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राष्ट्रीय परिसंवाद में हुआ राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में प्रादेशिक भाषाओं का महत्व पर मंथन

लोक मनीषी प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा एवं प्रो जगदीश चंद्र शर्मा द्वारा संपादित बृहत ग्रंथ मालवी लोक साहित्य तथा प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा एवं डॉ श्रीनिवास शुक्ल सरस  द्वारा संपादित ग्रन्थ बघेली लोक साहित्य का हुआ लोकार्पण

समर्पित हिंदी सेवी डॉ सुनील कुलकर्णी का सारस्वत सम्मान हुआ विक्रम विश्वविद्यालय में

अंतरराष्ट्रीय शोध पत्रिका अक्षरवार्ता के नवीनतम अंक का लोकार्पण सम्पन्न 

उज्जैन। विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन की हिंदी अध्ययनशाला, ललित कला अध्ययनशाला और पत्रकारिता एवं जनसंचार अध्ययनशाला के संयुक्त तत्वावधान में राष्ट्रीय परिसंवाद आयोजित किया गया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा के निदेशक प्रो सुनील कुलकर्णी थे। आयोजन की अध्यक्षता कुलानुशासक एवं विभागाध्यक्ष प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा ने की। परिसंवाद में प्रो. गीता नायक, प्रो. जगदीश चंद्र शर्मा आदि ने विचार व्यक्त किए। 

कार्यक्रम में लोक साहित्य मनीषी प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा एवं प्रो. जगदीश चंद्र शर्मा द्वारा संपादित बृहद ग्रंथ मालवी लोक साहित्य तथा प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा एवं डॉ श्रीनिवास शुक्ल सरस, सीधी द्वारा संपादित ग्रन्थ बघेली लोक साहित्य का लोकार्पण किया गया। ये दोनों ग्रंथ केंद्रीय हिंदी संस्थान आगरा द्वारा प्रकाशित किए गए हैं। 

इस अवसर पर हिंदी भाषा एवं साहित्य की अविराम सेवा के लिए समर्पित हिंदी सेवी प्रो. सुनील कुलकर्णी को अंग वस्त्र एवं साहित्य भेंटकर उनका सारस्वत सम्मान किया गया। कार्यक्रम में अंतरराष्ट्रीय शोध पत्रिका अक्षरवार्ता के नवीनतम अंक का लोकार्पण किया गया। लोकार्पण प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा एवं डॉ मोहन बैरागी ने करवाया।

केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा के निदेशक प्रो सुनील कुलकर्णी ने अपने व्याख्यान में कहा कि शिक्षा नीति 2020 में महत्वपूर्ण बात यह है कि इसमें भारतीय ज्ञान परम्परा, भारतीय भाषाओं और लोक साहित्य के संवर्धन पर अधिक बल दिया गया है। नई शिक्षा नीति ने भाषाई दृष्टि को एक नया आयाम दिया है। मातृभाषा में ही शिक्षा अधिक कारगार होती है। ज्ञान के क्षेत्र में कुछ नया ढूंढना या खोजना हम अपनी मातृभाषा में जिस तरह से कर पाते हैं उतना प्रभावी किसी अन्य भाषा में नहीं कर सकते। नई पीढ़ी को भारतीय ज्ञान परम्परा का ज्ञान देने की बहुत आवश्यकता है। इस दृष्टि से शिक्षा नीति अपना महत्वपूर्ण स्थान रखती है। भारतीय ज्ञान परम्परा और भारतीय भाषाओं का साहित्य लोक साहित्य में संरक्षित है, उतना कहीं और से नहीं मिलता। इसलिए लोक साहित्य के पुनर्मूल्यांकन की आवश्यकता है।

अध्यक्षता करते हुए लोकसाहित्यविद् एवं कुलानुशासक प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि लोक एवं जनजातीय साहित्य अक्षय प्रेरणा के स्रोत हैं। उनमें अज्ञात अतीत से चली आ रही परंपराओं, जातीय स्मृतियों, ज्ञान, विज्ञान एवं संवेदनाओं का जीवन्त समावेश है। उनके माध्यम से हम अपने वर्तमान और भावी जीवन को बेहतर बना सकते हैं। मालवा और बघेलखण्ड क्षेत्र की विविधतापूर्ण लोक विरासतों और सांस्कृतिक विशेषताओं का समावेश लोक साहित्य की सभी विधाओं के माध्यम से नव प्रकाशित दो ग्रन्थों में किया गया है। इन पुस्तकों में विविध प्रकार की सचित्र लोक कथाओं के साथ लोकगीत, लोकनाट्य, गाथा, मुहावरे, लोकोक्ति एवं पहेलियों का संकलन, सम्पादन एवं अनुवाद किया गया है। 

तीन - तीन सौ से अधिक पृष्ठों में प्रकाशित मालवी एवं बघेली लोक साहित्य ग्रन्थों में संचित लोकाभिव्यक्तियों के लिए सम्पादकों के साथ डॉ पूरन सहगल, मनासा, डॉ कृष्णकुमार श्रीवास्तव, पेटलावद, श्री बंसीधर बन्धु, शुजालपुर, श्री रामप्रसाद सहज, श्रीमती निर्मला राजपुरोहित, श्रीमती द्रौपदी देवी शर्मा,  श्रीमती दीप्ति शर्मा, श्रीमती सरस्वती सोनी, श्रीमती चेतना दुबे, डॉ ज्योतिबाला बैस, श्रीमती श्रुति पाठक, इंदौर आदि का महत्वपूर्ण सहयोग रहा है।

प्रारंभ में अतिथियों द्वारा वाग्देवी  सरस्वती के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित की गई। इस अवसर पर डॉ प्रतिष्ठा शर्मा, कलागुरु श्री लक्ष्मीनारायण सिंहरोड़िया, डॉ महिमा मरमट, डॉ हीना तिवारी आदि सहित अनेक साहित्यकार, शिक्षक, शोधार्थी एवं विद्यार्थी बड़ी संख्या में उपस्थित थे। 

संचालन शोधार्थी पूजा परमार ने किया। आभार प्रदर्शन डॉ. प्रतिभा सक्सेना, इंदौर ने किया।

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