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भारतीय संस्कृति का हमारे वर्षों के असंख्य कष्ट और संघर्षों को सहते हुए आज तक जीवित रहना इसके आधार तत्वों की शाश्वतता एवं वैज्ञानिकता का प्रमाण है - कुलगुरू प्रोफेसर अखिलेश कुमार पाण्डेय

विक्रम विश्वविद्यालय के कुलगुरु प्रोफेसर अखिलेश कुमार पाण्डेय द्वारा भारतीय ज्ञान परंपरा समाजशास्त्र विषय के विविध संदर्भ विषय पर व्याख्यान        

उज्जैन। हाल ही के समय में विभिन्न विश्वविद्यालय और महाविद्यालयों द्वारा भारतीय ज्ञान परंपरा पर विभिन्न संगोष्ठी एवं व्याख्यान के आयोजन किए जा रहे हैं। इसी शृंखला में डॉ वी आर अंबेडकर सामाजिक विज्ञान विश्वविद्यालय, महू द्वारा भारतीय ज्ञान परंपरा : समाजशास्त्र विषय के विविध संदर्भ विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन दिनांक 24 एवं 25 जुलाई 2024 को किया गया।

इस अवसर पर विक्रम विश्वविद्यालय के कुलगुरु प्रोफेसर अखिलेश कुमार पाण्डेय ने प्रमुख वक्ता के रूप में अपना व्याख्यान दिया। अपने वक्तव्य में माननीय कुलगुरु जी ने कहा कि भारतीय संस्कृति का हमारे वर्षों के असंख्य कष्ट और संघर्षो को सहते हुए आज तक जीवित रहना इसके आधार तत्वों की शाश्वतता एवं वैज्ञानिकता का प्रमाण है। उन्होंने कहा कि भारतीय ऋषि मुनि मूल स्वरूप से चिंतक थे। उन्होंने मानव जीवन और सृष्टि के हर पहलू, रीति- रिवाज़ के सहारे सत्य को समाज के सामने उद्घाटित किया हैं। हमारी संस्कृति के मूल स्तंभ गीता, रामायण, महाभारत, वेद आदि ज्ञान के अपार भंडार हैं। 

अपनी बात को बढ़ाते हुए माननीय कुलगुरु जी ने कहा कि भारतीय संस्कृति का संपूर्ण ताना-बाना मानव के व्यवहार विज्ञान अर्थात् मनोविज्ञान के धागों से इस कुशलता के साथ बुना है कि आदर्श समाज एवं मानव की रचना हो सके। हमारी संस्कृति त्यागभावना को उत्कृष्ट रूप से दर्शाती है, जिसका उदाहरण कोविड वैक्सीन के दौरान देखने को मिला जहां भारत ने अपने पड़ोसी देशों को वैक्सीन दे उन्हें संकट से उभरने में मदत की। 

उन्होंने कहा कि हमारी संस्कृति आध्यात्मिकता एवं चरित्र निर्माण का आधार बनती हैं और हमें इस पर गर्व होना चाहिए अतः हमे इसके संरक्षण के लिए सदैव सक्रिय रहना चाहिए। 

ये जानकारी विक्रम विश्वविद्यालय के कुलानुशासक प्रोफेसर शैलेंद्र कुमार शर्मा ने दी।

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