उज्जैन। पं. जवाहरलाल नेहरू व्यवसाय प्रबंध संस्थान (जेएनआईबीएम), विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन में 155वीं गांधी जयंती और 120वीं लालबहादुर शास्त्री जयंती की पूर्व संध्या पर एक विशेष व्याख्यान आयोजित किया गया। इस अवसर पर अमेरिका के सिएटल शहर से आए युवा आर्किटेक्ट श्री दुष्यंत परमार ने गांधी जी के जीवन और उनके विचारों पर प्रकाश डाला।
प्रिंसीपाल आर्किटेक्ट सॉल्यूशंस एमेजॉन वेबसर्विसेज सिएटल (अमेरिका) श्री दुष्यंत परमार अतिथि वक्ता |
श्री परमार ने कहा कि राष्ट्रपिता गांधीजी ने लाखों भारतीयों के दिलों में आशा और गर्व जगाने के लिए जिन प्रतीकों का इस्तेमाल किया, उनमें से एक मशीन - प्रसिद्ध चरखा - ही सबसे अधिक पहचाना जाने वाला प्रतीक बन गया। उन्होंने चरखे को एक नए कल की आशा के प्रतीक के रूप में इस्तेमाल किया। गांधी जी के जीवन पर करीब से नज़र डालते हुए, श्री परमार ने बताया कि आधुनिक उपकरणों के बारे में गांधी जी ने ही सबसे विस्तृत मशीनरी चरखा के इस्तेमाल को हाथ से कताई के एकमात्र तैयार साधन के रूप में सुझाया था।
संस्थान के निदेशक प्रो. डॉ. धर्मेंद्र मेहता ने प्रतिभावान युवा भूमिपुत्र श्री दुष्यंत परमार का इस विशेष व्याख्यान प्रसंग में अतिथि परिचय देते हुए, सादगी, सदाचार, शुचिता और कर्तव्यनिष्ठा के प्रतीक पुरुष, 'जय जवान-जय किसान' के उद्घोष से राष्ट्र में नव चेतना का संचार करने वाले भारत के दूसरे प्रधानमंत्री, 'भारत रत्न' लाल बहादुर शास्त्री जी की 120वीं जयंती पर उनके प्रति भी सादर नमन व्यक्त किया।
उन्होंने शास्त्री जी की ईमानदारी, सादगी और नेतृत्व वाले गुणों की चर्चा की, विशेष रूप से 1965 के भारत-पाक संघर्ष में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका को नई पीढ़ी के साथ साझा किया। इस अवसर पर डा. निश्चल यादव, डा. नयनतारा डामोर, श्री राकेश खोती और गोविंद तोमर उपस्थित थे।
छात्रों युवराज सिंह, पृथ्वी राज गुर्जर, श्रेया जोशी और शिवानी राठौर ने प्रश्नोत्तर सत्र में सक्रिय सहभागिता करते हुए इस विशेष व्याख्यान प्रसंग हेतु निदेशक प्रो. मेहता और संस्थान के प्रति आभार व्यक्त किया।
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