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स्मृतिशेष : भारत को दोबारा इतना शिक्षित, सरल और सौम्य प्रधानमंत्री मिलना नामुमकिन

मज़बूत मनमोहन सिंह को कांग्रेस के कर्णधारों ने ही कर दिया था कमजोर

✍️ गणेश साकल्ले 

प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह की क़ाबिलियत का कांग्रेस हाई कमान ने सच में सदुपयोग किया होता तो शायद उसे आज ये दुर्दिन नहीं देखने पड़ते । पहला कार्यकाल तो उनका ठीक-ठाक रहा, लेकिन दूसरे दूसरे कार्यकाल में हाईकमान और उसके कारिंदों की दबी-कुची महात्वाकांक्षाए कुलाँचे मारने लगी। वह भी सत्ता के दोहन की। यह कब दुरूपयोगों में तब्दील हो गया इसकी हाईकमान को भनक तक नहीं लगी। जब चारों-ओर घपले-घोटालों की गूंज उठने लगी, तब तक बहुत देर हो चुकी थी। 

वर्ष 2005 में मुझे दिल्ली में डॉ. मनमोहन सिंह से मिलने और सीधी बात करने का मौका मिला। अवसर था तीन दिनी सोशल सेक्टर एडिटर कांफ्रेंस के अंतिम दिन प्रधानमंत्री का अपने निवास पर पत्रकारों से मिलने का। इस दौरान एक ग्रुप फोटो सेशन भी होना था, जिसके लिए एस.पी.जी. अधिकारियों ने सात कुर्सियां एक तरफ लगवाकर पत्रकारों को पहले ही उस स्थान पर खड़ा कर रखा था। मगर मैं तो दैनिक भास्कर के विशेष संवाददाता की हैसियत से गया था तो कुछ प्रश्न तो दिमाग में कौंध ही रहे थे, सो मैंने तरकीब लगाई कि फ़ोटो तो होती रहेगी, लेकिन कोई खबर नहीं निकाली तो यहाँ आने और पीएम से मिलने का क्या फ़ायदा? लिहाजा बातचीत के दौरान एक एस.पी. जी अधिकारी से मैंने पता कर लिया कि प्रधानमंत्री किधर से आएंगे और उस ओर अपनी दृष्टि जमा दी, जैसे ही डॉ. सिंह अपनी चिरपरिचित मुद्रा में उस बगीचे में आए, अपन ने उन्हें नमस्ते कर रोक लिया।

उन्होंने बताया कि आर्थिक मामलों पर लिखने वाले पत्रकारों से तो मैं अक्सर मिलता रहता हूं, लेकिन इस बार मेरी मंशा देश के विभिन्न राज्यों में सामाजिक विषयों पर कलम चलाने वाले कलमकारों से मिलने की थी। इसी उद्देश्य से पत्र सूचना कार्यालय की अगुवाई में यह सोशल सेक्टर एडिटर कांफ्रेंस का आयोजन किया गया, वह भी पहली बार। फिर मुस्कुराते हुए उन्होंने हमारी तरफ एक सवाल उछाला और पूछा कि कैसी रही आप लोगों की कांफ्रेंस? इतना सुनते ही मैंने तपाक से कहा कि सर, कांफ्रेस तो अच्छी रही, लेकिन हमें तीन सवालों के समाधान कारक जवाब आपके कोई भी मंत्री नहीं दे पाए। उन्होंने पूछा कि वो कौन से सवालात थे- मैंने उन्हें बताया कि, पहला सवाल तो जनसंख्या के विस्फोट को रोकने के सरकारी प्रयासों पर था। इसके जवाब में डॉ. सिंह ने स्व. संजय गांधी के दौर में चलाए गए जबरन नसबंदी अभियान का उल्लेख करते हुए कहा कि, जबर्दस्ती जनसंख्या नियंत्रण का वह प्रयोग सफल नहीं हुआ था, इसलिए हमारी सरकार जन जागरुकता और नि:शुल्क निरोध बांटकर जनसंख्या वृद्धि दर को रोकने की कोशिश कर रही है। 

फिर मेरा दूसरा सवाल यह था कि संसद में आपराधिक मुक़दमे दर्ज होने के बावजूद कई नेता चुनकर पहुंच रहे हैं। वहां बैठकर वे कानून बना रहे हैं। ऐसी स्थिति में कहीं ऐसा न हो कि एक दिन पूरी संसद पर ही आपराधिक तत्वों का कब्जा हो जाए। इसके जवाब में डॉ. मनमोहन सिंह ने कहा कि नेताओं के ख़िलाफ़ दर्ज आपराधिक मुकदमों का शीघ्र निपटारा करने के उद्देश्य से ही हमने फ़ास्ट ट्रेक कोर्ट बनाने का निर्णय लिया है, ताकि लंबित आपराधिक मुकदमों का जल्दी से जल्दी निपटारा हो सके। 

इसके पश्चात मेरा तीसरा और अंतिम प्रश्न यह था कि आए दिन ये खबरें उड़ती रहती हैं कि बीना में लगने वाली पेट्रोलियम रिफाइनरी को अमेठी में शिफ्ट किया जा रहा है। उन्होंने साफ तौर पर इस खबर का खंडन किया और कहा कि बीना से रिफ़ाइनरी शिफ्ट नहीं होगी। ज़रूरत पड़ी तो अमेठी में नई पेट्रोलियम रिफाइनरी लगा दी जाएगी। 

इस सवाल-जवाब से जाहिर है कि सभ्य, सहज, सरल और सौम्य स्वभाव के डॉ. मनमोहन सिंह कितने सख्त  फैसले ले सकते थे, लेकिन दूसरे कार्यकाल में कांग्रेस हाईकमान ने ही उन्हें कमजोर कर दिया। अगर डॉ. सिंह को फ्री हैंड मिलता तो वे देश को कहां से कहां ले जा सकते थे। उनमें अपार क्षमता एवं योग्यता थी, किन्तु सियासी दांवपेंच से वे नावाक़िफ़ थे। इस मान से हम यह कह सकते हैं कि एक सक्षम, समर्थ और सादगी पसंद शख़्सियत का अवसान देश के लिए अपूरणीय क्षति हैं। उनकी नीति-नीयत तो नि:संदेह क़ाबिले तारीफ़ थी। 

खैर भारत देश को दोबारा इतना पढ़ा-लिखा, सहज, सरल और सौम्य प्रधानमंत्री मिलना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन ही हैं ।

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