Skip to main content

विक्रम विश्वविद्यालय के डॉ सक्सेना को हृदय रोग डिटेक्टर का इंडियन पेटेंट प्राप्त

उज्जैन। विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के डॉ विष्णु कुमार सक्सेना ने कंप्यूटर साइंस एन्ड इंजीनियरिंग विषय में शोध करने के उपरांत हृदय रोग डिटेक्टर का इंडियन पेटेंट करवाने में सफलता प्राप्त की है। डॉ सक्सेना द्वारा यह पांचवा इंडियन पेटेंट प्राप्त किया गया है। डॉ सक्सेना ने पेटेंट का कॉपीराइट भी प्राप्त किया है।

कई स्वास्थ्य स्थितियाँ, मनुष्य की जीवनशैली, और उनकी उम्र और पारिवारिक इतिहास, हृदय रोग और दिल के दौरे के जोखिम को बढ़ा सकते हैं।  हृदय रोग के लिए कम से कम तीन प्रमुख जोखिम कारकों में से एक है: उच्च रक्तचाप, उच्च रक्त कोलेस्ट्रॉल और धूम्रपान। दिल का दौरा तब पड़ता है, जब हृदय की मांसपेशियों के एक हिस्से में रक्त की आपूर्ति में कमी हो जाती है, जो अक्सर पास की धमनी में रुकावट के कारण होता है। लक्षणों में छाती में दर्द शामिल है जो फैल सकता है।  

इसी को ध्यान में रखते हुए हृदय रोग डिटेक्टर के एक नए डिज़ाइन के आविष्कार में एक मजबूत पायथन प्रोग्रामिंग रूपरेखा, डेटा विश्लेषण के लिए परिष्कृत एल्गोरिदम और विविध कार्डियक डेटासेट का एक व्यापक डेटाबेस शामिल है। सिस्टम में एकीकृत गहन शिक्षण मॉडल को हृदय रोगों के संकेतक पैटर्न और विसंगतियों को पहचानने के लिए रोगी डेटा की एक विशाल शृंखला पर प्रशिक्षित किया जाता है। यह उपकरण पायथन-आधारित कार्यक्रम के माध्यम से रोगी की जानकारी के व्यापक सेट, जैसे चिकित्सा इतिहास, डायग्नोस्टिक परीक्षण और जीवनशैली कारकों को संसाधित करके संचालित होता है।

गहन शिक्षण मॉडल तब इन डेटा बिंदुओं का विश्लेषण करता है, सूक्ष्म पैटर्न और सहसंबंधों की पहचान करता है जो हृदय संबंधी स्थितियों का संकेत हो सकते हैं। डिवाइस की दक्षता लगातार सीखने और अनुकूलन करने की क्षमता में निहित है, जिससे समय के साथ बेहतर सटीकता सुनिश्चित होती है। इस पायथन-आधारित हृदय रोग डिटेक्टर का प्राथमिक उपयोग हृदय से संबंधित बीमारियों का शीघ्र और सटीक पता लगाना है। पेशेवर रोगी की देखभाल और उपचार रणनीतियों के बारे में अवगत कर निर्णय लेने के लिए इसके परिणामों पर भरोसा कर सकते हैं, जिससे संभावित रूप से शुरुआती बचाव हो सकते हैं, जो रोगी के परिणामों और समग्र हृदय स्वास्थ्य में काफी सुधार कर सकते हैं।

डॉ सक्सेना ने यह रिसर्च बिरला इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी मेसरा, झारखण्ड के प्रोफेसर डॉ शशांक पुष्कर, इंस्टिट्यूट ऑफ़ कंप्यूटर साइंस, विक्रम विश्वविद्यालय के उपाचार्य डॉ क्षमाशील मिश्रा, और शासकीय उज्जैन इंजीनियरिंग कॉलेज के श्री योगेश जोशी के साथ मिलकर तैयार किया है।

कुलपति प्रोफेसर अखिलेश कुमार पांडेय, कुलसचिव डॉ अनिल शर्मा, कार्यपरिषद सदस्य श्री राजेश सिंह कुशवाह, डॉ संजय वर्मा, श्री वरुण गुप्ता, कुलानुशासक प्रोफेसर शैलेन्द्र कुमार शर्मा, विद्यार्थी कल्याण संकायाध्यक्ष प्रोफेसर एस के मिश्रा, आई. क्यू. ए सी. निदेशक डॉ डी डी बेदिया ने डॉ सक्सेना की इस उपलब्धि पर उन्हें बधाई दी है।

Comments

मध्यप्रदेश समाचार

देश समाचार

Popular posts from this blog

आधे अधूरे - मोहन राकेश : पाठ और समीक्षाएँ | मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे : मध्यवर्गीय जीवन के बीच स्त्री पुरुष सम्बन्धों का रूपायन

  आधे अधूरे - मोहन राकेश : पीडीएफ और समीक्षाएँ |  Adhe Adhure - Mohan Rakesh : pdf & Reviews मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा हिन्दी के बहुमुखी प्रतिभा संपन्न नाट्य लेखक और कथाकार मोहन राकेश का जन्म  8 जनवरी 1925 को अमृतसर, पंजाब में  हुआ। उन्होंने  पंजाब विश्वविद्यालय से हिन्दी और अंग्रेज़ी में एम ए उपाधि अर्जित की थी। उनकी नाट्य त्रयी -  आषाढ़ का एक दिन, लहरों के राजहंस और आधे-अधूरे भारतीय नाट्य साहित्य की उपलब्धि के रूप में मान्य हैं।   उनके उपन्यास और  कहानियों में एक निरंतर विकास मिलता है, जिससे वे आधुनिक मनुष्य की नियति के निकट से निकटतर आते गए हैं।  उनकी खूबी यह थी कि वे कथा-शिल्प के महारथी थे और उनकी भाषा में गज़ब का सधाव ही नहीं, एक शास्त्रीय अनुशासन भी है। कहानी से लेकर उपन्यास तक उनकी कथा-भूमि शहरी मध्य वर्ग है। कुछ कहानियों में भारत-विभाजन की पीड़ा बहुत सशक्त रूप में अभिव्यक्त हुई है।  मोहन राकेश की कहानियां नई कहानी को एक अपूर्व देन के रूप में स्वीकार की जाती ...

खाटू नरेश श्री श्याम बाबा की पूरी कहानी | Khatu Shyam ji | Jai Shree Shyam | Veer Barbarik Katha |

संक्षेप में श्री मोरवीनंदन श्री श्याम देव कथा ( स्कंद्पुराणोक्त - श्री वेद व्यास जी द्वारा विरचित) !! !! जय जय मोरवीनंदन, जय श्री श्याम !! !! !! खाटू वाले बाबा, जय श्री श्याम !! 'श्री मोरवीनंदन खाटू श्याम चरित्र'' एवं हम सभी श्याम प्रेमियों ' का कर्तव्य है कि श्री श्याम प्रभु खाटूवाले की सुकीर्ति एवं यश का गायन भावों के माध्यम से सभी श्री श्याम प्रेमियों के लिए करते रहे, एवं श्री मोरवीनंदन बाबा श्याम की वह शास्त्र सम्मत दिव्यकथा एवं चरित्र सभी श्री श्याम प्रेमियों तक पहुंचे, जिसे स्वयं श्री वेद व्यास जी ने स्कन्द पुराण के "माहेश्वर खंड के अंतर्गत द्वितीय उपखंड 'कौमारिक खंड'" में सुविस्तार पूर्वक बहुत ही आलौकिक ढंग से वर्णन किया है... वैसे तो, आज के इस युग में श्री मोरवीनन्दन श्यामधणी श्री खाटूवाले श्याम बाबा का नाम कौन नहीं जानता होगा... आज केवल भारत में ही नहीं अपितु समूचे विश्व के भारतीय परिवार ने श्री श्याम जी के चमत्कारों को अपने जीवन में प्रत्यक्ष रूप से देख लिया हैं.... आज पुरे भारत के सभी शहरों एवं गावों में श्री श्याम जी से सम्बंधित संस्थाओं...

दुर्गादास राठौड़ : जिण पल दुर्गो जलमियो धन बा मांझल रात - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा

अमरवीर दुर्गादास राठौड़ : जिण पल दुर्गो जलमियो धन बा मांझल रात। - प्रो शैलेन्द्रकुमार शर्मा माई ऐड़ा पूत जण, जेहड़ा दुरगादास। मार मंडासो थामियो, बिण थम्बा आकास।। आठ पहर चौसठ घड़ी घुड़ले ऊपर वास। सैल अणी हूँ सेंकतो बाटी दुर्गादास।। भारत भूमि के पुण्य प्रतापी वीरों में दुर्गादास राठौड़ (13 अगस्त 1638 – 22 नवम्बर 1718)  के नाम-रूप का स्मरण आते ही अपूर्व रोमांच भर आता है। भारतीय इतिहास का एक ऐसा अमर वीर, जो स्वदेशाभिमान और स्वाधीनता का पर्याय है, जो प्रलोभन और पलायन से परे प्रतिकार और उत्सर्ग को अपने जीवन की सार्थकता मानता है। दुर्गादास राठौड़ सही अर्थों में राष्ट्र परायणता के पूरे इतिहास में अनन्य, अनोखे हैं। इसीलिए लोक कण्ठ पर यह बार बार दोहराया जाता है कि हे माताओ! तुम्हारी कोख से दुर्गादास जैसा पुत्र जन्मे, जिसने अकेले बिना खम्भों के मात्र अपनी पगड़ी की गेंडुरी (बोझ उठाने के लिए सिर पर रखी जाने वाली गोल गद्देदार वस्तु) पर आकाश को अपने सिर पर थाम लिया था। या फिर लोक उस दुर्गादास को याद करता है, जो राजमहलों में नहीं,  वरन् आठों पहर और चौंसठ घड़ी घोड़े पर वास करता है और उस पर ही बैठकर बाट...