अखिल भारतीय कालिदास समारोह में आयोजित राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी के प्रथम सत्र में हुआ कालिदास के युग परिवेश, संस्कृति और समकालीन प्रासंगिकता पर मंथन
शैव दर्शन और प्रत्यभिज्ञा सिद्धांत के उद्देश्य हैं व्यापक और कालिदास की वाणी पर है उनका प्रभाव - फिलिप रोचिन्स्की
कालिदास की रचनाओं में उपस्थित उन तत्वों को देखें, जो उन्हें बनाते हैं कालजयी और प्रासंगिक– कुलगुरु प्रो मेनन
उज्जैन। मध्यप्रदेश शासन के तत्वावधान में विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन एवं कालिदास संस्कृत अकादमी द्वारा आयोजित अखिल भारतीय कालिदास समारोह के आयोजन के अंतर्गत विक्रम विश्वविद्यालय द्वारा राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी का प्रथम सत्र आयोजित किए गया। इस सत्र में कालिदास के युग परिवेश, संस्कृति, इतिहास, शासन व्यवस्था और उनकी समकालीन प्रासंगिकता पर व्यापक मंथन हुआ। प्रथम सत्र की अध्यक्षता काशी हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी के संस्कृत विभागाध्यक्ष प्रोफेसर उपेंद्र पांडेय ने की। कार्यक्रम के सारस्वत अतिथि महर्षि पाणिनि संस्कृत एवं वैदिक विश्वविद्यालय के कुलगुरु प्रोफेसर विजय कुमार मेनन सीजी थे। विशिष्ट अतिथि वारसा विश्वविद्यालय, पोलैंड के फिलिप रोचिन्स्की - शिवानंद शास्त्री, पद्मश्री से सम्मानित विद्वान डॉक्टर भगवतीलाल राजपुरोहित, पुरातत्वविद डॉ नारायण व्यास, भोपाल, विक्रम विश्वविद्यालय के कुलानुशासक प्रोफेसर शैलेंद्र कुमार शर्मा ने विचार व्यक्त किए।
सारस्वत अतिथि कुलगुरु डॉ. विजयकुमार मेनन सी. जी. ने अपने वक्तव्य में कालिदास की कालजयिता पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि शोधकर्ताओं को महाकवि कालिदास की वाणी में उपस्थित उन तत्वों को देखना चाहिए जो उन्हें कालजयी और वर्तमान में प्रासंगिक बनाते हैं। उन्होंने आनन्दवर्धन का उदाहरण देते हुए कालिदास के कालजयी होने के कारणों की चर्चा की।
पोलैंड के विद्वान फिलिप रोचेस्की ने अपने उद्बोधन में महाकवि कालिदास और अभिनवगुप्त के अन्तःसम्बन्धों पर बात की। उन्होंने कहा कि दर्शन, नाट्यशास्त्रीय और काव्यशास्त्रीय दृष्टि से दोनों में गहरा संबंध है। शैव सिद्धांत और प्रत्यभिज्ञा दर्शन का उद्देश्य अत्यंत व्यापक है, जो कालिदास की कृतियों में उपस्थिति है।
पद्मश्री डॉ. भगवतीलाल राजपुरोहित ने अपने उद्बोधन में कालिदास की कृतियों अभिज्ञानशाकुंतलम्, विक्रमोर्वशीयम् और मेघदूतम् के माध्यम से विक्रमादित्य और कालिदास के संबंधों को अनेक प्रमाणों के आधार पर प्रस्तुत किया।
प्रो. उपेन्द्र पांडेय, वाराणसी ने अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में महाकवि कालिदास और तुलसीदास में साम्य तत्वों पर बात करते हुए दोनों के कवि कर्म पर विस्तृत चर्चा की।
कालिदास समिति के सचिव प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा ने कहा कि सार्वभौमिक मूल्यों और शाश्वत सत्य की व्यंजना महाकवि कालिदास ने की है। वे जहाँ देवता में भक्ति, मातृस्वरूपा गाय की सेवा सुश्रुषा, गुरु वाक्य के प्रति अपार आदर व्यक्त करते हैं, वहीं परोपकार, प्रजा वात्सल्य, आत्म त्याग और कर्तव्यपरायणता को महत्वपूर्ण मानते हैं।
डॉ. नारायण व्यास, भोपाल ने अपने उद्बोधन में उज्जयिनी और कालिदास के सम्बन्धों की प्रामाणिकता पुरातत्व के साक्ष्यों और उदाहरणों द्वारा बताई।
इस सत्र में रूपा पटनी, वडोदरा, डॉ. वीणा सिंह, मंदसौर, डॉ. टीकमणि पटवारी, छिंदवाड़ा, प्रो. के येदूकोन्डलु, आंध्रप्रदेश आदि ने अपने महत्वपूर्ण शोधपत्र प्रस्तुत किए।
इस अवसर पर अतिथियों को साहित्य एवं पुष्पमाल अर्पित करते हुए उनका सम्मान कालिदास समिति के सचिव प्रोफेसर शैलेंद्र कुमार शर्मा, संयोजक प्रोफेसर जगदीश चंद्र शर्मा, प्रो बी के आंजना, प्रो अंजना पांडेय आदि ने किया। कार्यक्रम में विक्रम विश्वविद्यालय के रिसर्च जर्नल विक्रम के कालिदास विशेषांक का विमोचन अतिथियों द्वारा किया गया।
सत्र का संचालन ललित कला अध्ययनशाला के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर जगदीश चंद्र शर्मा ने किया। आभार प्रदर्शन डॉ महेंद्र पंड्या ने किया। इस अवसर पर देश के विभिन्न राज्यों के विद्वान, शिक्षक, प्रबुद्ध जन और शोधार्थी बड़ी संख्या में उपस्थित थे।
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