हमारा मस्तिष्क मातृभाषा के साहित्य को सहज ही स्वीकार करता है, इसलिए अच्छे साहित्य की रचना समय की मांग- कुलगुरु प्रो अखिलेश कुमार पाण्डेय
हमारा मस्तिष्क मातृभाषा के साहित्य को सहज ही स्वीकार करता है, इसलिए अच्छे साहित्य की रचना समय की मांग- कुलगुरु प्रो अखिलेश कुमार पाण्डेय
उज्जैन। प्रख्यात साहित्यकार प्रोफेसर दिनेश चमोला शैलेश का सृजन-मूल्यांकन पाश्निक व्याख्यानमाला हिंदी विज्ञान कविता संग्रह मेरी 51 विज्ञान कविताएँ पर आयोजित कार्यक्रम में विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन के कुलगुरु प्रो अखिलेश कुमार पांडेय ने अध्यक्ष के रूप में भाग लिया।
कार्यक्रम में अध्यक्षीय उद्बोधन देते हुए माननीय कुलगुरु प्रो पांडेय ने प्रोफेसर दिनेश चमोला जी रचनाओं की प्रशंसा करते हुए कहा कि मातृभाषा में अच्छा साहित्य आज के समय की मांग है। प्रोफेसर चमोला की कविताएं इस साहित्य की मांग को पूरा करती हैं। उन्होंने प्रोफेसर चमोला की कविता नियति के बारे में बताते हुए कहा यह कविता हिन्दी साहित्य का एक उत्कृष्ट उदाहरण है और हमारे बच्चों और युवाओं के लिए श्रेष्ठ साहित्य का संग्रह समय की मांग है। उन्होंने कहा कि अगर अच्छा साहित्य उपलब्ध होगा तो बच्चे ज्ञान को सही रूप में धारण कर पाएंगे और इंटरनेट का गलत उपयोग नहीं होगा। उन्होंने कहा कि मनुष्य का मस्तिष्क मातृ-भाषा को सहजता से स्वीकार करता है, अतः अच्छा साहित्य समय की सबसे बड़ी मांग है। उन्होंने कहा कि विक्रम विश्वविद्यालय द्वारा गत चार वर्षों में साहित्य को जीवन के अन्य महत्वपूर्ण शिक्षण विषय जैसे विज्ञान आदि से जोड़ते हुए कई नई पाठ्यक्रम जैसे रामचरितमानस में विज्ञान आदि की शुरुआत की गई है। उन्होंने कहा कि हर विश्वविद्यालय का यह दायित्व है कि वह अपने स्तर पर साहित्य को सदृढ़ करने की दिशा में अपनी भूमिका निभाए। उन्होंने प्रोफेसर चमोला जी को इस कविता संग्रह के लिए हार्दिक शुभकामनाएं दीं।
यह जानकारी विक्रम विश्वविद्यालय के कुलानुशासक प्रोफेसर शैलेंद्र कुमार शर्मा ने दी।
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