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सांस्कृतिक और भावात्मक बपुनर्जागरण की अग्रदूत थीं लोक माता अहिल्याबाई – डॉ. शर्मा

अहिल्यादेवी होलकर त्रिशताब्दी वर्ष पर राष्ट्रीय संगोष्ठी में हुआ शिवचरणरत  लोकमाता अहिल्याबाई की यशोगाथा एवं समाज सेवा के संदर्भ में पर मंथन

राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना के तत्वावधान में अहिल्यादेवी होलकर त्रिशताब्दी वर्ष पर राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित की गई। राष्ट्रीय संगोष्ठी  में देश के विभिन्न राज्यों के वक्ताओं ने शिवचरणरत  लोकमाता अहिल्याबाई की यशोगाथा एवं समाज सेवा के संदर्भ में पर मंथन किया। 

संगोष्ठी में हिंदी विभागाध्यक्ष एवं कुलानुशासक, विक्रम विश्वविद्यालय एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रो. डॉ शैलेंद्र कुमार शर्मा ने मुख्य वक्ता के रूप में अपने मंतव्य में कहा कि लोकमाता अहिल्याबाई होल्कर ने स्त्री के समस्त रूपों को स्वीकार करते हुए उन्हें सार्थक किया। वे सांस्कृतिक और भावात्मक पुनर्जागरण की अग्रदूत थीं। जॉन मालकन ने अपनी किताब में लिखा है कि उन्होंने स्थान स्थान पर मालवा की सिरमौर की धवल कीर्ति की चर्चा सुनी थी। 

मुख्य अतिथि डॉ हरिसिंह पाल, महामंत्री  नागरी लिपि परिषद, नई दिल्ली ने कहा कि अहिल्याबाई होल्कर संकल्पित महिला थीं। नारी सशक्तीकरण में उनका बहुत बड़ा योगदान है। 

 विशिष्ट अतिथि श्रीमती सुधा शर्मा  ने कहा अहिल्याबाई होल्कर की कई कहानियों से प्रेरणा मिलती है।

संयोजक डॉ प्रभु चौधरी ने कहा, राजमाता अहिल्याबाई होल्कर की जेठानी तुलसा जी ने महिदपुर लड़ाई में अंग्रेजों का प्रतिरोध करते हुए युद्ध किया। 

विशेष अतिथि डॉ जया सिंह  ने कहा, उन्होंने स्वतंत्रता के साथ स्वच्छंदता को नहीं अपनाया ।

विशेष अतिथि सी जे प्रसन्ना केरल ने कहा अहिल्याबाई सादगी और सुंदरता की अद्भुत प्रतिमा थीं।

विशिष्ट अतिथि डॉ  नूरजहां गुवाहाटी ने कहा, दिशाविहीन होती जा रही आज की युवा पीढ़ी को अहिल्याबाई के चरित्र सुनाकर हमें एक दिशा की ओर ले जाना चाहिए।

संचालक श्वेता मिश्रा पुणे महाराष्ट्र, राष्ट्रीय सचिव, राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना ने कहा, अहिल्यादेवी ने कई मंदिर, कुएं, बावड़ी और प्याऊ का निर्माण करवाया।

विशिष्ट वक्ता डॉ. शहनाज शेख नांदेड़ ने कहा कि अहिल्या माता ने दहेज प्रथा और रूढ़िवाद का विरोध किया। सामाजिक एकात्मकता दिखाई देती है उनके चरित्र में।

अध्यक्षता करते हुए पूर्व संयुक्त संचालक श्री बृजकिशोर शर्मा ने कहा आत्म प्रतिष्ठा के झूठे मोह को अहिल्याबाई ने त्याग दिया। 

राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना की आभासी संगोष्ठी कार्यक्रम की शुरुआत डॉ अरुणा सराफ की सरस्वती वंदना से हुई। स्वागत भाषण एवं प्रस्तावना श्री सुंदरलाल जोशी, सूरज, राष्ट्रीय प्रवक्ता ने प्रस्तुत की। आभार  डॉ प्रभु चौधरी, राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष एवं कार्यालय महासचिव ,राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना ने माना।

कार्यक्रम में सोनू कुमार,पटना, बिहार से महेन्द्र सिंह पाल जयासिंह, रायपुर , रजनी प्रभा, पटना, गिरधर शर्मा, दिनेश पाल, राकेश कुमार आदि सहित अनेक प्रबुद्ध जनों ने विचार व्यक्त किए।

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