लक्ष्मण रेखा, पुष्पक विमान, अहिरावण, कौरव, पांडव जन्म इस बात के परिचायक हैं कि पुरातन युग भारत में विज्ञान का स्वर्णिम युग था - कुलपति प्रो पाण्डेय
सीएसआईआर - एम्प्री (एडवांस मटेरियल एंड प्रोसेसेस रिसर्च इंस्टीट्यूट) में दो दिवसीय राष्ट्रीय हिन्दी विज्ञान सम्मेलन का आयोजन सम्पन्न
भारतीय ज्ञान परंपरा वैदिक एवं उपनिषद काल में जितनी उन्नत थी, वह बौद्ध, जैन काल और बाद के दौर में भी रही। उस काल में विभिन्न विश्वविद्यालयों की स्थापना और शिक्षा व्यवस्था से यह स्पष्ट परिलक्षित होता है। इसका लोप विगत 200 से 300 वर्षों में हुआ है। पुरातन ग्रंथों में विभिन्न प्रकार की वनस्पतियों का उल्लेख मिलता है जिनका उपयोग भोजन और औषधियों के रूप में किया जाता था। नई शिक्षा नीति में विभिन्न विषयों के पाठ्यक्रम में भारतीय ज्ञान परंपरा को उचित रूप में प्रतिबिंबित करने की आवश्यकता है। इसी को ध्यान में रखते हुई भोपाल में सीएसआईआर-एम्प्री - एडवांस मटेरियल एंड प्रोसेसेस रिसर्च इंस्टीट्यूट में दो दिवसीय राष्ट्रीय हिन्दी विज्ञान सम्मेलन का आयोजन दिनांक 19-20 जुलाई 2024 को किया गया। यह कार्यक्रम सी एस आई आर, विज्ञानं भारती, भोज विश्वविद्यालय, अटल बिहारी वाजपेयी विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित किया गया।
विक्रम विश्वविद्यालय के कुलगुरु प्रोफेसर अखिलेश कुमार पाण्डेय इस आयोजन के प्रमुख वक्ता थे। अपने वक्तव्य में उन्होंने कहा कि भारत को विश्वगुरु और सोने की चिड़िया बनाने में भारतीय ज्ञान परंपरा की अहम भूमिका रही है। उन्होंने भारत में विज्ञान विषय पर अपना संबोधन दिया। इस विषय पर अपने विचार व्यक्त करते हुए माननीय कुलपति जी ने कहा कि भारत में विज्ञान का ज्ञान वैदिक काल से है। वेदों के अनुसार भगवान शिव को विश्व का प्रथम वनस्पति शास्त्री और वैज्ञानिक माना गया है। अपनी बात को बढ़ाते हुए उन्होंने बताया कि आयुर्वेद का जिक्र वेदों में मिलता है साथ ही वेदों में कई औषधीय पौधों का वर्णन है। वही दूसरी ओर प्राचीन ग्रन्थों में चरक और सुश्रुत द्वारा वनस्पतियों का वर्गीकरण भी वर्णित है, साथ ही उन्होंने यह भी बताया कि भारत में गंभीर बीमारियों का इलाज पुराने समय से होता आया है। सुश्रुत सहित में एड्स जैसी बीमारी के इलाज, नाक की प्लास्टिक सर्जरी एवं खून पतला करने के लिए लीच का उपयोग इस बात का परिचायक हैं कि भारत में प्राचीन समय में भी विज्ञान बहुत विकसित रहा हैं। अपनी बात को समझाते हुए माननीय कुलपति जी ने कहा कि वनस्पति विज्ञान के क्षेत्र में भारत बहुत अग्रणी रहा है। जब दुनिया को सूचक पौधों के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी, तभी वराहमिहिर ने पानी के सूचक पौधों के बारे में, उपरोहण अर्थात् ग्राफ्टिंग जैसी तकनीकों के बारे में समझाया था। उन्होंने कहा कि, रामायण और महाभारत काल में कौरवों का जन्म, लक्ष्मण द्वारा लक्ष्मण रेखा ( जो कि इलेक्ट्रोमैग्नेटिक लाईन ऑफ फॉर्स थी) एवं पुष्पक विमान का उल्लेखन यह दर्शाता हैं कि इस समय भारत में विज्ञान अपने स्वर्णिम दौर में था। माननीय कुलपति जी ने कहा कि आज की पीढ़ी को इन बातों का ज्ञान दिया जाना आवश्यक हैं, जिससे हमारा युवा अपनी देश की संस्कृति से परिचित हो सके।
इस अवसर पर विक्रम विश्वविद्यालय के कुलसचिव डॉ अनिल शर्मा एवं कुलानुशासक प्रो शैलेन्द्र कुमार शर्मा ने कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा सनातन ज्ञान और प्रज्ञा का प्रतीक है, जिसमें ज्ञान और विज्ञान, लौकिक और आध्यात्मिक तथा भोग और त्याग का अद्भुत समन्वय है।
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