Skip to main content

सोसायटी फॉर प्रेस क्लब उज्जैन द्वारा श्री संतोष उज्जैनिया का विदाई एवं सम्मान समारोह कार्यक्रम

श्री संतोष उज्जैनिया : 34 साल बेमिसाल

संतोष उज्जैनिया बनाम सूचना प्रकाशन से जनसंपर्क के सफर के 34 साल बेमिसाल रहे हैं। सूचना प्रकाशन के नाम से जनसंपर्क तक के नाम के इस सफर में उज्जैनिया इसके हमसफर रहे हैं। सन् 1990 में जनसम्पर्क संचालनालय मध्यप्रदेश, (भोपाल) से श्री उज्जैनिया ने इस सफर की शुरूआत की थी। सन् 1995 में उज्जैन आकर जो काम संभाला तो प्रशासन के साथ ही अनेक विभागों तक में जनसंपर्क बनाम श्री उज्जैनिया छाए रहे। कार्यालय से लेकर भगवान श्री महाकालेश्वर के मंदिर में सेवा हो चाहे तत्कालीन उच्च शिक्षा मंत्री एवं वर्तमान मुख्यमंत्री डा.मोहन यादव के जनसंपर्क का काम बखूबी अंजाम दिया। सूचना प्रकाशन कार्यालय से जनसंपर्क के नाम की तब्दीली के सफर में फ्रीगंज के नगर निगम भवन के कार्यालय से लेकर भरतपुरी बोर्ड आफिस भवन के कार्यालय तक उज्जैनिया बाबू ने खूब साथ निभाया।

श्री संतोष उज्जैनिया

माधव कॉलेज से स्नातक शिक्षित सांवेर के इस युवा ने सन् 1990 में तत्कालीन सूचना प्रकाशन विभाग में जोर लगाया और लिपिक का पद प्राप्त कर लिया। नौकरी से पहले ही एक पुत्र के पिता को भोपाल में जनसम्पर्क संचालनालय मध्यप्रदेश में पदस्थी मिली। कहा जाता है प्रशासन में भोपाली बाबू होने की महारत होने पर वहां से कोई वापस नहीं आना चाहता है। करीब 5 साल संचालनालय में सेवारत रहने और वहां प्रदेश के तमाम जिलों के पत्रकारों से रूबरू होने के बाद भी उज्जैनिया जी ने घर आने के अवसर को नहीं छोडा। 1995 से सतत् रूप से उज्जैन कार्यालय में अपनी सेवाएं जारी रखी। यहां तक की कई अवसरों पर उन्होंने सीधे तौर पर ही जिला कलेक्टरों के कवरेज की भूमिका अदा की। कुछ वर्ष पूर्व उन्हें नवीन आगर मालवा जिले की सेवाओं के लिए भी चूना गया था लेकिन उन्होंने कुछ दिनों बाद ही अपनी वापसी उज्जैन करवा ली और बराबर उज्जैन की सेवाओं में लगे रहे। सेवा के इस सफर में अपने परिवार को भी उन्होंने संजोया दो पुत्रों एक पुत्री को उच्च शिक्षित किया। आज वे घर में दादाजी की भूमिका में हैं तो 1990 में सूचना प्रकाशन की सेवाओं में आए उज्जैनिया बाबू ने बीते 34 सालों में निर्विवादित सेवाओं को अंजाम दिया। श्री उज्जैनिया आज सहायक जनसंपर्क अधिकारी की भूमिका से अर्द्धवार्षिकी पूर्ण कर रहे हैं। उनके स्वस्थ एवं उत्तरोतर जीवन की शुभकामनाएं। 

■ सोसायटी फॉर प्रेस क्लब उज्जैन द्वारा श्री संतोष उज्जैनिया का विदाई एवं सम्मान समारोह कार्यक्रम

उज्जैन, सोमवार, 30 दिसम्बर, 2024 । उज्जैन संभागीय जनसम्पर्क कार्यालय में पदस्थ सहायक जनसंपर्क अधिकारी श्री संतोष कुमार उज्जैनिया की  सेवानिवृत्ति होने पर सोसायटी फॉर  प्रेस क्लब उज्जैन द्वारा उन्हें सम्मानित किया सम्मानित किया गया ।

उज्जैन संभागीय जनसम्पर्क कार्यालय में पदस्थ जनसम्पर्क विभाग के उप संचालक श्री अरुण राठौर जी, प्रेस क्लब अध्यक्ष डॉ विशाल सिंह हाड़ा जी, वरिष्ठ पत्रकार श्री भूपेन्द्र दलाल जी, श्री राजेंद्र पुरोहित जी, श्री महेंद्र सिंह बैस जी आदि की गरिमामय उपस्थिति में आयोजित सम्मान समारोह में  पत्रकारों ने पुष्प माला पहनाकर श्री संतोष उज्जैनिया जी का भव्य स्वागत किया । सभी पत्रकारों ने बारी-बारी से उनके कार्यकाल पर प्रकाश डाला और कहा कि, हंसमुख, मिलनसार एवं सभी के दिलों को जीतने वाले श्री संतोष उज्जैनिया जी विदाई के बाद भी हमारे दिल मे सदा रहेंगे । 

सभी ने उनके उज्ज्वल भविष्य और अच्छे स्वास्थ्य की मंगलमय कामना करते हुए इसी प्रकार कार्य करने की ईश्वर से प्रार्थना की है । "बेखबरों की खबर" परिवार भी श्री संतोष उज्जैनिया जी के उज्जवल भविष्य और अच्छे स्वास्थ्य के लिए ईश्वर से मंगलमय कामना करते हैं ।

✍️ शुभम राधेश्याम चौऋषिया

Comments

मध्यप्रदेश समाचार

देश समाचार

Popular posts from this blog

आधे अधूरे - मोहन राकेश : पाठ और समीक्षाएँ | मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे : मध्यवर्गीय जीवन के बीच स्त्री पुरुष सम्बन्धों का रूपायन

  आधे अधूरे - मोहन राकेश : पीडीएफ और समीक्षाएँ |  Adhe Adhure - Mohan Rakesh : pdf & Reviews मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा हिन्दी के बहुमुखी प्रतिभा संपन्न नाट्य लेखक और कथाकार मोहन राकेश का जन्म  8 जनवरी 1925 को अमृतसर, पंजाब में  हुआ। उन्होंने  पंजाब विश्वविद्यालय से हिन्दी और अंग्रेज़ी में एम ए उपाधि अर्जित की थी। उनकी नाट्य त्रयी -  आषाढ़ का एक दिन, लहरों के राजहंस और आधे-अधूरे भारतीय नाट्य साहित्य की उपलब्धि के रूप में मान्य हैं।   उनके उपन्यास और  कहानियों में एक निरंतर विकास मिलता है, जिससे वे आधुनिक मनुष्य की नियति के निकट से निकटतर आते गए हैं।  उनकी खूबी यह थी कि वे कथा-शिल्प के महारथी थे और उनकी भाषा में गज़ब का सधाव ही नहीं, एक शास्त्रीय अनुशासन भी है। कहानी से लेकर उपन्यास तक उनकी कथा-भूमि शहरी मध्य वर्ग है। कुछ कहानियों में भारत-विभाजन की पीड़ा बहुत सशक्त रूप में अभिव्यक्त हुई है।  मोहन राकेश की कहानियां नई कहानी को एक अपूर्व देन के रूप में स्वीकार की जाती ...

खाटू नरेश श्री श्याम बाबा की पूरी कहानी | Khatu Shyam ji | Jai Shree Shyam | Veer Barbarik Katha |

संक्षेप में श्री मोरवीनंदन श्री श्याम देव कथा ( स्कंद्पुराणोक्त - श्री वेद व्यास जी द्वारा विरचित) !! !! जय जय मोरवीनंदन, जय श्री श्याम !! !! !! खाटू वाले बाबा, जय श्री श्याम !! 'श्री मोरवीनंदन खाटू श्याम चरित्र'' एवं हम सभी श्याम प्रेमियों ' का कर्तव्य है कि श्री श्याम प्रभु खाटूवाले की सुकीर्ति एवं यश का गायन भावों के माध्यम से सभी श्री श्याम प्रेमियों के लिए करते रहे, एवं श्री मोरवीनंदन बाबा श्याम की वह शास्त्र सम्मत दिव्यकथा एवं चरित्र सभी श्री श्याम प्रेमियों तक पहुंचे, जिसे स्वयं श्री वेद व्यास जी ने स्कन्द पुराण के "माहेश्वर खंड के अंतर्गत द्वितीय उपखंड 'कौमारिक खंड'" में सुविस्तार पूर्वक बहुत ही आलौकिक ढंग से वर्णन किया है... वैसे तो, आज के इस युग में श्री मोरवीनन्दन श्यामधणी श्री खाटूवाले श्याम बाबा का नाम कौन नहीं जानता होगा... आज केवल भारत में ही नहीं अपितु समूचे विश्व के भारतीय परिवार ने श्री श्याम जी के चमत्कारों को अपने जीवन में प्रत्यक्ष रूप से देख लिया हैं.... आज पुरे भारत के सभी शहरों एवं गावों में श्री श्याम जी से सम्बंधित संस्थाओं...

दुर्गादास राठौड़ : जिण पल दुर्गो जलमियो धन बा मांझल रात - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा

अमरवीर दुर्गादास राठौड़ : जिण पल दुर्गो जलमियो धन बा मांझल रात। - प्रो शैलेन्द्रकुमार शर्मा माई ऐड़ा पूत जण, जेहड़ा दुरगादास। मार मंडासो थामियो, बिण थम्बा आकास।। आठ पहर चौसठ घड़ी घुड़ले ऊपर वास। सैल अणी हूँ सेंकतो बाटी दुर्गादास।। भारत भूमि के पुण्य प्रतापी वीरों में दुर्गादास राठौड़ (13 अगस्त 1638 – 22 नवम्बर 1718)  के नाम-रूप का स्मरण आते ही अपूर्व रोमांच भर आता है। भारतीय इतिहास का एक ऐसा अमर वीर, जो स्वदेशाभिमान और स्वाधीनता का पर्याय है, जो प्रलोभन और पलायन से परे प्रतिकार और उत्सर्ग को अपने जीवन की सार्थकता मानता है। दुर्गादास राठौड़ सही अर्थों में राष्ट्र परायणता के पूरे इतिहास में अनन्य, अनोखे हैं। इसीलिए लोक कण्ठ पर यह बार बार दोहराया जाता है कि हे माताओ! तुम्हारी कोख से दुर्गादास जैसा पुत्र जन्मे, जिसने अकेले बिना खम्भों के मात्र अपनी पगड़ी की गेंडुरी (बोझ उठाने के लिए सिर पर रखी जाने वाली गोल गद्देदार वस्तु) पर आकाश को अपने सिर पर थाम लिया था। या फिर लोक उस दुर्गादास को याद करता है, जो राजमहलों में नहीं,  वरन् आठों पहर और चौंसठ घड़ी घोड़े पर वास करता है और उस पर ही बैठकर बाट...