Skip to main content

मध्यप्रदेश विधान सभा में उत्साह पूर्वक बनाया गया संविधान दिवस

संविधान निर्माण में हमारे प्रदेश का महत्वपूर्ण योगदान - अवधेश प्रताप सिंह, प्रमुख सचिव, विधान सभा मध्यप्रदेश

🙏 द्वारा, राधेश्याम चौऋषिया, वरिष्ठ पत्रकार 🙏

भोपाल ।  संविधान को अंगीकार किये हुये 75 वर्ष पूर्ण होने के अवसर पर मध्यप्रदेश विधानसभा में उत्साहपूर्वक संविधान दिवस मनाया गया। कार्यक्रम का प्रांरभ श्री ए.पी. सिंह, प्रमुख सचिव, विधान सभा के साथ विधान सभा सचिवालय के अधिकारियों एवं कर्मचारियों द्वारा संविधान प्रारूपण समिति के अध्यक्ष भारत रत्न डॉ. भीमराव अंबेडकर की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर उनके प्रति कृतज्ञता के साथ हुआ। तत्पश्चात् विधान सभा के सभागार में प्रमुख सचिव, विधान सभा द्वारा संविधान के संबंध में तथ्य परक जानकारी देते हुये सामूहिक रूप से संविधान की उद्देशिका का वाचन कराया गया।

इस अवसर पर विधानसभा के प्रमुख सचिव श्री अवधेश प्रताप सिंह जी ने उल्लेख किया कि, अभी संविधान का अमृतकाल चल रहा है। हमारे प्रदेश के अनेक राजनेता संविधान सभा के सदस्य रहे हैं, हमारे देश में लोकतांत्रिक प्रणाली की सफलता का श्रेय मुख्य रूप से संविधान में निर्धारित सुदृढ़ व्यवस्था व संस्थागत ढांचे को जाता है। हमारे संविधान निर्माताओं ने चुनौतीपूर्ण कार्य को कुशलतापूर्वक पूरा कर राष्ट्र के करोड़ो देशवासियों की आकांक्षाओं एवं आशाओं के अनुरूप जो संविधान दिया वह हमारे राष्ट्र का पथ प्रशस्त कर रहा है।

प्रमुख सचिव श्री सिंह ने कहा, हमारे लिये विशेष गौरव का क्षण है कि संविधान की प्रारूप समिति के अध्यक्ष मध्य प्रदेश में जन्में भारत के प्रथम विधि मंत्री, डॉ. भीमराव अम्बेडकर थे, वहीं संविधान सभा में हमारे यहां से पं. रविशंकर शुक्ल, रत्न लाल मालवीय, विनायक सरवटे, डॉ. हरिसिंह गौर, शंभूनाथ शुक्ल, डॉ. लाल सिंह, रामसहाय तिवारी, सीताराम जाजू, सेठ गोविंद दास जैसे दिग्गज राजनेता इसके सदस्य थे। संविधान सभा द्वारा अंतिम रूप से पारित किये जाने के पश्चात् 26 नवम्बर, 1949 को अंगीकार किया गया। इसके निर्माण में 2 साल 11 माह और 18 दिन का समय लगा। हम देश के इस सर्वोच्च कानून को मूर्तरूप देने में अपना बहूमूल्य  योगदान देने वाले संविधान निर्माताओं के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हैं।

तदुपरांत प्रमुख सचिव श्री सिंह ने उल्लेख किया कि, देश में संविधान को अंगीकार किये जाने के 75 वर्ष पूर्ण होने के अवसर पर ‘’हमारा संविधान - हमारा अभिमान’’ के तहत आज राष्ट्रीय संविधान दिवस मनाया जा रहा है। इसके दर्शन एवं संकल्‍प इसकी उद्देशिका में समाहित है। इसके साथ ही प्रमुख सचिव द्वारा अधिकारी-कर्मचारियों को संविधान की उद्देशिका का सामूहिक वाचन कराया गया। कार्यक्रम राष्ट्रगान गायन के पश्चात् समाप्त हुआ।

✍ राधेश्याम चौऋषिया 

Radheshyam Chourasiya

Radheshyam Chourasiya II

● सम्पादक, बेख़बरों की खबर
● राज्य स्तरीय अधिमान्य पत्रकार, जनसम्पर्क विभाग, मध्यप्रदेश शासन
● राज्य मीडिया प्रभारी, भारत स्काउट एवं गाइड मध्यप्रदेश
● मध्यप्रदेश ब्यूरों प्रमुख, दैनिक निर्णायक
● मध्यप्रदेश ब्यूरों प्रमुख, दैनिक मालव क्रान्ति

🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩

"बेख़बरों की खबर" फेसबुक पेज...👇

Bekhabaron Ki Khabar - बेख़बरों की खबर

"बेख़बरों की खबर" न्यूज़ पोर्टल/वेबसाइट... 👇

https://www.bkknews.page

"बेख़बरों की खबर" ई-मैगजीन पढ़ने के लिए नीचे दी गई लिंक पर क्लिक करें...👇https://www.readwhere.com/publi.../6480/Bekhabaron-Ki-Khabar

🚩🚩🚩🚩 आभार, धन्यवाद, सादर प्रणाम। 🚩🚩🚩🚩

Comments

मध्यप्रदेश समाचार

देश समाचार

Popular posts from this blog

आधे अधूरे - मोहन राकेश : पाठ और समीक्षाएँ | मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे : मध्यवर्गीय जीवन के बीच स्त्री पुरुष सम्बन्धों का रूपायन

  आधे अधूरे - मोहन राकेश : पीडीएफ और समीक्षाएँ |  Adhe Adhure - Mohan Rakesh : pdf & Reviews मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा हिन्दी के बहुमुखी प्रतिभा संपन्न नाट्य लेखक और कथाकार मोहन राकेश का जन्म  8 जनवरी 1925 को अमृतसर, पंजाब में  हुआ। उन्होंने  पंजाब विश्वविद्यालय से हिन्दी और अंग्रेज़ी में एम ए उपाधि अर्जित की थी। उनकी नाट्य त्रयी -  आषाढ़ का एक दिन, लहरों के राजहंस और आधे-अधूरे भारतीय नाट्य साहित्य की उपलब्धि के रूप में मान्य हैं।   उनके उपन्यास और  कहानियों में एक निरंतर विकास मिलता है, जिससे वे आधुनिक मनुष्य की नियति के निकट से निकटतर आते गए हैं।  उनकी खूबी यह थी कि वे कथा-शिल्प के महारथी थे और उनकी भाषा में गज़ब का सधाव ही नहीं, एक शास्त्रीय अनुशासन भी है। कहानी से लेकर उपन्यास तक उनकी कथा-भूमि शहरी मध्य वर्ग है। कुछ कहानियों में भारत-विभाजन की पीड़ा बहुत सशक्त रूप में अभिव्यक्त हुई है।  मोहन राकेश की कहानियां नई कहानी को एक अपूर्व देन के रूप में स्वीकार की जाती ...

खाटू नरेश श्री श्याम बाबा की पूरी कहानी | Khatu Shyam ji | Jai Shree Shyam | Veer Barbarik Katha |

संक्षेप में श्री मोरवीनंदन श्री श्याम देव कथा ( स्कंद्पुराणोक्त - श्री वेद व्यास जी द्वारा विरचित) !! !! जय जय मोरवीनंदन, जय श्री श्याम !! !! !! खाटू वाले बाबा, जय श्री श्याम !! 'श्री मोरवीनंदन खाटू श्याम चरित्र'' एवं हम सभी श्याम प्रेमियों ' का कर्तव्य है कि श्री श्याम प्रभु खाटूवाले की सुकीर्ति एवं यश का गायन भावों के माध्यम से सभी श्री श्याम प्रेमियों के लिए करते रहे, एवं श्री मोरवीनंदन बाबा श्याम की वह शास्त्र सम्मत दिव्यकथा एवं चरित्र सभी श्री श्याम प्रेमियों तक पहुंचे, जिसे स्वयं श्री वेद व्यास जी ने स्कन्द पुराण के "माहेश्वर खंड के अंतर्गत द्वितीय उपखंड 'कौमारिक खंड'" में सुविस्तार पूर्वक बहुत ही आलौकिक ढंग से वर्णन किया है... वैसे तो, आज के इस युग में श्री मोरवीनन्दन श्यामधणी श्री खाटूवाले श्याम बाबा का नाम कौन नहीं जानता होगा... आज केवल भारत में ही नहीं अपितु समूचे विश्व के भारतीय परिवार ने श्री श्याम जी के चमत्कारों को अपने जीवन में प्रत्यक्ष रूप से देख लिया हैं.... आज पुरे भारत के सभी शहरों एवं गावों में श्री श्याम जी से सम्बंधित संस्थाओं...

दुर्गादास राठौड़ : जिण पल दुर्गो जलमियो धन बा मांझल रात - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा

अमरवीर दुर्गादास राठौड़ : जिण पल दुर्गो जलमियो धन बा मांझल रात। - प्रो शैलेन्द्रकुमार शर्मा माई ऐड़ा पूत जण, जेहड़ा दुरगादास। मार मंडासो थामियो, बिण थम्बा आकास।। आठ पहर चौसठ घड़ी घुड़ले ऊपर वास। सैल अणी हूँ सेंकतो बाटी दुर्गादास।। भारत भूमि के पुण्य प्रतापी वीरों में दुर्गादास राठौड़ (13 अगस्त 1638 – 22 नवम्बर 1718)  के नाम-रूप का स्मरण आते ही अपूर्व रोमांच भर आता है। भारतीय इतिहास का एक ऐसा अमर वीर, जो स्वदेशाभिमान और स्वाधीनता का पर्याय है, जो प्रलोभन और पलायन से परे प्रतिकार और उत्सर्ग को अपने जीवन की सार्थकता मानता है। दुर्गादास राठौड़ सही अर्थों में राष्ट्र परायणता के पूरे इतिहास में अनन्य, अनोखे हैं। इसीलिए लोक कण्ठ पर यह बार बार दोहराया जाता है कि हे माताओ! तुम्हारी कोख से दुर्गादास जैसा पुत्र जन्मे, जिसने अकेले बिना खम्भों के मात्र अपनी पगड़ी की गेंडुरी (बोझ उठाने के लिए सिर पर रखी जाने वाली गोल गद्देदार वस्तु) पर आकाश को अपने सिर पर थाम लिया था। या फिर लोक उस दुर्गादास को याद करता है, जो राजमहलों में नहीं,  वरन् आठों पहर और चौंसठ घड़ी घोड़े पर वास करता है और उस पर ही बैठकर बाट...