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डॉ आंबेडकर चिंतन शोध की अविराम यात्रा : प्रो. शैलेन्द्र कुमार शर्मा

उज्जैन। डॉ. बाबा साहेब आंबेडकर का सार्वजनिक जीवन में प्रवेश समाज क्रांति के मार्ग को मोड़ देने वाला ऊर्जा स्रोत है। भारत के इतिहास में डॉ. आम्बेडकर का अद्वितीय स्थान है। इस दृष्टि से सामाजिक जीवन में उन्होंने बीसवीं सदी पर मूलगामी प्रभाव डाला है। डॉ. आम्बेडकर विषय नहीं, सम्पूर्ण जीवनशैली है। उनका जीवन-विमर्श शोध का विषय है, जिसे सम्पूर्णता में चिंतन की आवश्यकता है। बाबा साहब का चिंतन सामाजिक समता और बंधुत्व है। जिसे उन्होंने गहरे गंभीर शोध से ही स्थापित किया। जो देखने सुनने और गुनने से प्रारंभ हुआ। मतभेद-विभेद का गहरा संकट, व्याप्त विकृतियों से, असमानता के दंश देखा, सुना, अनुभूत किया। इसे बदलने, समाप्त करने की उनकी अविराम यात्रा प्रारंभ की। विषम परिस्थितियों में भी बाबा साहेब ने पढ़ने-चिन्तन शोध को न सिर्फ लेखों, पत्र पत्रिकाओं, किताबों के माध्यम से समाज में जागरूकता लाने  की प्रक्रिया प्रारंभ की बल्कि समाज परिवर्तन और समानता की लोकतांत्रिक व्यवस्था का रेखांकन भी बना लिया। जिसे हमें संविधान के रूप में मौलिक अधिकार के रूप में प्राप्त हुआ।

उक्त विचार डॉ. आम्बेडकर पीठ द्वारा आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी डॉ. आम्बेडकर का चिंतन : शोध की संभावनाएँ विषय के समापन समारोह में प्रभारी कुलगुरु प्रो. शैलेन्द्र कुमार शर्मा ने व्यक्त किए।

प्रो. शैलेन्द्र कुमार शर्मा ने कहा आम्बेडकर चिन्तन सर्वं खल्विदं ब्रह्म के अनुरूप है। दुनिया में सभी के लिए समान अवसर, समानता हो। सभी मानव समान है। बाबा साहेब दादू दयाल, गोरक्षनाथ, कबीर परम्परा के सामाजिक संत हैं। जिन्होंने बाहरी आडम्बरों, समाज की विकृतियों को समाप्त कर मानवता, समानता और बंधुत्व को स्थापित करने के सम्पूर्ण जीवन आहूत किया। डॉ. आम्बेडकर का पूर्ण जीवन दर्शन, मानवीय आस्था, जिजीविषा के साथ अविराम यात्रा है। सच तो है कि डॉ. आम्बेडकर का व्यक्तित्व, कृत्तित्व में शोध की अपार संभावनाएँ हैं। आवश्यकता इस बात की है कि शोधार्थी, विद्यार्थी को सतही तौर पर नहीं, बल्कि बहुत गहरे चितन करना होगा। सदियों से शोध की संभावनाएँ हैं। शोध के लिए आंतरिक जागृति की आवश्यकता है। डॉ. आम्बेडकर पर शोध करने का तात्पर्य गहन मंथन, गहन अनुसंधान, गहरा उत्तरदायित्व है। शोध औपचारिक नहीं बल्कि स्वयं और समाज परिवर्तन की सद्इच्छा हो, इस उद्देश्य से किए जाने की आवश्यकता है। डॉ. आम्बेडकर द्वारा प्रस्थापित सिद्धान्त, सम्यक प्रणाली की व्याप्ति और प्राप्ति की दृष्टि बनाना है। बाबा साहेब ने जिन सौंदर्यशास्त्रीय संभावनाओं को गढ़ा है, उसे आत्मसात और उस परम्परा को बनाए रखने की शोध सम्भावनाओं को विद्यार्थियों और शोधार्थियों को खोजने की आवश्यकता है।

अध्यक्षीय उद्बोधन देते हुए पंजाब केन्द्रीय विश्वविद्यालय बठिंडा, पंजाब की डॉ. आम्बेडकर पीठ के चेयर प्रोफेसर प्रो. कन्हैया त्रिपाठी ने कहा कि आज चेंज मेकर बनने की आवश्यकता है। प्रत्येक व्यक्ति के अंतस में एक आंदोलित व्यूह होता है। जिसे समझने की जरूरत है। आज सार्वभौमिक बनना है। आज व्यक्ति को गुणात्मक पहचान और समानता के संंबधों को मुख्य आधार बनाना और समाज को समझाना होगा। व्यक्ति को उदात्त बनना है, जिससे उसे सहजता सभी स्वीकारें। बाबा साहेब का चिंतन, उनकी उदात्तता, सार्वभौमिकता है। जिसके कारण वे महामानव के रूप में वंदित है विश्वव्यापी हैं। बाबा साहब सीमित दायरे में नहीं बल्कि सामाजिक समता, समरसता, राष्ट्रीय एकता, विश्व एकता व विश्व मानव के परिदृश्य में स्थापित है। आज अनुकूल समाज व्यवस्था को बनाना है तो सर्वप्रथम अपने व्यवहार, विचार शैली में बदलाव लाना होगा। समदृष्टि का चिन्तन करना होगा। तब एक अच्छे समाज का निर्माण होगा और विकसित राष्ट्र की ओर अग्रसर होंगे। बाबा साहेब के विराट व्यक्तित्व, राष्ट्रभाव से अभिभूत अंत:करण, जीवन दर्शन, विचार तथ्यों, मेधावी शक्ति से सर्वोच्चता प्राप्त कर, विपरीत धारा को पार कर श्रेष्ठ मानव की यात्रा में अपार शोध सम्भावनाएँ हैं।

तकनीकी सत्र में 14 शोध पत्रों का वाचन किया गया। सत्र के विषय विशेषज्ञ डॉ. सखाराम मुजाल्दे, दे.अ.वि.वि. इन्दौर, डॉ. डी.डी. बेदिया, निदेशक आईक्यूएसी, डॉ. गणपत अहिरवार भौतिक विज्ञान रहे।

सत्र की अध्यक्षता डॉ. मनीषा सक्सेना, डीन एवं आचार्य डॉ. आम्बेडकर पीठ, डॉ. बी.आर. आम्बेडकर सामाजिक विज्ञान विश्वविद्यालय महू, डॉ. अश्विनी कुमार पंजाब केन्द्रीय विश्वविद्यालय पंजाब ने की। सत्र संचालन डॉ. रीना अध्वर्यु, डॉ. प्रीति पाण्डेय, निशा चौरसिया। डॉ. विश्वजीत सिंह परमार, बबीता करवाड़िया, उदयसिंह गुर्जर, डॉ. मनोज कुमार गुप्ता, रंजना बागड़े, शेरसिंह दीपक चांदनी गुप्ता, पूजा खरे, मिलिंद त्रिपाठी, डॉ. पंकज माहेश्वरी अरविंद लोधी, डॉ. अश्विनी कुमार, रजनीश पाटीदार, कमलेश बैरवा ने शोध पत्र का वाचन किया। राष्ट्रीय संगोष्ठी में सहयोगी अध्ययनशालाओं के विभागाध्यक्ष, सहयोगी कर्मचारीगण, विद्यार्थीगण का सम्मान किया गया।

स्वागत भाषण चेयर प्रोफेसर डॉ. सत्येन्द्र किशोर ने दिया। संगोष्ठी प्रतिवेदन, संचालन, आभार सहायक प्राध्यापकक डॉ. निवेदिता वर्मा ने किया। संगोष्ठी अनुभव राजनीति विज्ञान के शोधार्थी उदयवीरसिंह गुर्जर व एमआईएमएसआर के शोधार्थी शेरसिंह दीपक ने साझा किए।

इन्दौर, देवास, भोपाल, नागदा, रतलाम व विश्वविद्यालय की राजनीति विज्ञान, लोकप्रशासन, इतिहास, फारेंसिक, कृषि विज्ञान अध्ययनशाला, सांख्यिकी विभाग व म.प्र. सामाजिक विज्ञान शोध संस्थान सहित 110 से अधिक विद्यार्थियों और शोधार्थियों ने सहभागिता की। डॉ. अंजना पाण्डेय, डॉ. नीलेश दुबे, प्रो. राजेश टेलर, प्रो. सलिल सिंह, प्रो. गणपत अहिरवार, डॉ. ज्योति यादव, डॉ. प्रगति निगम, कविता यदुवंशी, डॉ. रंजना जनबंधु, डॉ. पंकज माहेश्वरी, डॉ. उमा शर्मा, डॉ. अविनाश शर्मा, डॉ. नलिनसिंह पंवार, डॉ. शिवकुमार सिंह कुशवाह, सावन पटेल, डॉ. शोभा यादव, श्री अनोखीलाल भारती, डॉ. संग्राम भूषण, डॉ. डी.डी. बेल्दिया, डॉ. कनक गौराहा, डॉ. योगेश कुल्मी, डॉ. हेमन्त लोदवाल विशेष रूप से उपस्थित रहे।

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