भारतीय ज्ञान परंपरा अध्ययन के साथ संयुक्त राष्ट्र संपोषणीय विकास लक्ष्यों, भारत वर्ष की पुण्य नदियों एवं ऊंटों के पालन पोषण के गहरे अंतर्संबंधों पर नवीन शोध आज की आवश्यकता - प्रो. डॉ. अर्पण भारद्वाज
अंतरराष्ट्रीय कैमलिड्स (ऊंट) वर्ष समापन समारोह संपन्न
विक्रम विवि उज्जैन - एशिया प्रथम पॉलिटेक्नीक आईईआरटी अभि.ग्रा.प्रौ.सं. संकाय का अनूठा प्रयास
बारिश, कोहरे की धुंध और ठिठुरते मौसम में प्रयागराज में विक्रम विवि-आई आरटीई द्विसांस्थानिक शुभ संकल्प
उज्जैन। विक्रम विश्वविद्यालय के कुलगुरु प्रो. डॉ. अर्पण भारद्वाज ने कहा कि राष्ट्रीय भारतीय ज्ञान परंपरा में ऊंटों का महत्व कृषि, जैव विविधता, स्वास्थ्य, विज्ञान, वाणिज्य, भूगोल और जल प्रबंधन जैसे विभिन्न क्षेत्रों में है। इनकी गहरी समझ, अध्ययन और आधुनिक जीवन में एकीकरण से सकारात्मक परिवर्तन की शुरुआत हो सकती है। ऊंटों में प्राचीन ज्ञान और विज्ञान की एक विस्तृत श्रृंखला समाहित है, जिसका आज के पर्यावरणीय जागरूकता प्रयासों में योगदान किया जा सकता है।
उन्होंने आगे कहा कि भारतीय नदियां न केवल जीवन को साकार करती हैं, बल्कि प्राचीन भारत की गहन समझ और ज्ञान में अंतर्दृष्टि प्रदान करती हैं, जो साहित्य, कला, संगीत, वास्तुकला, आर्थिक और सामाजिक शासन, परिवहन और यातायात सहित विविध क्षेत्रों को प्रभावित करती रही हैं। ऊंटों की भूमिका भौगोलिक विविधता के साथ-साथ आर्थिक, सामाजिक, शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक उन्नयन में भी अहम है। इनकी वैश्विक मान्यता प्राप्त भूमिका ने कई पड़ोसी देशों की अर्थव्यवस्था और यातायात को प्रभावित किया है।
प्रो. डॉ. धर्मेंद्र मेहता ने बताया कि ऊंटों के पालन के कारण जैव विविधता, सांस्कृतिक विरासत, जीवन मूल्यों और समृद्ध कृषि में इनका विशिष्ट स्थान है। उन्होंने बताया कि विक्रम विश्वविद्यालय और आईईआरटी, प्रयागराज द्वारा किए गए इस सामुदायिक जागरूकता आयोजन का उद्देश्य सतत विकास के लक्ष्यों को बढ़ावा देना था।
विक्रम विवि के कुलगुरु प्रो. डॉ. अर्पण भारद्वाज, प्रो. डॉ. धर्मेंद्र मेहता और श्री आर. के. निगम ने इस आयोजन में अपनी उपस्थिति से इस पहल को ऐतिहासिक बनाया। आईईआरटी संस्थान के निदेशक प्रो. डॉ. विमल मिश्रा ने इस सामूहिक नवाचार की सराहना करते हुए विक्रम विवि और आईईआरटी के योगदान की महत्ता को रेखांकित किया।
ऊंटों का योगदान और वैश्विक महत्व
प्रो. डॉ. अर्पण भारद्वाज ने बताया कि ऊंटों का दूध न केवल खाद्य सुरक्षा का स्रोत है, बल्कि यह चिकित्सीय लाभ भी प्रदान करता है। इसके अलावा, ऊंटों से फाइबर प्राप्त होता है, जिसका उपयोग कपड़े और आश्रय निर्माण में किया जाता है। यह जीव कृषि में जैविक खाद भी उपलब्ध कराते हैं, जो कृषि क्षेत्र के लिए महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि ऊंटों का उपयोग परिवहन के साधन के रूप में भी किया जाता है, विशेषकर उन क्षेत्रों में जहां अन्य परिवहन के साधन उपलब्ध नहीं हैं।
विश्व भर में 90 से अधिक देशों में पाए जाने वाले ऊंटों की जनसंख्या में भारत तीसरे स्थान पर है, और विशेष रूप से पश्चिमी राजस्थान में इनकी संख्या अधिक है। इस आयोजन में यह भी उल्लेख किया गया कि ऊंटों का पालन न केवल आजीविका के साधन के रूप में, बल्कि समाज में व्यापक लाभ प्रदान करने के रूप में किया जाता है।
सतत विकास लक्ष्यों के प्रति जागरूकता
प्रो. डॉ. धर्मेंद्र मेहता ने इस अवसर पर बताया कि ऊंटों का पालन संयुक्त राष्ट्र द्वारा परिकल्पित सतत विकास लक्ष्यों (SDG) में महत्वपूर्ण योगदान कर सकता है। विशेषकर एसडीजी 6 (पानी और स्वच्छता) और एसडीजी 15 (जैव विविधता) के संदर्भ में, ऊंटों का योगदान अत्यधिक महत्वपूर्ण है।
संगम तट पर ऐतिहासिक आयोजन
प्रयागराज में संगम तट पर आयोजित इस समारोह में विक्रम विवि और आईईआरटी के संयोजन द्वारा ऊंट पालकों को सम्मानित किया गया और पर्यावरण जागरूकता का संदेश दिया गया। खराब मौसम, कड़ाके की ठंड और कोहरे के बावजूद इस आयोजन ने महत्वपूर्ण संदेश दिया कि ऊंटों का संरक्षण और पालन केवल पारंपरिक नहीं, बल्कि विकास की दिशा में भी एक क्रांतिकारी कदम है।
प्रो. डॉ. शैलेन्द्र भारल ने इस आयोजन के बारे में कहा कि दुनिया में ऊंटों की जनसंख्या में भारत तीसरे स्थान पर है और पश्चिमी राजस्थान में सबसे ज्यादा ऊंट पाए जाते हैं। प्रो. डॉ. बी. के. आंजना ने इस समारोह में सभी का आभार व्यक्त किया।
यह आयोजन विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन और आईईआरटी, प्रयागराज की सामूहिक पहल का एक उदाहरण था, जो भारतीय ज्ञान परंपरा और सतत विकास लक्ष्यों की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित हुआ।
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