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पूरे विश्व में है हिंदी का अस्तित्व - कुलगुरु प्रो पांडेय

अपनी भाषा से जुड़े स्वाभिमान को जागृत करने की आवश्यकता है – प्रो ढंड 

भारतीय ज्ञान परम्परा की सदियों से संवाहिका है हिन्दी - प्रो शर्मा 

विश्वभाषा हिंदी : भारतीय ज्ञान परम्परा और संस्कृति के परिप्रेक्ष्य  पर केंद्रित राष्ट्रीय संगोष्ठी सम्पन्न, अंतरराष्ट्रीय शोध पत्रिका अक्षरवार्ता का हुआ लोकार्पण 

उज्जैन। हिंदी दिवस के अवसर पर विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन एवं शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास, नई दिल्ली द्वारा राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास, नई दिल्ली के सहयोग से विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन की हिंदी अध्ययनशाला, पत्रकारिता और जनसंचार अध्ययनशाला तथा ललित कला अध्ययनशाला द्वारा आयोजित यह संगोष्ठी विश्वभाषा हिंदी : भारतीय ज्ञान परम्परा और संस्कृति के परिप्रेक्ष्य में पर अभिकेंद्रित थी। संगोष्ठी की अध्यक्षता कुलगुरु प्रो. अखिलेश कुमार पांडेय ने की। संगोष्ठी में मुख्य वक्ता पूर्व डीएसडब्ल्यू प्रो राकेश ढंड, कुलानुशासक प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा, प्रो गीता नायक, प्रो जगदीश चंद्र शर्मा, डॉ जफर महमूद, डॉ नीरज सारवान आदि ने अपने विचार व्यक्त किए। मुख्य अतिथि पूर्व अपर कलेक्टर एवं प्रशासक श्री महाकालेश्वर मंदिर प्रबन्ध समिति डॉ रामप्रकाश तिवारी ने हिंदी पर केंद्रित एक समर्थ कविता सुनाई। 

कार्यक्रम को संबोधित करते हुए विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन के कुलगुरु प्रोफेसर अखिलेश कुमार पांडेय ने कहा कि हिंदी का अस्तित्व पूरे विश्व में है। अनेक महापुरुषों और साहित्यकारों ने हिंदी को समृद्ध किया है। देश में सर्वाधिक जनसंख्या हिंदी का प्रयोग करती है। वर्तमान में हिंदी को सर्व समावेशी रूप मिले, यह आवश्यक है। अनुसंधान कार्य अपनी भाषा के माध्यम से ही समुचित ढंग से हो सकता है। हिंदी में शोध कार्य की प्रस्तुति की दिशा में तेजी आना चाहिए।

मुख्य अतिथि वक्ता पूर्व डीएसडब्ल्यू प्रोफेसर राकेश ढंड ने कहा कि भाषा का महत्व सदैव रहा है। भारत में अनेक भाषाओं को समय-समय पर अंगीकार किया गया, किंतु आज अपनी भाषा से जुड़े स्वाभिमान को जागृत करने की आवश्यकता है। हमें भाषा से जुड़ी हीनता ग्रंथि से मुक्त होना होगा। पारिवारिक व्यवस्था भारत की विशेषता रही है जो लगातार नष्ट हो रही है। इस स्थिति को बदलने की आवश्यकता है। भारतीय ज्ञान परंपरा और अध्यात्म विवेक जागृत करते हैं। संपूर्ण विश्व को  इनके योगदान से जोड़ने की जरूरत है। भारतीय संस्कृति के प्रसार के साथ स्वाध्याय की प्रवृत्ति को पुनः जागृत करना आवश्यक है।

कुलानुशासक एवं हिंदी विभागाध्यक्ष प्रोफेसर शैलेंद्र कुमार शर्मा ने व्याख्यान देते हुए कहा कि हिंदी सहित विभिन्न भारतीय भाषाएँ भारतीय ज्ञान परम्परा की सदियों से संवाहिका हैं। सम्पूर्ण विश्व में भारतीयता की प्रतिष्ठा में हिंदी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। दर्शन, ज्ञान, विज्ञान, कला, साहित्य एवं सौंदर्य चिंतन भारतीय ज्ञान परम्परा की शक्ति है, इन्हें हिंदी लोकजनीन बना रही है। भारतीय संस्कृति की विशेषताओं को हिंदी साहित्य और कला रूपों ने देश देशांतर तक पहुंचाया है।

प्रोफ़ेसर गीता नायक ने कहा कि विश्व भाषा हिंदी के सामर्थ्य को पहचानने की आवश्यकता है। हिंदी साहित्य में भारतीय ज्ञान परम्परा के अनेक तत्व उपलब्ध हैं। उच्चारण एवं वर्तनी के स्तर पर आ रहे दोषों को दूर करने के आवश्यकता है। इसके लिए प्राथमिक शाला के स्तर से भाषा प्रयोगशाला स्थापित की जानी चाहिए।

इस अवसर पर अक्षर वार्ता अंतरराष्ट्रीय शोध पत्रिका के नवीनतम अंकों का लोकार्पण अतिथियों द्वारा किया गया। 14 सितम्बर, शनिवार को मध्याह्न में वाग्देवी भवन, विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन में आयोजित इस महत्वपूर्ण संगोष्ठी में डीएसडब्ल्यू प्रो सत्येंद्र किशोर मिश्रा, प्रो जगदीश चंद्र शर्मा, प्रो डी डी बेदिया, डॉ नीरज सारवान, प्रो शैलेंद्र भारल, डॉ विश्वजीत सिंह परमार, डॉ अजय शर्मा,  श्री एल एन सिंहरोड़िया, डॉ महिमा मरमट, डॉ नेत्रा रावणकर आदि ने भाग लिया। इस अवसर पर बड़ी संख्या में शिक्षाविद, साहित्यकार, शोधकर्ता एवं विद्यार्थी  उपस्थित रहे।

संचालन प्रो जगदीश चंद्र शर्मा ने किया। आभार प्रदर्शन प्रो जफर महमूद ने किया।

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