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राष्ट्रीय शिक्षा नीति में शिक्षकों की व्यापक भूमिका पर बल दिया गया है – कुलगुरु प्रो पांडेय

वर्तमान परिप्रेक्ष्य में शिक्षकों की भूमिका और शिक्षा नीति 2020 पर राष्ट्रीय संगोष्ठी सम्पन्न

मिट्टी द्वारा श्रीगणेश प्रतिमा निर्माण की कार्यशाला सम्पन्न 

उज्जैन। विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन में संस्था राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना उज्जैन के सहयोग से विद्यार्थी कल्याण विभाग, हिंदी अध्ययनशाला, पत्रकारिता और जनसंचार अध्ययनशाला तथा ललित कला अध्ययनशाला द्वारा राष्ट्रीय परिसंवाद का आयोजन किया गया। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में शिक्षकों की भूमिका और राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 पर अभिकेंद्रित  परिसंवाद की अध्यक्षता  कुलगुरु प्रो. अखिलेश कुमार पांडेय ने की। वाग्देवी भवन में आयोजित परिसंवाद की मुख्य अतिथि डॉ दक्षा जोशी, अहमदाबाद एवं मुख्य वक्ता कुलानुशासक प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा थे। कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि डा देवेन्द्र आचार्य, श्री ब्रजकिशोर शर्मा, प्रो गीता नायक, प्रो जगदीश चंद्र शर्मा, श्रीमती रंजना फतेपुरकर, इंदौर आदि ने विचार व्यक्त किए। इस अवसर पर मिट्टी द्वारा श्रीगणेश प्रतिमा निर्माण कार्यशाला का शुभारंभ किया गया, जिसमें अनेक शिक्षकों और विद्यार्थियों ने भाग लिया। कार्यशाला का निर्देशन रूपांतरण संस्था के श्री राजीव पाहवा ने किया। 

अध्यक्षता करते हुए कुलगुरु प्रोफेसर अखिलेश कुमार पांडेय ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति से शिक्षा के क्षेत्र में सकारात्मक परिवर्तन आ रहा है। इस नीति में शिक्षकों की व्यापक भूमिका को महत्व दिया गया है। प्राचीन गुरुकुल व्यवस्था को संकट में डाला गया, जिसे पुनः स्थापित करने की आवश्यकता है। वैचारिक प्रदूषण से मुक्ति के लिए शिक्षा महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। शिक्षा से देश की संस्कृति का निर्माण होता है।

कुलानुशासक प्रो शैलेन्द्र कुमार शर्मा ने कहा कि शिक्षकीय कर्म गहरे दायित्व बोध का कार्य है। शिक्षक केवल वे ही नहीं हैं जो संस्थाओं में पढ़ाते हैं अपितु वे भी शिक्षक हैं जो वाचिक परम्परा से पीढ़ी दर पीढ़ी कला और कौशल का हस्तांतरण कर रहे हैं। इन्हें भी शिक्षा नीति में महत्त्वपूर्ण स्थान दिया गया है। 

डा देवेन्द्र आचार्य, अहमदाबाद ने कहा कि सब कुछ संचेतना में निहित है। अपने अंतर में ज्योति जलाना पड़ेगी तभी शिक्षा से वह सब ओर प्रज्वलित होगी। शिक्षण, व्यवसाय नहीं, धर्म है। हमारे तीन शरीर हैं प्रथम भौतिक शरीर, द्वितीय मानसिक शरीर और तीसरा हमारा आभा मण्डल।

प्रो दक्षा जोशी, अहमदाबाद ने कहा कि शिक्षा का अर्थ है व्यक्तित्व का सम्पूर्ण विकास करना। विद्यार्थी न केवल उपाधि धारण करें अपितु उन्हें जीवन और विश्व के समस्त पहलुओं का अध्ययन करना चाहिये। पूरा विश्व वर्तमान में एक गाँव जैसा हो गया है। शिक्षक का कार्य न केवल कक्षा में विद्यार्थियों को पढ़ाना है अपितु अपने विद्यार्थी के अन्तरनिहित विशेष शक्ति की पहचान कर विकास करना भी है।

प्रो गीता नायक ने कहा कि पहले भी उच्च शिक्षा से सम्बन्धित विभिन्न आयोग गठित हुए, जिन्होंने अपनी रिपोर्ट पर अनेक बार शिक्षानीति में  परिवर्तन किये गये। समय के साथ एक बार पुनः शिक्षा नीति में परिवर्तन की आवश्यकता महसूस हुई और नवीन राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 की घोषणा हुई। शिक्षकों का उद्‌देश्य छात्रों को ज्ञान से संतुष्ट करना होना चाहिये।

डा ब्रजकिशोर शर्मा ने कहा कि वर्तमान पीढ़ी और पूर्व की पीढ़ी के बीच मानसिक एवं वैचारिक विचलन होता है। उसके सामंजस्य का कार्य शिक्षक का है। शिक्षक का कार्य मशीन नहीं कर सकती, शिक्षक ही कर सकता है। शिक्षक के पास तो चाभी है जो हाथ से हृदय तक जाकर उसके अन्तरमन को खोल देती है। शिक्षक सम्पूर्ण समाज को शिक्षा देता है। हर शिक्षक तभी सफल हो सकता है जब उसके अन्तर में एक विद्यार्थी हों एवं प्रत्येक विद्यार्थी तभी सफल हो सकता है जब उसके अन्तर में एक शिक्षक बैठा हो।

डा प्रभु चौधरी ने कहा कि शिक्षक कभी भी सेवानिवृत्त नहीं होता, वह पद त्यागने के बाद भी शिक्षक ही रहता है वह सर्वदा समाज को एक नई दिशा एवं ज्ञान देता है। श्रीमती गरिमा प्रपन्न ने कहा कि जिस तरह से मूर्तिकार पत्थर को गढ़‌कर भगवान बना देता है, उसी प्रकार शिक्षक अपने अनुशासन से एक अबोध बालक को ज्ञानी बना देता है।

डा सुनीता जैन ने कहा कि आज का विद्यार्थी चारों तरफ से सोशल मीडिया से हारा हुआ एवं आक्रांत है जिससे शिक्षक ही विद्यार्थी की रक्षा कर सकता है। शिक्षक का पूरा व्यक्तित्व ही एक किताब होता है जिसे छात्र पढ़‌ता है। ग्लोबलाइजेशन के फलस्वरूप आज शिक्षकों का दायरा बेहद विस्तृत हो गया है। भटकाव समाज से आता है जिसमें परिवर्तन शिक्षक ही ला सकते हैं।

संगोष्ठी के अंत में श्री ब्रज किशोर शर्मा जी द्वारा मध्य प्रदेश के यशस्वी मुख्यमंत्री डा. मोहन यादव जी के पिता श्री पूनमचंद यादव जी के असामयिक निधन पर शोक संदेश का वाचन किया गया एवं उपस्थित जनों द्वारा दो मिनट का मौन रखकर श्रद्धांजलि दी गयी।

साहित्यकार - शिक्षक श्रीमती गरिमा प्रपन्न, सुनीता जैन रतलाम, भरत दवे, मनोरमा आचार्य, अमरसिंह गुनेर, श्रीमती हंसा गुनेर (धार), शिखा कपूर, मंजरी कानूनगो, संगीता रणदिवे, डॉ. शशि निगम आदि सहित कार्यक्रम में अनेक शिक्षक, अधिकारी, शोधार्थी एवं विद्यार्थियों ने भाग लिया। संचालन प्रो जगदीश चंद्र शर्मा ने किया। आभार प्रदर्शन मंजरी कानूनगो ने किया।

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