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डॉ. शिवमंगलसिंह सुमन अलंकरण से अलंकृत हुए विक्रम विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. अखिलेश कुमार पाण्डेय

हमारे विद्यार्थी युवा आपदा में अवसर खोजें - डॉ. पाण्डेय

सुमनजी व्यापक प्रबोधन के कवि हैं, उनकी रचनाओं में है आह्वान के स्वर - डॉ. शैलेन्द्र कुमार शर्मा

उज्जैन। डॉ. शिवमंगलसिंह सुमन स्मृति शोध संस्थान एवं मालवांचल लोक कला संस्कृति संस्थान के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित मालवा लोकोत्सव एवं डॉ. सुमन अलंकरण समारोह की अध्यक्षता कर रहे विक्रम विश्वविद्यालय के कुलपति जी डॉ. अखिलेश कुमार पाण्डेय ने कहा कि हमारे विद्यार्थियों को युवाओं को आपदा में अवसर खोजना चाहिए। ऐसे जीवन एवं व्यक्तित्वों को अपने जीवन का आदर्श बनाना चाहिए। सुमनजी का जीवन और व्यक्तित्व जन जन के लिए आदर्श रहा। उनकी निश्छल सरलता - सहजता उनका कृतित्व कठिनाइयों में प्रेरणा देता है। आज का युवा किस दिशा में जा रहा है। बच्चे यांत्रिक युग मे जी रहे हैं। उनकी सोचने समझने की शक्ति कम हो रही है। विचार शून्यता गहरा रही है। ऐसी विकट परिस्थिति में साहित्यकारों का दायित्व है कि हमारी पीढ़ी को दिशा बोध कराए। महाभारत संग्राम से ही गीता  प्रकट होती है। और राम रावण संघर्ष की परिणति ही रामचरित मानस है। ऐसी आपदाओं ने ही अवसरों को उत्पन्न किया है। 

समारोह में मुख्य आतिथ्य प्रदान कर रहे विक्रम विश्वविद्यालय के कुलानुशासक डॉ. शैलेन्द्र कुमार शर्मा ने अपने उद्बोधन में कहा कि सुमनजी प्रबोधन के कवि हैं, जिनकी रचनाओं में आह्वान के स्वर हैं। वे अक्षय प्रेरणा के कवि हैं। वे राग और विद्रोह के ओर- छोर को बांध कर सन्धि और सेतु का निर्माण करते हैं। वे जीवन के कवि हैं। सुमनजी की कीर्ति अक्षुण्ण है। यह आयोजन धन्यता का बोध कराता  है। सुमनजी की मानस पुत्री और हमारी शिष्या शोभना का समर्पण भाव कहता कि सुमनजी को याद करना गहरी आस्था और विश्वास से  जुड़ना है। 'क्या हार में क्या जीत में, किंचित नही भयभीत में वरदान माँगूँगा नहीं, इन काव्य पंक्तियों को उन्होंने निरन्तर जीवन्त किया। उनका समान धर्मा भाव वे कही भी कभी भी किसी के भी साथ बैठते थे, सदैव एक जैसे तरल-सरल रहते । तभी वे कहते मैं क्षिप्रा सा तरल सरल बहता हूँ वे असीम को चुनौती देते हैं। यह असीम निज सीमा जाने सागर भी तो यह पहचाने, मिट्टी के पुतले मानव ने कभी न मानी हार। सुमनजी को याद करना समूची मानवता के साथ खड़े होना है। रोमांच के महासागर से गुजरना है। विभाजन की विभीषिका और नाविक विद्रोह पर उनकी सशक्त रचना है। सुमनजी राष्ट्रधर्मा चेतना के कवि हैं।         

विशिष्ट आतिथ्य प्रदान कर रहे शा.कला एवम विज्ञान महाविद्यालय रतलाम के प्राचार्य डॉ. वाय. के. मिश्रा ने अपने उद्बोधन में कहा कि सुमनजी नई ऊर्जा और चेतना को समेटे हुए समन्वय एवं समर्पण के कवि हैं। आजकल छात्रों में पढ़ने की अभिरुचि कम हो रही है। हर विषय के छात्र को अच्छे लेखकों को पढ़ना चाहिए। चाहे वे विज्ञान के छात्र हों चाहे राजनीति समाज शास्त्र के छात्र आज हमें अपने कर्तव्य पथ पर चलने की प्रेरणा देती है सुमनजी की रचना 'कुछ भी करूंगा किंतु कर्तव्य पथ मैं भागूंगा नहीं, वरदान माँगूँगा नहीं।

विशेष अतिथि सुप्रसिद्ध साहित्यकार आशीष दशोत्तर ने कहा कि समंदर खारा होता है । और नदी मीठी होती है। नदियां समंदर में ही मिलती है। समंदर ने नदी से कहा कि तुम यूं कब तक मुझमे गिरकर खारी होती रहोगी, नदी कहती है कि जब तक तुम मीठे नहीं हो जाते। सुमनजी की रचनाशीलता का दौर बहुत विकट परिस्थियों वाला दबावों का युग था  परंतु सुमनजी न किसी के दबाव में रहे न प्रभाव में  वे अपने ही स्वभाव के कवि है वे अपनत्त्व और मिठास के कवि हैं । रतलाम सुमनजी को प्रिय रहा । वे जब रतलाम आये थे तो उन्होंने 'सुजलाम सुफलाम मलयज रतलाम' कहा था।  इस संस्थान में सुमन जी के प्रभाव और स्वभाव दोनों के ही दर्शन होते हैं। सुमनजी का व्यक्तित्व वो व्यक्तित्व है जो आसमान में नहीं उड़ता जमीन में चलना जनता है। चलना हमारा काम है आदि रचनाएं उनके जमीन से जुड़े होने का प्रमाण देती है। 

विशेष आतिथ्य प्रदान कर रहे वरिष्ठ पत्रकार पंडित मुस्तफा आरिफ़ ने कहा कि सुमनजी सबके साथ सबके होते उनमें ऊंच नीच का भाव नहीं था पद प्रतिष्ठा का अभिमान नहीं था । पथ भूल न जाना पथिक कहीं तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार आदि रचनाओं में जीवन की अद्भुत प्रेरणा एवं सम्बल है । जिस जिस से पथ पर स्नेह मिला उस उस राही को धन्यवाद में उनके अपनत्त्व एवम समता का  गहरा भाव परिलक्षित होता है। सुमनजी का बहुत सान्निध्य मुझे मिला । उन्हीं के आशीर्वाद से शोभना मेरी मानस बहन है । ये अद्भुत संयोग की बात है। 

सम्मान समारोह में विक्रम विश्वविद्यालय के कुलपति जी डॉ. अखिलेश कुमार पाण्डेय का संस्थान द्वारा पट्टाभिषेक कर स्वस्तिवाचन एवं मंत्रोच्चार के साथ सदन में विराजित सुधीजनों ने करतल ध्वनि से डॉ. सुमन अलंकरण अर्पित किया। चला करूंगा मैं इस पथ पर यूं ही सृष्टि प्रलय तक सुमनजी की अमर पंक्ति के उद्धोष के साथ सम्मान अर्पित कर संस्थान एवम  रतलाम नगर गौरवान्वित हुआ ।

इस अवसर पर  कुलपति डॉ.अखिलेश कुमार पाण्डेय एवं कुलानुशासक डॉ. शैलेन्द्र कुमार शर्मा ने दोनों संस्थानों के एम.ओ.यू. का लोकार्पण करते हुए कहा कि ये दोनों संस्थान विश्वविद्यालय के निर्देशन में काम करेंगे। 

मालवा लोकोत्सव में जन्माष्टमी पर्व के संदर्भ में लोक चेतना में श्री कृष्ण विषय को मंजू तम्बोलिया एवम समूह ने कृष्ण लीला के लोक गीतों की सरस् प्रस्तुतियां की । कृष्ण एवम गुजरी की माखन मटकी के प्रसंग को इस गीत थोडो सो माखन देईदे ओ माना गुजरी ओ रँगीली गुजरी  कृष्ण गुजरी का स्वरूप धर प्रतिष्ठा तिवारी एवं कीर्ति पंचोली ने नृत्यमय प्रस्तुति की।

संचालन डॉ. शोभना तिवारी ने किया । आभार डॉ. दिनेशचन्द्र तिवारी ने माना इस अवसर पर नगर के साहित्यकार, श्रोता,  प्राध्यापक एवं छात्रगण उपस्थित थे।

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