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भरत मुनि का नाट्यशास्त्र विश्वकोश है, जो सभी कलाओं और ज्ञान के अन्तरावलम्बन को प्रकट करता है - कुलानुशासक प्रो शर्मा

संस्कार भारती और विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन द्वारा आयोजित आचार्य भरतमुनि महोत्सव में हुआ भरतमुनि के अवदान पर मंथन

आचार्य भरतमुनि और उनके योगदान पर विद्वत्संगोष्ठी में हुए व्याख्यान  

उज्जैन। संस्कार भारती जिला उज्जैन तथा ललित कला अध्ययनशाला, विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन द्वारा महर्षि भरतमुनि महोत्सव का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन के कुलगुरु डॉ अर्पण भारद्वाज ने की। मुख्य अतिथि के रूप में संस्कार भारती के अखिल भारतीय सह-कोषाध्यक्ष श्री श्रीपाद जोशी, विशेष अतिथि के रूप में विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन के वरिष्ठ कार्यपरिषद सदस्य श्री राजेश कुशवाह, कालिदास संस्कृत अकादमी के निदेशक डॉ गोविंद गंधे, वरिष्ठ रंगकर्मी श्री सतीश दवे, विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन के कुलानुशासक डॉ शैलेंद्र कुमार शर्मा, ललित कला अध्ययनशाला के विभागाध्यक्ष प्रो जगदीश चन्द्र शर्मा ने विमर्श में भाग लिया। 

कार्यक्रम का शुभारंभ अतिथियों द्वारा मां शारदा एवं महर्षि भरतमुनि के चित्र के समक्ष दीप प्रज्वलन कर किया गया। अतिथियों ने भरतमुनि नाट्यशास्त्र का पूजन किया। संस्कार भारती की परंपरा अनुसार कलाकारों द्वारा ध्येय गीत प्रस्तुत किया गया।

कार्यक्रम में मध्यप्रदेश शासन द्वारा हाल ही में शिखर सम्मान से सम्मानित डॉ गोविंद गंधे एवं श्री सतीश दवे को उज्जैन नगर के कलासाधकों की ओर से शाॅल श्रीफल भेंट कर सम्मानित किया गया। 

विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन के कुलानुशासक डॉ शैलेंद्र कुमार शर्मा ने अपने व्याख्यान में भरतमुनि द्वारा नाट्य जगत को दिए गए वैश्विक योगदान पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि भरत मुनि का नाट्यशास्त्र एक विश्वकोश है और यह प्रकट करता है कि सभी कलाएँ और ज्ञान का एक दूसरे के साथ अन्तरावलम्बन है। उन्होंने नाट्य, वास्तु या संगीत और अन्य कलाओं की भूमिका पर महत्वपूर्ण विचार किया है। नाट्य में वास्तुकला, नृत्य, संगीत, कविता और चित्रकला शामिल हैं। दूसरी ओर वास्तुकला में मूर्तिकला, चित्रकला और नृत्य शामिल हैं। 

विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन के वरिष्ठ कार्यपरिषद सदस्य श्री राजेश सिंह कुशवाह ने उज्जैन नाट्य जगत के कलासाधकों को राष्ट्र उत्थान के महायज्ञ में अपने सहभागिता सुनिश्चित करने का आवहन किया। 

कालिदास संस्कृत अकादमी के निदेशक डॉ गोविंद गंधे ने आचार्य भरतमुनि द्वारा रचित नाट्य शास्त्र के विभिन्न महत्वपूर्ण बिंदुओं पर प्रकाश डाला। 

मुख्य वक्ता के रूप में वरिष्ठ रंगकर्मी श्री सतीश दवे ने भरतमुनि नाट्य शास्त्र की वर्तमान में प्रासंगिकता विषय पर उद्बोधन दिया। आपने बताया कि आज पश्चिमी लेखक चिंतक जिन बिंदुओं का उल्लेख कर रहे हैं वह आचार्य भरत मुनि ने हजारों वर्षों पहले ही प्रस्तुत कर दिए हैं। भरतमुनि का नाट्यशास्त्र एक ऐसा ग्रंथ है जिसमें चारों वेदों का सार है और यह ग्रंथ समाज में समरसता स्थापित करने पर जोर देता है। 

मुख्य अतिथि के रूप में संस्कार भारती के अखिल भारतीय सह-कोषाध्यक्ष श्री श्रीपाद जोशी जी ने बताया कि संस्कार भारती द्वारा प्रारंभ किए गए पर्व आज समाज में स्थापित हो चुके हैं। संस्कार भारती अपने स्थापना काल से ही भारतीय संस्कृति के संवर्धन एवं संरक्षण का कार्य कर रही है। अध्यक्षीय उद्बोधन में विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन के कुलगुरु डॉ अर्पण भारद्वाज ने कहा कि आचार्य भरतमुनि द्वारा नाट्य जगत को दिया गया योगदान अतुलनीय है। उज्जैन की अपनी दीर्घ नाट्य परंपरा रही है। विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन अपनी ललित कला अध्ययनशाला के माध्यम से विद्यार्थियों में कलात्मक गुणों को विकसित करने हेतु लगातार प्रयत्नशील है। विश्वविद्यालय के विद्यार्थी युवा उत्सव तथा अन्य प्रतियोगिताओं में राज्य तथा राष्ट्रीय स्तर पर विश्वविद्यालय का परचम लहरा रहे हैं। 

अतिथियों का स्वागत प्रांतीय अधिकारी श्री संजय शर्मा, श्री योगेंद्र पिपलोनिया, श्री माधव तिवारी, श्री दुर्गाशंकर सूर्यवंशी, श्री पंकज आचार्य, श्री रामचंद्र गांगोलिया ने किया। कार्यक्रम में शाब्दिक स्वागत एवं भरत मुनि गीत की प्रस्तुति संस्कार भारती जिला उज्जैन के अध्यक्ष श्री सुंदरलाल मालवीय द्वारा दी गई। 

समारोह में उज्जैन के युवा रंगकर्मी श्री आदर्श यादव ने अश्वत्थामा पर आधारित नाट्य अंश प्रस्तुत किया। कार्यक्रम का संचालन संस्कार भारती जिला उज्जैन के सह-महामंत्री श्री दुर्गाशंकर सूर्यवंशी ने किया तथा आभार महामंत्री पं माधव तिवारी ने माना। संस्कार भारती जिला उज्जैन की उपाध्यक्ष श्रीमती अर्चना तिवारी द्वारा वंदे मातरम के गान के साथ कार्यक्रम को पूर्णता प्रदान की गई। इस अवसर पर बड़ी संख्या में नाट्यप्रेमी उपस्थित रहे।

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