संस्कृत भाषा की अपार शब्द सम्पदा का लाभ लें पाठ्यपुस्तक के लेखकगण - कुलगुरु प्रो विजयकुमार मेनन
मानक पाठ्यपुस्तक लेखन की कार्य योजना और प्रक्रिया पर संवाद हुआ 7 दिसंबर 2024 को समापन दिवस के विभिन्न सत्रों में
उज्जैन। विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन में यूजीसी, नई दिल्ली एवं भारतीय भाषा समिति, शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार के सौजन्य से हिंदी माध्यम से स्तरीय एवं गुणवत्तापूर्ण पाठ्यपुस्तक लेखन के लिए विभिन्न विषयों के लेखकों की दो दिवसीय कार्यशाला का समापन शनिवार 7 दिसंबर 2024 को विक्रम विश्वविद्यालय के पर्यावरण प्रबंधन अध्ययनशाला सभागार में हुआ। आयोजन के मुख्य अतिथि महर्षि पाणिनि संस्कृत और वैदिक विश्वविद्यालय उज्जैन के कुलगुरु प्रो सी जी विजयकुमार मेनन थे।
कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि डॉ चंदन श्रीवास्तव, वाराणसी, डॉ रामकिशोर, नई दिल्ली, कुलानुशासक प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा, डॉ रचना विश्वकर्मा, गया, डॉ सुनीता सिंह, नई दिल्ली आदि ने सम्बोधित किया।
मुख्य अतिथि कुलगुरु प्रो सी जी विजयकुमार मेनन ने अपने उद्बोधन में कहा कि पुस्तक लेखन के कार्य का अवसर मिलने से हमें राष्ट्र के पुनर्निर्माण का अवसर प्राप्त हुआ है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 ने प्राध्यापकों की भूमिका को बदल दिया है। पाठ्यपुस्तक के लेखकगण संस्कृत भाषा की अपार शब्द सम्पदा का लाभ लें। पुस्तक लेखन में भाषा शुद्ध, मानक, सरल और आकर्षक होनी चाहिए। हिंदी एवं अन्य भारतीय भाषाओं में पाठ्यपुस्तक निर्माण संस्कृत भाषा और व्याकरण के बिना नहीं हो सकता, अत: हमें संस्कृत भाषा का सहारा लेना होगा।
डॉ चंदन श्रीवास्तव, वाराणसी ने सम्बोधित करते हुए कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति के क्रियान्वयन के साथ बहुभाषी शिक्षा भारत की शक्ति के रूप में सामने आ रही है। पाठ्यक्रम विकास और सामग्री के सृजन के नए अवसर सामने आ रहे हैं। उच्च शिक्षा से जुड़े लेखकगण इसे लेकर जागरूक हों।
मुख्य समन्वयक एवं कुलानुशासक प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा ने कहा कि सभी विषय क्षेत्रों में भारतीय ज्ञान परम्परा और संस्कृति के विराट रूप को लेकर लेखकों को सजग होना चाहिए। विश्व स्तरीय पाठ्यसामग्री प्रस्तुत करने के साथ भारतीय मनीषियों के योगदान को पुस्तकों में समाहित करने की आवश्यकता है। क्षेत्रीय संस्कृति के बहुमूल्य तत्वों को अंगीकार करते हुए लेखन में शैक्षणिक और व्यावहारिक अनुभवों के अंतराल को दूर किया जाना चाहिए।
डॉ. रामकिशोर, इग्नू, नई दिल्ली ने अपने विशिष्ट वक्तव्य में पाठ्यपुस्तक लेखन में शब्दावली प्रयोग एवं निर्माण विषय पर बात की। उन्होंने कहा कि भारतीय भाषा में शिक्षण - प्रशिक्षण, अध्ययन - अध्यापन, पुस्तक लेखन आदि में शब्दावली निर्माण की बहुत आवश्यकता है। मूल शब्द संस्कृत से लेकर उसमें प्रत्यय, उपसर्ग आदि जोड़ कर उससे विभिन्न भाषा के शब्द बनाए जा सकते हैं। पुस्तक लेखन में सरल, सर्वप्रचलित, तारतम्यता, एकार्थी शब्दों का चयन करना चाहिए।
डॉ. रचना विश्वकर्मा, केंद्रीय विश्वविद्यालय, गया ने अपने उद्बोधन में विभिन्न विषय क्षेत्रों में पुस्तक लेखन पर बात करते हुए कहा कि हमें अपनी भारतीय ज्ञान परम्परा को फिर से प्रयोग में लाना होगा। पुस्तकों का लेखन आज की आवश्यकता और प्रासंगिकता के आधार पर होना चाहिए न कि पुराने उदाहरणों के आधार पर। भाषा मानक हो लेकिन उसमें सरलता पर अधिक ध्यान देना चाहिए ।
डॉ. एस. के. मिश्र ने अपने उद्बोधन में कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 का उद्देश्य विद्यार्थियों का सर्वांगीण विकास है। कार्यशाला का उद्देश्य राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अनुसार लेखन का है। लेखकों को ए. पी. ए., एम. एल. ए. आदि विभिन्न प्रकार के तरीके से पुस्तक की सामग्री को प्रस्तुत करना चाहिए। सही शब्दों का चयन, मौलिक सामग्री और केस स्टडी करते हुए पुस्तकों को लिखा जाना चाहिए।
मैनेजमेंट के प्रो. डी. डी. बेदिया ने अपने वक्तव्य में भारतीय ज्ञान परम्परा की चर्चा करते हुए कहा कि हमें अपनी परम्परा में परिवर्तन कर ऐसे मानक लाने होंगे जिससे विकास हो सके। जब सभी क्षेत्रों में हिंदी का प्रयोग होने लगेगा तो स्वत: ही हिंदी व्यापक हो जाएगी।
कार्यशाला के विभिन्न तकनीकों सत्रों में विशेषज्ञ वक्ता के रूप में डॉ. रामकिशोर, इग्नू, डॉ सुनीता सिंह, नई दिल्ली, डॉ. रचना विश्वकर्मा, गया, डॉ. एस.के. मिश्र डॉ डी. डी. बेदिया, डॉ. देवेंद्रमोहन कुमावत, प्रो. जगदीशचंद्र शर्मा, डॉ सन्दीप तिवारी आदि ने व्याख्यान सह प्रस्तुतीकरण किया।
अतिथियों को स्मृति चिन्ह भेंट कर उनका सम्मान प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा प्रो डी एम कुमावत, प्रो जगदीश चंद्र शर्मा, प्रो एस के मिश्रा ने किया। द्वितीय दिवस पर पाठ्यपुस्तक लेखन में शब्दावली प्रयोग एवं निर्माण और विभिन्न विषय क्षेत्रों में पुस्तक लेखन आदि पर परिचर्चा की गई। समापन सत्र में विभिन्न प्रतिभागी लेखकों आदि ने कार्यशाला को लेकर अपनी प्रतिक्रियाएं व्यक्त कीं। साथ ही विभिन्न सुझाव और समस्याओं के समाधान किए गए।
कार्यक्रम का संचालन ललितकला के विभागाध्यक्ष प्रो. जगदीशचंद्र शर्मा ने किया। आभार प्रदर्शन पर्यावरण प्रबंधन अध्ययनशाला के विभागाध्यक्ष प्रो. देवेंद्रमोहन कुमावत ने किया।
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