भारतीय ज्ञान परंपरा और साहित्य में मानवीय मूल्य पर आधारित मूल्यवर्धित पाठ्यक्रम में हुआ लोक संस्कृतिविद् प्रो शर्मा का विशिष्ट व्याख्यान
प्रधानमंत्री कॉलेज ऑफ़ एक्सीलेंस शहीद भीमा नायक शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, बड़वानी के हिंदी विभाग द्वारा भारतीय ज्ञान परंपरा और साहित्य में मानवीय मूल्य पर आधारित मूल्यवर्धित पाठ्यक्रम आयोजित किया जा रहा है। इस पाठ्यक्रम में लोकसंस्कृति विशेषज्ञ एवं विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन के हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा ने मालवा की समृद्ध साहित्यिक परंपराओं में मानवीय मूल्यों पर अपना व्याख्यान दिया।
उन्होंने व्याख्यान में विचार व्यक्त करते हुए कहा कि मालवा भारत का हृदय अंचल है। हृदय की विशेषता है कि हृदय से ही रक्त सभी अंगों में स्वच्छ होकर प्रवाहित होता है, ऐसी ही स्थिति मालवा अंचल है। मालवा पर्यावरण, संस्कृति और परंपराओं का एक समृद्ध स्थल है। नर्मदा नदी, मालवा एवं निमाड़ की संधि का कार्य कर रही है। भारतीय ज्ञान परंपरा की प्रमुख विशेषता है हमारे पुरुषार्थ जिनमें धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इन चारों का पालन करते हुए जीवन निर्वाह करें। इन चारों पुरुषार्थ में पाँचवें भक्ति को भी जोड़ा गया। संत गण भक्ति को प्रतिपादित करते हैं। मालवी साहित्य में इन पांचों तत्वों का समावेश है। भारतीय ज्ञान प्रणाली अक्षय विज्ञान और साहित्य की निधि है। भारतीय ज्ञान परंपरा में जिन मूल्यों का उल्लेख किया है उन सभी मूल्य का विशद विवेचन मालवी साहित्य में मिलता है। इसमें सत्य, अहिंसा, सद्भाव, सहयोग - ये सभी विद्यमान हैं।
प्रो शर्मा ने कहा कि तेरह सौ वर्षों से मालवी साहित्य समृद्ध है, लगभग दो करोड़ लोग मालवी भाषा का प्रयोग करते हैं। यहाँ विभिन्न बोलियों का प्रभाव दिखाई देता है और उन सभी की अपनी विशेषता दिखाई देती है। मालवी साहित्य सामाजिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक दृष्टि से भी संपन्न है। इसलिए प्रेम तत्व जीवन प्रमुख तत्व है। मालवा के संत कवि पीपा जी कहते हैं, पीपा पीवे प्रेम रस त्यो-त्यो बड़े प्यास। पीपा जितना दूर है सांई उतना पास। प्रेम के सामाजिक अर्थ में परिवार एव समाज है। वहीं व्यापक रूप में संपूर्ण विश्व से प्रेम ही महत्वपूर्ण है। ईश्वर दूर है किंतु प्रेम तत्व के कारण वह निकट है। संत कवियों की वाणी में इसी प्रेम तत्व की महत्ता है, और वसुधैव कुटुंबकम् का शंखनाद है। यही भावना हमें परमार्थ की ओर ले जाती है, संत आचरण से पहचाना जाता है। मालवी के सभी कवियों की रचनाओं और मालवी के विपुल साहित्य में गहन मानवीय मूल्य है। इसका प्रभाव लोक नाट्य माच, लोक कथा, लोकगीतों में देखा जा सकता है। लोकनाट्य माच में जो सत्य के लिए प्राणोत्सर्ग करता है, वह नायक बनता है और वही विभिन्न संबंधों को महत्व देता है। आधुनिक नाटकों में भी माच का प्रयोग किया गया है, जो लोकमंगल की भावना से संचालित होता है। आधुनिक काल के मालवी साहित्य में विभिन्न भावों से जुड़ी कविताएं देखी जा सकती है। जिनमें आनंद राव दुबे, बालकवि बैरागी, हरीश निगम, नरहरि पटेल जैसे कवियों की रचनाओं ने मालवी को प्रतिष्ठित किया।
दिनांक 02 से 18 नवम्बर 2024 तक आयोजित इस पाठ्यक्रम के अवसर पर महाविद्यालय की प्राचार्य डॉ. वीणा सत्य ने मालवी साहित्य को रेखांकित किया। साथ ही हिंदी विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ. मंजुला जोशी, डॉ. के एस बघेल, डॉ आर एस मुझाल्दा उपस्थित रहे।
संचालन डॉ शीला बघेल ने किया। प्रो अंतिमबाला जायसवाल ने आभार व्यक्त किया। प्रो अनिता खाण्डे, प्रो नारायण रैकवार एवं महाविद्यालय के छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे।
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