इक्कीसवीं सदी की चुनौतियां : हिंदी भाषा और साहित्य पर अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी सम्पन्न
राष्ट्रीय शिक्षा संचेतना के तत्वावधान में अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित की गई। विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन के कुलानुशासक एवं संस्थाध्यक्ष डॉ. शैलेंद्र कुमार शर्मा के जन्म दिवस के अवसर पर सम्पन्न इस संगोष्ठी का विषय इक्कीसवीं सदी की चुनौतियां और हिंदी भाषा और साहित्य था। संगोष्ठी में कई राज्यों के विद्वानों ने भाग लिया।
अपना व्याख्यान देते हुए प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा ने कहा कि इक्कीसवीं सदी में मानवीय सभ्यता के सामने अनेक चुनौतियां हैं। स्वाभिमान, ज्ञान, नीति, तप जैसे जीवन मूल्य ऐसा लगता है धीरे-धीरे गुफा में चले जा रहे हैं। भारत को इन्हें बचाकर बाहर लाना होगा। साहित्य, शिक्षा और संस्कृति का दायित्व है कि नैतिकता, सत्य और धर्म को जीवन्त रखें। मानवता, प्रेम और भाईचारे अंधी गुफा से बाहर निकाल कर फिर से नई दुनिया को रचना है। भौतिकता, युद्ध और आतंक के बीच भारत वर्तमान सदी में फिर से नयी ज्योति प्रज्वलित करेगा ।
वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश चंद शुक्ल शरद आलोक ऑस्लो, नार्वे ने कहा कि हमें अपने अपने हिस्से की जिम्मेदारी निभानी चाहिए।
श्री पदमचंद गांधी, जयपुर, राजस्थान, राष्ट्रीय संयोजक, राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना ने कहा, भाषाओं में बंध गए, हम राजभाषा को भूल रहे हम।
श्री बी के शर्मा, पूर्व शिक्षा अधिकारी, उज्जैन ने कहा कि साहित्य मनुष्य को ऊर्ध्वगामी बनाता हैं परंतु मनुष्य की कमजोरी साहित्य को निम्नगामी बनाता हैं।
मुख्य वक्ता डॉ. हरिसिंह पाल, महामंत्री , नागरी लिपि परिषद् नई दिल्ली ने कहा, हमें हमारे आदिवासी साहित्य और संस्कृति एवं हमारे लोक कवियों को भी हमें पढ़ना चाहिए। इस क्षेत्र में प्रो शर्मा ने महत्वपूर्ण कार्य किया है।
डॉ. प्रभु चौधरी, कोषाध्यक्ष, राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना ने कहा कि प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा ने साहित्य, संस्कृति और शिक्षा के भारतीय सरोकारों को लेकर सदैव सजग किया है। उन्होंने कई अज्ञात और अल्पज्ञात अध्ययन क्षेत्रों में शोध कार्य किया है।
डॉ रणजीत सिंह अरोड़ा, पुणे, महाराष्ट्र ने प्रो शर्मा के योगदान पर प्रकाश डाला। उन्होंने काव्योद्गार में गाया कि भाई ज्ञान के अधिकारी हो, साहित्य के मंच के सच्चे पुजारी हो।
डॉ. मुक्ता कान्हा कौशिक, रायपुर ने कहा भाषा का संबंध मनुष्य और समाज से है। यह सामाजिक निधि है।
श्रीमती पूनम, उदयपुर ने कहा कि राह संघर्ष की जो चलता है, वही संसार बदलता है।
डॉ. अरुणा शुक्ला, नांदेड़, संयोजक, महाराष्ट्र ने अध्यक्षीय भाषण में कहा कि ज्ञानार्जन और कौशल विकास के लिए हमें ज्यादा समय देना चाहिए। हिंदी की ख्याति का झंडा लहराता रहना चाहिए।
समता जैन ने कहा कि मालवी भाषा को गौरवान्वित किया है प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा ने।
कार्यक्रम का उत्तम संचालन डॉ. रश्मि चौबे, गाजियाबाद राष्ट्रीय प्रवक्ता, राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना किया। स्वागत भाषण डॉ. प्रभु चौधरी, कोषाध्यक्ष, राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना ने दिया। प्रस्तावना डॉ.शहनाज, महासचिव, राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना ने प्रस्तुत की।
आभार डॉ. प्रभु चौधरी, कोषाध्यक्ष, राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना ने माना। कार्यक्रम में डॉ. शैलेंद्र कुमार शर्मा के अनेक शिष्यों सहित डॉ. दिग्विजय द्विवेदी, जितेंद्र कुमार, वेद सिंह आदि अनेक गणमान्य उपस्थित रहे।
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