमण करने वाला है , ऐसे पुरुष की आयु सुखायु कही जाती है। स्वस्थ मनुष्य की ही सुखायु हितायु होती है।
मनुष्य के भौतिक सामाजिक आध्यात्मिक उत्थान के लिए स्वास्थ्य एक पूर्व अपेक्षा है। आयुर्वेद में स्वास्थ्य संरक्षण के महत्व पर जोर दिया गया है तथा वैज्ञानिक दृष्टिकोण से विभिन्न रोगों के उपचार का वर्णन किया गया है।
आयुर्वेद की अवधारणाएं व प्रथाएं हमारे समुदाय में गहराई से निहित हैं।
आयुर्वेद वैयक्तिक स्वास्थ्य के साथ-साथ सामाजिक स्वास्थ्य का भी सरोकार करता है। जैसे बसंत ऋतु में पढ़ने वाली होली की रस्म के रूप में आम, आग जलाना, सार्वजनिक स्ववेदन का प्रतिबिंब है , जिसे आयुर्वेद में वर्णित कफ प्रकोप को कम करने के लिए इस मौसम में सलाह दी जाती है।
आयुर्वेद में रोग की स्थिति को शरीर के आवश्यक घटकों के संतुलन की हानि या असामंजस्य के रूप में परिभाषित किया गया है। आयुर्वेद का महत्व बीमारी की रोकथाम, स्वास्थ्य को बढ़ावा देने और बीमारी के इलाज के लिए त्रिस्तरीय समग्र दृष्टिकोण में निहित है। यह शरीर मन व आत्मा की व्यापक देखभाल के माध्यम से प्राप्त किया जाता है। जहां स्वास्थ्य के शारीरिक मानसिक आध्यात्मिक पहलुओं पर विचार किया जाता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन की थीम मेरा स्वास्थ्य मेरा अधिकार के अंतर्गत आयुर्वेद स्वास्थ्य को पर्यावरण शरीर मन व आत्मा का एक गतिशील संयोग मानते हुए स्वास्थ्य की संरक्षण संवर्धन व बीमारियों को रोकने पर जोर देता है। रोगी की प्रकृति के अनुसार दिनचर्या (दैनिक आहार) , ऋतुचर्या (मौसमी आहारविहार) और सद्व्रत (नैतिक आचार संहिता) के विवेकपूर्ण अभ्यास से बीमारी की रोकथाम व स्वास्थ्य को बढ़ावा मिलता है । आयुर्वेद प्रत्येक जीव को शरीर मन व आत्मा का संयोजन मानता है । प्रत्येक व्यक्ति की एक अलग मानव दैहिक संरचना और स्वास्थ्य स्थिति होती है। व्यक्ति में (सूक्ष्म् जगत) और ब्रह्मांड (स्थूल जगत )की एक लघु प्रतिकृति है। पर्यावरण में होने वाले किसी भी परिवर्तन का प्रभाव मनुष्य पर पड़ता है इसलिए सामाजिक और पर्यावरणीय कारकों पर जोर दिया जाता है जो स्वास्थ्य से जुड़े होते हैं। आयुर्वेद विश्व स्वास्थ्य संगठन की अवधारणा के साथ-साथ आयु से दीर्घायु ,दीर्घायु से सुखायु और सुखायु से हितायु की ओर बदलाव को प्रस्तुत करता है।
डॉ प्रकाश जोशी, असिस्टेंट प्रोफेसर, शासकीय धन्वंतरि आयुर्वेद महाविद्यालय एवं चिकित्सालय
डॉ जितेंद्र जैन, आयुर्वेद चिकित्सा अधिकारी, शासकीय आयुर्वेद औषधालय, जिला उज्जैन मध्य प्रदेश
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