नई पीढ़ी, शिखर ऊंचाइयों को स्पर्श करें
आईआईएम त्रिची के प्रख्यात प्रबंध चिंतक प्रो. पी. के. सिंह का मंत्रमुग्धकारी व्याख्यान
उज्जैन। शासन के निर्देशों के अनुरूप विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के पंडित जवाहरलाल नेहरू व्यवसाय प्रबंध संस्थान, भारत अध्ययन केंद्र, आईओपी, कृषि विज्ञान एवं सांख्यिकी अध्ययनशाला ने साथ मिलकर एक संयुक्त ऑनलाइन सांध्य संस्करण परिसंवाद का आयोजन किया। इस आयोजन के विशिष्ट अतिथि वक्ता प्रो. डॉ. पवन कुमार सिंह, निदेशक, आईआईएम तिरुचिरापल्ली और पूर्व शोधार्थी एवं संकाय सदस्य, विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन रहे।
प्रो. सिंह ने अपनी विशिष्ट तथ्यान्वेषी चिंतन शैली में 700 श्लोकों और 18 अध्यायों में वर्णित अर्जुन, कृष्ण और दुर्योधन संवाद के महत्वपूर्ण प्रसंगों पर चर्चा की। उन्होंने प्रभावशाली उद्धरणों के माध्यम से कृष्ण तत्व को जीवन में आत्मसात करने का संदेश दिया। प्रो. सिंह ने तुलसी के दोहे का उदाहरण देते हुए नई प्रबंध पीढ़ी से कृष्ण के सिद्धांतों को अपने जीवन में लागू करने का आव्हान किया। साथ ही, उन्होंने इस सामयिक नवाचार पर खुशी व्यक्त करते हुए कहा कि कई विदेशी विश्वविद्यालय आज इस अमृत ग्रंथ साहित्य का अध्ययन कर रहे हैं। गीता के प्रत्येक अध्याय की सार्थक व्याख्या करते हुए, उन्होंने इसे संसार की सभी समस्याओं का समाधान बताया।
इस कार्यक्रम की शुरुआत विक्रम विश्वविद्यालय के माननीय कुलगुरू प्रो. डॉ. अर्पण भारद्वाज ने मुख्यमंत्री जी के कार्यक्रम में उपस्थिति की शुभकामनाओं के साथ की। प्रो. डॉ. कामरान सुल्तान ने इस आयोजन के महत्व और विशिष्ट वक्ताओं की उपस्थिति को रेखांकित किया। उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय पर्वत दिवस और यूनिसेफ परिवर्तन दिवस की ज्ञान त्रिवेणी को भी उजागर किया और इस आयोजन पर सभी को बधाई दी।
युवा फिटनेस मेंटर और रिलायंस उद्योग समूह के उप महाप्रबंधक श्री धवल रावल ने अपने ढाई दशकों के उद्योग अनुभवों से गीता के कर्म आधारित दृष्टिकोण को साझा किया। उन्होंने नई प्रबंध पीढ़ी से गीता के उपदेशों को जीवन में अपनाने का आव्हान किया और चेतावनी दी कि हम गीता के महान दर्शन को भूल गए हैं, जबकि यह हमें विदेशियों से सिखाया गया था। उन्होंने इतिहास का हवाला देते हुए कहा कि जब भी हमने अपनी संस्कृति को भुलाया, तब हमें विदेशियों का गुलाम बनना पड़ा।
वरिष्ठ आचार्य एफसीए प्रो. डॉ. दीपक गुप्ता ने भक्ति भाव से भजन प्रस्तुत किया और इसे एक सौभाग्य की बात बताया कि आजादी के 77 साल बाद मध्य प्रदेश सरकार के आदेश अनुसार विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों में गीता जयंती महोत्सव का आयोजन किया जा रहा है।
प्रो. डॉ. धर्मेंद्र मेहता, निदेशक, जेएनआईबीएम ने ‘शिखर’ शब्द पर प्रकाश डालते हुए अंतर्राष्ट्रीय पर्वत दिवस और यूनिसेफ परिवर्तन दिवस के महत्व को रेखांकित किया। उन्होंने 1785 में गीता के अंग्रेजी अनुवाद का उल्लेख किया, जो उस समय अंग्रेजी शासन को यह संदेश दे गया था कि उनका शासन ज्यादा दिन तक नहीं टिकेगा। उन्होंने यह भी कहा कि हर विद्यार्थी को गीता पढ़नी चाहिए, क्योंकि यह मनोयोग का विज्ञान है।
भारत अध्ययन केंद्र के निदेशक डॉ. सचिन राय, प्रो. डॉ. आर.एन. मालवीय, कुलानुशासक, ज्ञान संसाधन केंद्र प्रमुख, प्रो. डॉ. डी.डी. बेदिया, निदेशक आईक्यूएसी-आईआईसी, और अन्य वक्ताओं ने भी अपने विचार व्यक्त किए। सभी ने गीता के प्रचार-प्रसार की आवश्यकता पर बल दिया और इसे जीवन के हर पहलू में मार्गदर्शक ग्रंथ के रूप में स्वीकार किया।
कार्यक्रम के समापन में प्रो. डॉ. कामरान सुल्तान ने विक्रम विश्वविद्यालय, संकाय और संस्थान परिवार की ओर से सभी अतिथियों का आभार व्यक्त किया और भविष्य में आगामी कार्यक्रमों के लिए पुनः उन्हें आमंत्रित किया।
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