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ओ स्त्री तुम बार बार आना - मेधा बाजपेई


✍️ मेधा बाजपेई 

वर्ष 2024 की सबसे सफल फिल्मों में से एक स्त्री 2 को एक साधारण श्रेणी में बांधना मुश्किल है, क्योंकि इसमें कई विभिन्न तत्वों का सम्मिश्रण है। यह फिल्म प्रेम कहानी, हॉरर कॉमेडी, और समाज के बदलते स्वरूप को फिक्शन के माध्यम से प्रदर्शित करने वाली एक बेहतरीन कृति है। सीधी कहानी के घुमावदार अर्थ बहुत कुछ कह जाते हैं।“सरकटे का आतंक” की कहानी एक छोटे से गाँव में फैले भूतिया डर और उस पर आधारित मान्यताओं के इर्द-गिर्द घूमती है। गाँव के लोग मानते हैं कि एक अदृश्य शक्ति उन्हें अपनी भेंट चढ़ा रही है, जिससे इस आतंक के बीच, विक्की और उसके दोस्त इस रहस्य की जांच करने का निर्णय लेते हैं। जैसे-जैसे वे सच्चाई के करीब पहुँचते हैं, उन्हें पता चलता है कि यह डर केवल एक पितृसत्तात्मक मानसिकता का परिणाम है।

“स्त्री 2” में प्रेम का एक प्रमुख तत्व शामिल है, जो मुख्य रूप से विक्की (राजकुमार राव) और रहस्यमयी स्त्री (श्रद्धा कपूर) के बीच देखा जाता है। विक्की एक साधारण लड़का है, जो रहस्यमयी स्त्री से आकर्षित होता है,और इस हद तक समर्पित है की प्रेम को पाने के लिए एकादशी का व्रत रखता है, छोटे और मझोले शहर के लड़के लड़कियां अपने को उस कैरेक्टर से जोड़ पाते हैं  प्रेम कहानी उस समय और दिलचस्प हो जाती है, जब दर्शक जानने की कोशिश करते हैं कि श्रद्धा का किरदार वास्तव में कौन है क्या वह एक आम लड़की है, या कुछ और? प्रेम के इस अनोखे और रहस्यमयी तत्व ने फिल्म को रोमांचक बना दिया है, प्रेम कहानी अचानक से हॉरर कॉमेडी में बदलती है |    फिल्म के डरावने दृश्य और हास्य के बीच एक संतुलन देखने को मिलता है। रुद्र (पंकज त्रिपाठी) और विक्की के दोस्तों जना और बिट्टू के संवाद और व्यवहार फिल्म में हास्य का स्रोत हैं, जो भूतिया घटनाओं के बीच दर्शकों को हंसाने का काम करते हैं। फिल्म डरावनी घटनाओं से भरी है, लेकिन हास्यपूर्ण तत्व इसे एक हल्के-फुल्के मनोरंजन में बदल देते हैं।

“ओ स्त्री रक्षा करना “यह समाज में महिलाओं की भूमिका, उनकी ताकत, पुरुष मानसिकता पर एक प्रकार की व्यंग्यात्मक टिप्पणी करती है। फिल्म में स्त्री एक रहस्यमयी शक्ति के रूप में प्रस्तुत की गई है, जो पुरुषों को उठा ले जाती है, और पुरुष समाज उससे डरता है। यह प्रतीकात्मक रूप से दर्शाता है कि समाज में महिलाओं की बढ़ती स्वतंत्रता और शक्ति से पुरुष किस प्रकार भयभीत हो जाते हैं। उसी स्त्री के चुनौती देने सरकटे की एंट्री होती है। स्त्री 2 जैसी फिल्में आज के युग में इसलिए प्रासंगिक हैं क्योंकि यह समाज में महिला सशक्तिकरण और उनकी अस्मिता पर आधारित बहसों को सामने लाती हैं। आधुनिक समाज में महिलाएं लगातार अपने हक और सम्मान के लिए संघर्ष कर रही हैं। फिल्म  यह दिखाती है कि यदि महिलाएं अपने अधिकारों से वंचित होती हैं या उनके साथ अन्याय किया जाता है, तो वे एक अदृश्य शक्ति के रूप में सामने आ सकती हैं। फिल्म में सरकटा केवल आधुनिक लड़कियों को इसलिए ले जाता है क्योंकि वह उन लड़कियों का प्रतिनिधित्व करती हैं जो समाज की पारंपरिक सोच से अलग होकर अपने जीवन को अपनी शर्तों पर जीना चाहती हैं। यह संकेत देता है कि समाज में आज भी आधुनिक महिलाओं को चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, खासकर जब वे समाज की पारंपरिक सीमाओं को चुनौती देती हैं। इस प्रकार, फिल्म केवल मनोरंजन के रूप में नहीं देखी जानी चाहिए, बल्कि यह महिलाओं के  समाज की बदलती सोच पर एक गहरी टिप्पणी भी करती है।

फिल्म को एक सटीक श्रेणी में रखना संभव नहीं है,  दर्शकों को एक व्यापक और दिलचस्प अनुभव प्रदान करती है। 2 कहानियाँ एक साथ चलतीं है और कथानक को पूर्ण करती हैं |फिल्म का छायांकन  प्रभावी है। गाँव का  वातावरण, रात के अंधेरे में दृश्यों की प्रस्तुति और ग्रामीण जीवन की प्राकृतिक सुंदरता को कैमरे ने बखूबी कैप्चर किया है। सिनेमैटोग्राफी फिल्म की हॉरर थीम को और प्रभावी बनाती है फिल्म का संपादन काफी कसा हुआ है, हालांकि मध्य भाग में कुछ दृश्यों को छोटा किया जा सकता था।  फिल्म के संवाद  मजेदार  हैं। कई संवाद दर्शकों को याद रह जाएंगे, खासकर पंकज त्रिपाठी के वन-लाइनर्स। संवाद फिल्म की कहानी और पात्रों के स्वभाव के अनुरूप हैं और हास्य दृश्यों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

 फिल्म में स्पेशल विजुअल इफेक्ट्स का इस्तेमाल   वास्तविक और प्रभावी लगता है। कहानी मध्य प्रदेश के चंदेरी गाँव के इर्द-गिर्द घूमती है,  मुख्य पात्र विक्की (राजकुमार राव) अपने दोस्तों जना (अभिषेक बनर्जी) और बिट्टू (अपारशक्ति खुराना) के साथ इस रहस्यमय घटना को समझने की कोशिश करता है, जबकि रुद्र (पंकज त्रिपाठी) धार्मिक ग्रंथों से समाधान ढूंढने का प्रयास करता है। इस बार कहानी में और अधिक रहस्य जुड़ता है, जब विक्की की मुलाकात उस रहस्यमयी स्त्री (श्रद्धा कपूर) से होती है, जो असल में कौन है, यह पूरी फिल्म का सस्पेंस बना रहता है।

फिल्म का अनूठा प्लॉट और “ओ स्त्री कल आना” जैसे प्रतीकात्मक वाक्यांश समाज में महिलाओं की स्थिति पर टिप्पणी करते हैं। कुछ दर्शक इसे सामाजिक मुद्दों के साथ जोड़कर पसंद कर सकते हैं, जबकि कुछ इसे केवल मनोरंजन के रूप में देख सकते हैं।  सरकटा द्वारा पूरे चंदेरी गाँव में पुरुषों की सोच को 200 साल पीछे कर देने का सांकेतिक अर्थ काफी गहरा है। यह समाज में महिलाओं और पुरुषों के बीच शक्ति संतुलन,  विचारधाराओं की लड़ाई का प्रतीक है। इस कथानक के जरिए फिल्म में समाज के कुछ महत्वपूर्ण मुद्दों पर परोक्ष रूप से टिप्पणी की गई है।

 “ सरकटा “ उस मानसिकता का प्रतिनिधित्व करता है जो महिलाओं को अपने पुराने ढांचे में रखना चाहता है।  एक जगह पुरुष और स्त्री को समान रूप से अर्ध नारीश्वर के रूप मे बुरी शक्तियों से लड़ते दिखाया गया है,जो यह प्रदर्शित करता है की समाज में स्त्री पुरुष दोनों की शक्तियों की समान रूप से आवश्यकता है तभी समाज संतुलित रहेगा। फिल्म में श्रद्धा कपूर का किरदार एक पिशाचनी के रूप में दिखाया गया है, जो आधे समय रहस्यमय और आकर्षक दिखाई देती है, और बाकी समय एक खतरनाक और अज्ञात शक्ति के रूप में उभरती है। श्रद्धा के इस किरदार में एक अद्वितीय आकर्षण है, जो दर्शकों को यह सोचने पर मजबूर करता है कि वह वास्तव में किस ओर है वह विक्की और उसके दोस्तों की मदद कर रही है या उनकी दुश्मन है श्रद्धा का रहस्यमयी रूप इस बात का भी प्रतीक है कि कैसे महिलाएं समाज में खुद को सुरक्षित रखने के लिए कभी-कभी विभिन्न भूमिकाओं को अपनाती हैं। उसके अंदर छिपी हुई ताकतें और उसका असली मकसद अंत तक स्पष्ट नहीं होता, जो उसके किरदार की जटिलता को बढ़ाता है।

फिल्म के अंतिम चरण में श्रद्धा कपूर की माँ स्त्री की एंट्री एक बहुत महत्वपूर्ण मोड़ है।  उसकी एंट्री से पता चलता है कि स्त्री शक्ति केवल व्यक्तिगत नहीं है, बल्कि पीढ़ियों से चली आ रही है। यह शक्ति एक माँ से उसकी बेटी में स्थानांतरित होती है, जो महिला शक्ति की अंतर्निहित धारा को दर्शाती है।श्रद्धा कपूर की माँ का आना न केवल उनकी बेटी की मदद करने के लिए है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि एक महिला अपनी अंतिम लड़ाई लड़ने के लिए जब खड़ी होती है, तो वह अकेली नहीं होती।

एक अन्य महत्त्वपूर्ण पात्र अक्षय कुमार का है ,उसका पागलखाने में होना भी गहरे सांकेतिक अर्थ रखता है।   कि जब कोई व्यक्ति समाज की पारंपरिक धारणाओं और अत्याचारों के खिलाफ आवाज उठाता है, तो उसे मानसिक रूप से अस्थिर या ‘पागल’ करार दिया जाता है। फिल्म में अक्षय का यह पक्ष महत्वपूर्ण है, क्योंकि वह केवल आलोचना नहीं करता, बल्कि समाधान की ओर भी इशारा करता है।  अपने पूर्वजों की धरोहर को केवल मान्यता नहीं देता, बल्कि उन गलतियों से सीखता है और समाज को एक नई दिशा में ले जाने का प्रयास करता है। उसका पागलखाने में होना इस बात का प्रतीक है कि समाज के ऐसे बदलावकारी विचारों को आसानी से नहीं स्वीकारा जाता, बल्कि उन्हें दबाने या हाशिए पर रखने की कोशिश की जाती है। 

  राजकुमार राव श्रद्धा कपूर पंकज त्रिपाठी ,अभिषेक बनर्जी और अपारशक्ति खुराना जैसे कलाकारों ने अपने किरदारों में जान डाल दी है। राजकुमार और पंकज त्रिपाठी के प्रदर्शन की तारीफ की जाती है, खासकर उनके द्वारा फिल्म में हास्य और गहराई दोनों का संतुलन।  श्रद्धा कपूर की भूमिका रहस्यमयी और महत्वपूर्ण है, और उन्होंने अपने किरदार को बखूबी निभाया है।   फिल्म का निर्देशन दर्शकों को बांधे रखने में सफल रहता है। अमर कौशिक ने हॉरर और कॉमेडी के मिश्रण को शानदार ढंग से प्रस्तुत किया है।  कम बजट की फिल्म ने अचानक से दर्शकों को थिएटर जाने के लिए मजबूर कर दिया। फिल्म की गति और सस्पेंस को संभालने का तरीका सराहनीय है।

राजकुमार राव और पंकज त्रिपाठी ने अपने किरदारों को जीवंत बनाया है। राजकुमार का भोला-भाला लेकिन जिज्ञासु स्वभाव और पंकज त्रिपाठी का हास्य से भरपूर गंभीर व्यक्तित्व  बचपन में पढ़ी कहानी लाल बुझक्कड की याद दिलाते हैं अमर कौशिक का निर्देशन शानदार है। चंदेरी और भोपाल जैसी वास्तविक लोकेशंस ने फिल्म को असली गांव का माहौल दिया है, जिससे दर्शकों को फिल्म से गहरा जुड़ाव महसूस होता है। फिल्म का संगीत अच्छा है और सिचुएशन के साथ मेल खाता है। बैकग्राउंड स्कोर रहस्यमय वातावरण को और अधिक गहरा बनाता है। मुझे कहानी में थोड़ी कसावट की जरूरत लगी । फिर  भी  इस  फिल्म  को 4/5  रेटिंग दी जा सकती है।

(लेखक मनोवैज्ञानिक सलाहकार, समीक्षक एवम ज्ञानोदय विद्यालय भोपाल में वरिष्ठ व्याख्याता हैं।)


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