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प्रेमचंद के कथा साहित्य की स्त्रियां युग परिवर्तन की संवाहिका हैं - प्रो शर्मा

प्रेमचंद जयंती समारोह के अंतर्गत हुआ स्त्री विमर्श और प्रेमचंद के नारी पात्र पर परिसंवाद का आयोजन

उज्जैन। विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन की हिंदी अध्ययनशाला एवं प्रेमचंद सृजन पीठ के संयुक्त तत्वावधान में प्रेमचंद जयंती समारोह के अंतर्गत परिसंवाद का आयोजन 31 जुलाई बुधवार को मध्याह्न में प्रभारी कुलपति प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा की अध्यक्षता में वाग्देवी भवन में किया गया। परिसंवाद का विषय था स्त्री विमर्श और प्रेमचंद के नारी पात्र। कार्यक्रम में प्रो गीता नायक, साहित्यकार श्रीराम दवे, श्री संतोष सुपेकर, डॉ प्रतिष्ठा शर्मा, डॉ मोहन बैरागी, श्रीमती नारायणी माया बधेका आदि ने विचार व्यक्त किए। 

विश्वविद्यालय के प्रभारी कुलपति प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा ने कहा कि प्रेमचंद के कथा साहित्य की स्त्रियां युग परिवर्तन की संवाहिका है। उन्होंने साहित्य में स्त्री एवं किसान जीवन की कठिन से कठिन परिस्थितियों को चित्रित करने के साथ मानवीयता की अलख को जगाए रखा। उनकी रचनाएँ कालजयी हैं। कृषि प्रधान देश, कुप्रथा, महाजनी व्यवस्था, रूढ़िवाद की गहरी समझ उन्हें थी। उन्होंने स्त्री जीवन के अनेक अनदेखे पहलुओं को उजागर किया। उनकी नारी वैचारिक दृढ़ता लिए हुए हैं।

वरिष्ठ साहित्यकार श्रीराम दवे ने कहा कि प्रेमचंद की नारी अशिक्षा और शोषण के विरुद्ध खड़ी हैं। उन्होंने अपनी रचनाओं में नारी के त्याग और समर्पण के साथ स्वाभिमानी रूप को जीवंत किया। उनकी रचनाएं सदैव प्रासंगिक रहेंगी।  

प्रो. गीता नायक ने अपने उद्बोधन में कहा कि स्त्री विमर्श पीड़ा से उपजा हुआ विमर्श है। प्रेमचंद ने अपने साहित्य में पर्दा प्रथा, विधवा विवाह, स्त्रियों के संपत्ति में अधिकार जैसे मुद्दों को अपना विषय बनाया था, जो आज भी प्रासंगिक हैं।

डॉ प्रतिष्ठा शर्मा ने प्रेमचंद और उनके साहित्य में स्त्री विमर्श विषय पर शोध पत्र प्रस्तुत किया, जिसमें उन्होंने स्त्री शिक्षा, स्त्री समानता, अधिकारों और प्रेमचंद की स्त्रियों के प्रति संवेदना पर बात की।

मालवी की प्रसिद्ध लेखिका नारायणी माया बधेका ने अपने व्यक्त्व में कहा कि आज विमर्श की आवश्यकता ही नहीं हो अगर आज की युवा पीढ़ी स्त्रियों के अधिकारों उनके प्रति सम्मान को महत्वपूर्ण समझे और स्वयं परिवर्तन लाएं, सुसंस्कृत बने, जागरूक बने।

लघु कथाकार संतोष सुपेकर ने अपनी लघुकथा भयतंत्र पर शाम के माध्यम से स्त्रियों की स्थिति पर विचार प्रस्तुत किए।

प्रेमचंद सृजन पीठ उज्जैन की निदेशक श्रीमती अनीता पवार ने भी प्रेमचंद के योगदान पर विचार व्यक्त किए।

नवगीतकार मोहन बैरागी ने सुमधुर गीत के माध्यम से अपने विचार प्रस्तुत किए। कार्यक्रम में अंतरराष्ट्रीय शोध पत्रिका अक्षरवार्ता के विशेषांक का विमोचन अतिथियों द्वारा किया गया। 

प्रारम्भ में राकेश माल ने कबीर पंथी गीत प्रस्तुत किया। प्रारम्भ में अतिथियों द्वारा मुंशी प्रेमचंद के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित की।  विद्यार्थियों ने प्रेमचंद के साहित्य के विविध पक्षों पर प्रकाश डाला। आयोजन में बड़ी संख्या में शिक्षक, शोधार्थी और विद्यार्थी उपस्थित रहे।

संचालन शोधकर्ता पूजा परमार ने किया। आभार प्रेमचंद सृजन पीठ की निदेशक अनिता पंवार ने व्यक्त किया। 

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