Skip to main content

विक्रम विश्वविद्यालय में मनाया गया नवम राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस

वैश्विक स्वास्थ्य के लिए आयुर्वेद नवाचार पर हुआ महत्वपूर्ण परिसंवाद 

गैर संक्रामक व्याधियों का प्रमुख समाधान है आयुर्वेद  - डॉ जितेंद्र जैन

उज्जैन। विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन के स्वर्ण शलाका दीर्घा सभागार में नवम आयुर्वेद दिवस का आयोजन किया गया। इस अवसर पर वैश्विक स्वास्थ्य के लिए आयुर्वेद नवाचार पर केंद्रित महत्वपूर्ण परिसंवाद का आयोजन किया गया। कार्यक्रम के प्रमुख अतिथि वक्ता आयुर्वेद चिकित्सा अधिकारी डॉ जितेंद्र जैन थे। अध्यक्षता कुलगुरु डॉक्टर अर्पण भारद्वाज ने की। कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि कुलसचिव डॉ अनिल कुमार शर्मा, कुलानुशासक प्रोफेसर शैलेंद्र कुमार शर्मा, प्रोफेसर उमा शर्मा एवं डीएसडब्ल्यू प्रोफेसर सत्येंद्र किशोर मिश्रा ने विचार व्यक्त किये।

कार्यक्रम को संबोधित करते हुए आयुर्वेद चिकित्सा अधिकारी डॉ जितेंद्र जैन ने अपने व्याख्यान में कहा कि आयुर्वेद संसार की प्राचीनतम चिकित्सा पद्धति है। प्रत्येक वर्ष कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि भगवान धन्वंतरि के अवतरण दिवस को आयुर्वेद के प्राकट्य दिवस के रूप में मनाया जाता है।  धन्वंतरि जयंती के साथ ही वर्तमान में राष्ट्रीय स्तर पर नवम आयुर्वेद दिवस के रूप में मनाया जा रहा है। वर्तमान में दुनिया की 24 देशों में पारंपरिक चिकित्सा के रूप में आयुर्वेद को महत्व मिला है। वर्तमान में गैर संक्रामक व्याधियां मधुमेह, उच्च रक्तचाप, हाइपोथायरायडिज्म, पीसीओडी, कैंसर ,हृदय रोग आदि रोग बढ़ते जा रहे हैं । उपरोक्त रोग वर्तमान में विकृत जीवन शैली के कारण, अल्पपौष्टिक आहार, के कारण बढ़ते जा रहे हैं। जो व्यक्ति चलने से खड़े रहना, खड़े रहने से बैठना और बैठने से लेटना, तथा लेटने से निद्रा लेना अधिक अच्छा मानता है उसे मेदो विकार होने की संभावना बढ़ जाती है। आज  आवश्यकता है इंद्रियों को वश में करना , पैदल चलना और रसायन औषधियो जैसे आंवला, गिलोय, अश्वगंधा, का प्रयोग वैद्यकीय परामर्श के अनुसार करने की।

कुलगुरु डॉक्टर अर्पण भारद्वाज ने कहा कि आयुर्वेद का महत्व चिरायु और हितायु के लिए है। वर्तमान दौर में आयुर्वेदिक दवाइयां को सभी क्षेत्रों में महत्व मिल रहा है। आयुर्वेद का संदेश दूर-दूर तक जाए यह आवश्यक है। आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति को लेकर विश्वविद्यालय आगे निरन्तर कार्य करेगा। 

 कुलानुशासक प्रोफेसर शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि वर्ष 2016 से आयुर्वेद के प्रवर्तक धनवंतरि जयंती धनतेरस के अवसर पर राष्ट्रीय स्तर पर आयुर्वेद दिवस मनाया जाता है आयुर्वेद पद्धति संपूर्ण चिकित्सा पद्धति है विगत वर्षों में मधुमेह, तनाव प्रबंधन, दर्द प्रबंधन, दीर्घायु जीवन, सार्वजनिक स्वास्थ्य पोषण जैसे विभिन्न पक्षों को केंद्र में रखते हुए राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस मनाया जाता रहा है। इस वर्ष के आयुर्वेद दिवस की मुख्य थीम वैश्विक स्वास्थ्य के लिए आयुर्वेद नवाचार है, जिसको लेकर व्यापक सजगता जरूरी है।

कार्यक्रम का संचालन डीएसडब्ल्यू प्रोफेसर सत्येंद्र किशोर मिश्रा ने किया। आभार प्रदर्शन कुलसचिव डॉक्टर अनिल कुमार शर्मा ने किया।

इस अवसर पर विश्वविद्यालय के विभिन्न विभागों के विभागाध्यक्ष, शिक्षक, अधिकारी एवं कर्मचारी गण उपस्थित थे। कार्यक्रम में  विभाग द्वारा जारी किए गए ऋतुचर्या से संबंधित पत्रक एवं अश्वगंधा पर केंद्रित प्रजाति विशेष राष्ट्रीय अभियान के पत्रकों  का वितरण उपस्थित जनों के मध्य किया गया।

Comments

मध्यप्रदेश समाचार

देश समाचार

Popular posts from this blog

आधे अधूरे - मोहन राकेश : पाठ और समीक्षाएँ | मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे : मध्यवर्गीय जीवन के बीच स्त्री पुरुष सम्बन्धों का रूपायन

  आधे अधूरे - मोहन राकेश : पीडीएफ और समीक्षाएँ |  Adhe Adhure - Mohan Rakesh : pdf & Reviews मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा हिन्दी के बहुमुखी प्रतिभा संपन्न नाट्य लेखक और कथाकार मोहन राकेश का जन्म  8 जनवरी 1925 को अमृतसर, पंजाब में  हुआ। उन्होंने  पंजाब विश्वविद्यालय से हिन्दी और अंग्रेज़ी में एम ए उपाधि अर्जित की थी। उनकी नाट्य त्रयी -  आषाढ़ का एक दिन, लहरों के राजहंस और आधे-अधूरे भारतीय नाट्य साहित्य की उपलब्धि के रूप में मान्य हैं।   उनके उपन्यास और  कहानियों में एक निरंतर विकास मिलता है, जिससे वे आधुनिक मनुष्य की नियति के निकट से निकटतर आते गए हैं।  उनकी खूबी यह थी कि वे कथा-शिल्प के महारथी थे और उनकी भाषा में गज़ब का सधाव ही नहीं, एक शास्त्रीय अनुशासन भी है। कहानी से लेकर उपन्यास तक उनकी कथा-भूमि शहरी मध्य वर्ग है। कुछ कहानियों में भारत-विभाजन की पीड़ा बहुत सशक्त रूप में अभिव्यक्त हुई है।  मोहन राकेश की कहानियां नई कहानी को एक अपूर्व देन के रूप में स्वीकार की जाती ...

खाटू नरेश श्री श्याम बाबा की पूरी कहानी | Khatu Shyam ji | Jai Shree Shyam | Veer Barbarik Katha |

संक्षेप में श्री मोरवीनंदन श्री श्याम देव कथा ( स्कंद्पुराणोक्त - श्री वेद व्यास जी द्वारा विरचित) !! !! जय जय मोरवीनंदन, जय श्री श्याम !! !! !! खाटू वाले बाबा, जय श्री श्याम !! 'श्री मोरवीनंदन खाटू श्याम चरित्र'' एवं हम सभी श्याम प्रेमियों ' का कर्तव्य है कि श्री श्याम प्रभु खाटूवाले की सुकीर्ति एवं यश का गायन भावों के माध्यम से सभी श्री श्याम प्रेमियों के लिए करते रहे, एवं श्री मोरवीनंदन बाबा श्याम की वह शास्त्र सम्मत दिव्यकथा एवं चरित्र सभी श्री श्याम प्रेमियों तक पहुंचे, जिसे स्वयं श्री वेद व्यास जी ने स्कन्द पुराण के "माहेश्वर खंड के अंतर्गत द्वितीय उपखंड 'कौमारिक खंड'" में सुविस्तार पूर्वक बहुत ही आलौकिक ढंग से वर्णन किया है... वैसे तो, आज के इस युग में श्री मोरवीनन्दन श्यामधणी श्री खाटूवाले श्याम बाबा का नाम कौन नहीं जानता होगा... आज केवल भारत में ही नहीं अपितु समूचे विश्व के भारतीय परिवार ने श्री श्याम जी के चमत्कारों को अपने जीवन में प्रत्यक्ष रूप से देख लिया हैं.... आज पुरे भारत के सभी शहरों एवं गावों में श्री श्याम जी से सम्बंधित संस्थाओं...

दुर्गादास राठौड़ : जिण पल दुर्गो जलमियो धन बा मांझल रात - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा

अमरवीर दुर्गादास राठौड़ : जिण पल दुर्गो जलमियो धन बा मांझल रात। - प्रो शैलेन्द्रकुमार शर्मा माई ऐड़ा पूत जण, जेहड़ा दुरगादास। मार मंडासो थामियो, बिण थम्बा आकास।। आठ पहर चौसठ घड़ी घुड़ले ऊपर वास। सैल अणी हूँ सेंकतो बाटी दुर्गादास।। भारत भूमि के पुण्य प्रतापी वीरों में दुर्गादास राठौड़ (13 अगस्त 1638 – 22 नवम्बर 1718)  के नाम-रूप का स्मरण आते ही अपूर्व रोमांच भर आता है। भारतीय इतिहास का एक ऐसा अमर वीर, जो स्वदेशाभिमान और स्वाधीनता का पर्याय है, जो प्रलोभन और पलायन से परे प्रतिकार और उत्सर्ग को अपने जीवन की सार्थकता मानता है। दुर्गादास राठौड़ सही अर्थों में राष्ट्र परायणता के पूरे इतिहास में अनन्य, अनोखे हैं। इसीलिए लोक कण्ठ पर यह बार बार दोहराया जाता है कि हे माताओ! तुम्हारी कोख से दुर्गादास जैसा पुत्र जन्मे, जिसने अकेले बिना खम्भों के मात्र अपनी पगड़ी की गेंडुरी (बोझ उठाने के लिए सिर पर रखी जाने वाली गोल गद्देदार वस्तु) पर आकाश को अपने सिर पर थाम लिया था। या फिर लोक उस दुर्गादास को याद करता है, जो राजमहलों में नहीं,  वरन् आठों पहर और चौंसठ घड़ी घोड़े पर वास करता है और उस पर ही बैठकर बाट...