Skip to main content

साहित्यिक संस्था ओपन बुक्स (ओबीओ) द्वारा साहित्यिक गोष्ठी का आयोजन



भोपाल। देश के अग्रणी ग़ज़लकार ज़हीर कुरेशी की तीसरी पुण्यतिथि पर दुष्यंन्त कुमार संग्रहालय में साहित्यिक संस्था ओपन बुक्स ऑनलाइन (ओबीओ) द्वारा साहित्यिक गोष्ठी का आयोजन अशोक निर्मल की अध्यक्षता, फरीदाबाद से आये वरिष्ठ साहित्यकार हरे राम समीप के मुख्य आतिथ्य में संपन्न हुआ। नवाचार करते हुए मंच संचालक बलराम धाकड़ ने ज़हीर के शे'रों के साथ ही साहित्यकारों को मंच पर आमंत्रित किया। हरे राम समीप ने कहा कि "ज़हीर कुरेशी जैसे दिखते थे उससे कहीं ज़्यादा विराट थे, ज़हीर की तहरीर जनवादी है"।

कार्यक्रम की शुरुआत करते हुए भोपाल के गीतकार एवं शायर महावीर सिंह ने सुनाया, "न जाने कितनी सदियों से ही मरते आ रहे हैं हम, जो ढंग से मर गए होते तो फिर मरने नहीं आते।" शशि बंसल ने लघुकथा ' लिंगभेद' सुनाई। सीमा सुशी ने सुन्दर दोहे सुनाये "कभी दिखाई धूप तो, कभी मिलाया प्यार, मां थी तो बिगड़े नहीं, रिश्ते और अचार। " मनीष बादल के शे'र को बहुत तालियाँ मिलीं, "वो जो सूरज चन्दा का इक टुकड़ा लेकर बैठे हैं, वो ही लोभी अँधियारे का दुखड़ा लेकर बैठे हैं "। मिथिलेश वामनकर का दोहा बहुत सराहा गया, "सर्च किया सब कुछ यहां, जोड़ा उसके बाद, अब तो लेखक हो गए गूगल की औलाद।" युवा गीतकार पंकज पराग ने सुनाया," उंगलियाँ तो उठीं गैर पर ही सदा, हमने अंतर कलश निज का छाना नहीं"। किशन तिवारी ने सुनाया, "हारता ही रहा हूँ मैं ख़ुद से, ज़िन्दगी का हुनर नहीं आया"। आबिद काज़मी ने सुनाया, "उसने अपने गाँव के साये सारे अपने नाम किये, उसको अब ये कब परवाह है, किसने कितनी खाई धूप"। युवा शायर चित्रांश ने सुनाया, "तुम सलीके से लड़े होते फतह हो जाती, हार के आ गये किस्मत का बहाना लेकर" वहीं दूसरे युवा शायर गौरव गर्वित ने सुनाया, मेरे हाथों की रेखाएँ मुक़द्दर हो नहीं सकती, मेरी किस्मत लिखी जाएगी अब पैरों के छालों से"। प्रमिला झड़बड़े ने सुनाया, "जागते मन की प्रबलता, साधना स्वीकार हो।, अनमने से स्वप्न सारे, आज ही साकार हो।।" अशोक व्यग्र की ग़ज़ल ने ध्यान खींचा, "मुस्कुराये बैठे हैं ग़म छुपाये बैठे हैं।" दिनेश भदौरिया ने सुनाया, "तुम्हें याद कर बीते पल के सुख दुःख दुहराए।" हरे राम समीप द्वारा सम्पादित ग़ज़ल संग्रह "हिन्दी ग़ज़ल कोश" जिसमें अमीर खुसरो से लेकर 2010 तक के शायरों की ग़ज़लें शामिल है, का लोकार्पण भी हुआ और उन्होंने ये किताब संग्रहालय की सचिव करुणा राजुरकर को भेंट की। उन्होंने ग़ज़ल सुनाई, "जानते हो इस व्यस्था को तपेदिक रोग है और हाक़िम दे रहा है दर्द नाशक गोलियाँ"। ढ़ोल धमाके बजे, चल पड़ी गली गली बारातें, होने लगीं सभाएँ, आयी कुर्सी और कनाते"। 

कार्यक्रम अपने ऊँचाईयों पर पहुंचकर समाप्त हुआ।

Comments

मध्यप्रदेश समाचार

देश समाचार

Popular posts from this blog

आधे अधूरे - मोहन राकेश : पाठ और समीक्षाएँ | मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे : मध्यवर्गीय जीवन के बीच स्त्री पुरुष सम्बन्धों का रूपायन

  आधे अधूरे - मोहन राकेश : पीडीएफ और समीक्षाएँ |  Adhe Adhure - Mohan Rakesh : pdf & Reviews मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा हिन्दी के बहुमुखी प्रतिभा संपन्न नाट्य लेखक और कथाकार मोहन राकेश का जन्म  8 जनवरी 1925 को अमृतसर, पंजाब में  हुआ। उन्होंने  पंजाब विश्वविद्यालय से हिन्दी और अंग्रेज़ी में एम ए उपाधि अर्जित की थी। उनकी नाट्य त्रयी -  आषाढ़ का एक दिन, लहरों के राजहंस और आधे-अधूरे भारतीय नाट्य साहित्य की उपलब्धि के रूप में मान्य हैं।   उनके उपन्यास और  कहानियों में एक निरंतर विकास मिलता है, जिससे वे आधुनिक मनुष्य की नियति के निकट से निकटतर आते गए हैं।  उनकी खूबी यह थी कि वे कथा-शिल्प के महारथी थे और उनकी भाषा में गज़ब का सधाव ही नहीं, एक शास्त्रीय अनुशासन भी है। कहानी से लेकर उपन्यास तक उनकी कथा-भूमि शहरी मध्य वर्ग है। कुछ कहानियों में भारत-विभाजन की पीड़ा बहुत सशक्त रूप में अभिव्यक्त हुई है।  मोहन राकेश की कहानियां नई कहानी को एक अपूर्व देन के रूप में स्वीकार की जाती ...

खाटू नरेश श्री श्याम बाबा की पूरी कहानी | Khatu Shyam ji | Jai Shree Shyam | Veer Barbarik Katha |

संक्षेप में श्री मोरवीनंदन श्री श्याम देव कथा ( स्कंद्पुराणोक्त - श्री वेद व्यास जी द्वारा विरचित) !! !! जय जय मोरवीनंदन, जय श्री श्याम !! !! !! खाटू वाले बाबा, जय श्री श्याम !! 'श्री मोरवीनंदन खाटू श्याम चरित्र'' एवं हम सभी श्याम प्रेमियों ' का कर्तव्य है कि श्री श्याम प्रभु खाटूवाले की सुकीर्ति एवं यश का गायन भावों के माध्यम से सभी श्री श्याम प्रेमियों के लिए करते रहे, एवं श्री मोरवीनंदन बाबा श्याम की वह शास्त्र सम्मत दिव्यकथा एवं चरित्र सभी श्री श्याम प्रेमियों तक पहुंचे, जिसे स्वयं श्री वेद व्यास जी ने स्कन्द पुराण के "माहेश्वर खंड के अंतर्गत द्वितीय उपखंड 'कौमारिक खंड'" में सुविस्तार पूर्वक बहुत ही आलौकिक ढंग से वर्णन किया है... वैसे तो, आज के इस युग में श्री मोरवीनन्दन श्यामधणी श्री खाटूवाले श्याम बाबा का नाम कौन नहीं जानता होगा... आज केवल भारत में ही नहीं अपितु समूचे विश्व के भारतीय परिवार ने श्री श्याम जी के चमत्कारों को अपने जीवन में प्रत्यक्ष रूप से देख लिया हैं.... आज पुरे भारत के सभी शहरों एवं गावों में श्री श्याम जी से सम्बंधित संस्थाओं...

दुर्गादास राठौड़ : जिण पल दुर्गो जलमियो धन बा मांझल रात - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा

अमरवीर दुर्गादास राठौड़ : जिण पल दुर्गो जलमियो धन बा मांझल रात। - प्रो शैलेन्द्रकुमार शर्मा माई ऐड़ा पूत जण, जेहड़ा दुरगादास। मार मंडासो थामियो, बिण थम्बा आकास।। आठ पहर चौसठ घड़ी घुड़ले ऊपर वास। सैल अणी हूँ सेंकतो बाटी दुर्गादास।। भारत भूमि के पुण्य प्रतापी वीरों में दुर्गादास राठौड़ (13 अगस्त 1638 – 22 नवम्बर 1718)  के नाम-रूप का स्मरण आते ही अपूर्व रोमांच भर आता है। भारतीय इतिहास का एक ऐसा अमर वीर, जो स्वदेशाभिमान और स्वाधीनता का पर्याय है, जो प्रलोभन और पलायन से परे प्रतिकार और उत्सर्ग को अपने जीवन की सार्थकता मानता है। दुर्गादास राठौड़ सही अर्थों में राष्ट्र परायणता के पूरे इतिहास में अनन्य, अनोखे हैं। इसीलिए लोक कण्ठ पर यह बार बार दोहराया जाता है कि हे माताओ! तुम्हारी कोख से दुर्गादास जैसा पुत्र जन्मे, जिसने अकेले बिना खम्भों के मात्र अपनी पगड़ी की गेंडुरी (बोझ उठाने के लिए सिर पर रखी जाने वाली गोल गद्देदार वस्तु) पर आकाश को अपने सिर पर थाम लिया था। या फिर लोक उस दुर्गादास को याद करता है, जो राजमहलों में नहीं,  वरन् आठों पहर और चौंसठ घड़ी घोड़े पर वास करता है और उस पर ही बैठकर बाट...