Skip to main content

आईसीएआर-केंद्रीय कृषि अभियांत्रिकी संस्थान, भोपाल में सतर्कता जागरूकता सप्ताह का आयोजन

🙏 द्वारा, राधेश्याम चौऋषिया, वरिष्ठ पत्रकार 🙏

भोपाल। आईसीएआर-केंद्रीय कृषि अभियांत्रिकी संस्थान, भोपाल ने 28 अक्टूबर से 3 नवंबर 2024 तक "राष्ट्र की समृद्धि के लिए ईमानदारी की संस्कृति" थीम के तहत सतर्कता जागरूकता सप्ताह का आयोजन किया। संस्थान के निदेशक, डॉ. सी.आर. मेहता ने सतर्कता के महत्व और इसके प्रति प्रतिबद्धता की आवश्यकता पर बल दिया। इस आयोजन का उद्देश्य संस्थान के भीतर और आसपास की समुदाय में ईमानदारी और पारदर्शिता की भावना को सुदृढ़ करना था।  

सतर्कता जागरूकता सप्ताह की शुरुआत 28 अक्टूबर को उद्घाटन एवं शपथ ग्रहण समारोह के साथ हुई, जिसे सतर्कता अधिकारी डॉ. के.एन. अग्रवाल ने समन्वित किया। इसमें सभी प्रतिभागियों ने अपने कार्यों में नैतिकता के प्रति प्रतिबद्धता जताई। इसी दिन, ऑक्सफोर्ड सीनियर सेकेंडरी स्कूल, करोंद में स्कूल के छात्रों द्वारा पोस्टर प्रदर्शन का आयोजन भी किया गया, जिसका नेतृत्व सतर्कता सप्ताह के चेयरमैन डॉ. एम.के. त्रिपाठी ने किया। इस आयोजन में 100 से अधिक छात्र और 30 शिक्षक उपस्थित थे, जिसका उद्देश्य बच्चों में सतर्कता और ईमानदारी की भावना का संचार करना था।  

29 अक्टूबर को एक किसान जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन नजदीकी गाँव में किया गया, जिसका संचालन डॉ. सत्यप्रकाश और उनकी टीम ने किया। इसमें 100 से अधिक किसानों ने भाग लिया, और सतर्कता एवं पारदर्शी व्यवहार के महत्व पर चर्चा की गई। इस कार्यक्रम का उद्देश्य ग्रामीण समुदायों में सतर्कता को बढ़ावा देना था।  

30 अक्टूबर को प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिता आयोजित हुई, जिसमें 40 से अधिक अधिकारियों ने भाग लिया और सतर्कता एवं भ्रष्टाचार-निरोधक उपायों पर विचार-विमर्श किया, जिससे संस्थान में सतर्कता की महत्ता को बल मिला।  

1 नवंबर को, "केवल ईमानदारी से ही भ्रष्टाचार पर नियंत्रण संभव है" विषय पर एक बहस प्रतियोगिता हुई, जिसका आयोजन डॉ. हर्षा वकुदर और उनकी टीम ने किया। प्रतिभागियों ने विभिन्न दृष्टिकोण प्रस्तुत करते हुए ईमानदारी के महत्व पर विचार व्यक्त किए।  

2 नवंबर को डॉ. मुकेश कुमार के नेतृत्व में एक ऑनलाइन तात्कालिक भाषण प्रतियोगिता आयोजित की गई, जिसमें प्रतिभागियों ने सतर्कता से संबंधित विषयों पर अपने विचार साझा किए, जिससे नैतिक मुद्दों पर त्वरित संवाद को बढ़ावा मिला।  

3 नवंबर को श्री रविंद्र सिंह और उनकी टीम द्वारा नारा लेखन गतिविधि आयोजित की गई, जिसने स्थानीय समुदाय में सतर्कता के संदेश को प्रसारित किया और पारदर्शिता को बढ़ावा दिया।  

5 नवंबर को समापन समारोह और पुरस्कार वितरण का आयोजन हुआ, जिसकी अध्यक्षता केंद्रीय कृषि अभियांत्रिकी संस्थान, भोपाल के निदेशक डॉ. सी.आर. मेहता ने की। इस अवसर पर उन्होंने सतर्कता और ईमानदारी के महत्व पर अपने विचार साझा किए।  

सतर्कता जागरूकता सप्ताह 2024 ने केंद्रीय कृषि अभियांत्रिकी संस्थान, भोपाल में जवाबदेही और ईमानदारी की संस्कृति को मजबूत करने के प्रति संस्थान की प्रतिबद्धता को प्रकट किया, जिससे संस्थान और व्यापक समुदाय में स्थायी नैतिक मूल्यों का संचार हुआ।

✍ राधेश्याम चौऋषिया 

Radheshyam Chourasiya

Radheshyam Chourasiya II

● सम्पादक, बेख़बरों की खबर
● राज्य स्तरीय अधिमान्य पत्रकार, जनसम्पर्क विभाग, मध्यप्रदेश शासन
● राज्य मीडिया प्रभारी, भारत स्काउट एवं गाइड मध्यप्रदेश
● मध्यप्रदेश ब्यूरों प्रमुख, दैनिक निर्णायक
● मध्यप्रदेश ब्यूरों प्रमुख, दैनिक मालव क्रान्ति

🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩

"बेख़बरों की खबर" फेसबुक पेज...👇

Bekhabaron Ki Khabar - बेख़बरों की खबर

"बेख़बरों की खबर" न्यूज़ पोर्टल/वेबसाइट... 👇

https://www.bkknews.page

"बेख़बरों की खबर" ई-मैगजीन पढ़ने के लिए नीचे दी गई लिंक पर क्लिक करें...👇https://www.readwhere.com/publi.../6480/Bekhabaron-Ki-Khabar

🚩🚩🚩🚩 आभार, धन्यवाद, सादर प्रणाम। 🚩🚩🚩🚩

Comments

मध्यप्रदेश समाचार

देश समाचार

Popular posts from this blog

आधे अधूरे - मोहन राकेश : पाठ और समीक्षाएँ | मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे : मध्यवर्गीय जीवन के बीच स्त्री पुरुष सम्बन्धों का रूपायन

  आधे अधूरे - मोहन राकेश : पीडीएफ और समीक्षाएँ |  Adhe Adhure - Mohan Rakesh : pdf & Reviews मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा हिन्दी के बहुमुखी प्रतिभा संपन्न नाट्य लेखक और कथाकार मोहन राकेश का जन्म  8 जनवरी 1925 को अमृतसर, पंजाब में  हुआ। उन्होंने  पंजाब विश्वविद्यालय से हिन्दी और अंग्रेज़ी में एम ए उपाधि अर्जित की थी। उनकी नाट्य त्रयी -  आषाढ़ का एक दिन, लहरों के राजहंस और आधे-अधूरे भारतीय नाट्य साहित्य की उपलब्धि के रूप में मान्य हैं।   उनके उपन्यास और  कहानियों में एक निरंतर विकास मिलता है, जिससे वे आधुनिक मनुष्य की नियति के निकट से निकटतर आते गए हैं।  उनकी खूबी यह थी कि वे कथा-शिल्प के महारथी थे और उनकी भाषा में गज़ब का सधाव ही नहीं, एक शास्त्रीय अनुशासन भी है। कहानी से लेकर उपन्यास तक उनकी कथा-भूमि शहरी मध्य वर्ग है। कुछ कहानियों में भारत-विभाजन की पीड़ा बहुत सशक्त रूप में अभिव्यक्त हुई है।  मोहन राकेश की कहानियां नई कहानी को एक अपूर्व देन के रूप में स्वीकार की जाती ...

खाटू नरेश श्री श्याम बाबा की पूरी कहानी | Khatu Shyam ji | Jai Shree Shyam | Veer Barbarik Katha |

संक्षेप में श्री मोरवीनंदन श्री श्याम देव कथा ( स्कंद्पुराणोक्त - श्री वेद व्यास जी द्वारा विरचित) !! !! जय जय मोरवीनंदन, जय श्री श्याम !! !! !! खाटू वाले बाबा, जय श्री श्याम !! 'श्री मोरवीनंदन खाटू श्याम चरित्र'' एवं हम सभी श्याम प्रेमियों ' का कर्तव्य है कि श्री श्याम प्रभु खाटूवाले की सुकीर्ति एवं यश का गायन भावों के माध्यम से सभी श्री श्याम प्रेमियों के लिए करते रहे, एवं श्री मोरवीनंदन बाबा श्याम की वह शास्त्र सम्मत दिव्यकथा एवं चरित्र सभी श्री श्याम प्रेमियों तक पहुंचे, जिसे स्वयं श्री वेद व्यास जी ने स्कन्द पुराण के "माहेश्वर खंड के अंतर्गत द्वितीय उपखंड 'कौमारिक खंड'" में सुविस्तार पूर्वक बहुत ही आलौकिक ढंग से वर्णन किया है... वैसे तो, आज के इस युग में श्री मोरवीनन्दन श्यामधणी श्री खाटूवाले श्याम बाबा का नाम कौन नहीं जानता होगा... आज केवल भारत में ही नहीं अपितु समूचे विश्व के भारतीय परिवार ने श्री श्याम जी के चमत्कारों को अपने जीवन में प्रत्यक्ष रूप से देख लिया हैं.... आज पुरे भारत के सभी शहरों एवं गावों में श्री श्याम जी से सम्बंधित संस्थाओं...

दुर्गादास राठौड़ : जिण पल दुर्गो जलमियो धन बा मांझल रात - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा

अमरवीर दुर्गादास राठौड़ : जिण पल दुर्गो जलमियो धन बा मांझल रात। - प्रो शैलेन्द्रकुमार शर्मा माई ऐड़ा पूत जण, जेहड़ा दुरगादास। मार मंडासो थामियो, बिण थम्बा आकास।। आठ पहर चौसठ घड़ी घुड़ले ऊपर वास। सैल अणी हूँ सेंकतो बाटी दुर्गादास।। भारत भूमि के पुण्य प्रतापी वीरों में दुर्गादास राठौड़ (13 अगस्त 1638 – 22 नवम्बर 1718)  के नाम-रूप का स्मरण आते ही अपूर्व रोमांच भर आता है। भारतीय इतिहास का एक ऐसा अमर वीर, जो स्वदेशाभिमान और स्वाधीनता का पर्याय है, जो प्रलोभन और पलायन से परे प्रतिकार और उत्सर्ग को अपने जीवन की सार्थकता मानता है। दुर्गादास राठौड़ सही अर्थों में राष्ट्र परायणता के पूरे इतिहास में अनन्य, अनोखे हैं। इसीलिए लोक कण्ठ पर यह बार बार दोहराया जाता है कि हे माताओ! तुम्हारी कोख से दुर्गादास जैसा पुत्र जन्मे, जिसने अकेले बिना खम्भों के मात्र अपनी पगड़ी की गेंडुरी (बोझ उठाने के लिए सिर पर रखी जाने वाली गोल गद्देदार वस्तु) पर आकाश को अपने सिर पर थाम लिया था। या फिर लोक उस दुर्गादास को याद करता है, जो राजमहलों में नहीं,  वरन् आठों पहर और चौंसठ घड़ी घोड़े पर वास करता है और उस पर ही बैठकर बाट...