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लोक बोलियां बचीं तभी हमारी संस्कृति बचेगी – कुलानुशासक प्रो शर्मा

भारत की अनेक बोलियों में समानता है – डॉ ढंड 

हमारे व्यक्तित्व का अनिवार्य अंग है भाषा – डॉ शुक्ला 

अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस हुआ अन्तरभाषाई संवाद और  मातृभाषाओं में गीतों एवं कविताओं की प्रस्तुति

उज्जैन। अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस पर विक्रम विश्वविद्यालय की हिंदी अध्ययनशाला द्वारा भारतीय भाषा प्रकोष्ठ, विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन, शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास, दिल्ली, उज्जैन इकाई एवं भारतीय भाषा समिति के संयुक्त तत्वावधान में अन्तरभाषाई संवाद और  मातृभाषाओं में गीतों की प्रस्तुति हुई। दिनांक 21 फरवरी 2025, शुक्रवार को दोपहर में आयोजित अन्तरभाषाई संवाद में विद्वानों और विद्यार्थियों ने अपनी अपनी मातृभाषा में विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डॉ राममोहन शुक्ला एवं प्रो राकेश ढंड थे। अध्यक्षता कुलानुशासक एवं विभागाध्यक्ष प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा ने की। कार्यक्रम में प्रो गीता नायक, प्रो जगदीश चंद्र शर्मा, डॉ शैलेन्द्र भारल एवं डॉ प्रभु चौधरी ने भी विचार व्यक्त किए। 

  

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए विक्रम विश्वविद्यालय के कुलानुशासक एवं विभागाध्यक्ष प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि वर्तमान में मातृभाषा के प्रति प्रेम की विशेष लहर चल रही है। मातृभाषा को सीखना नहीं होता वह सहज रूप में आती है। संविधान में 22 मातृभाषाओं को अनुसूची में सम्मिलित करने के साथ राष्ट्रीय शिक्षा नीति में मातृभाषा में शिक्षण को महत्व दिया गया है। लोक बोलियां बचीं तो हमारी संस्कृति भी बचेगी। सभी को अपनी अपनी मातृभाषा में विचार अभिव्यक्त करना चाहिए। महात्मा गांधी जी ने कहा था कि अगले 50 साल में मातृभाषा में शिक्षण हो तो अनेक वैज्ञानिक तैयार हो सकते हैं। भारतीय ज्ञान परंपरा अत्यंत समृद्ध है। जितना ज्ञान भारत एवं निकट के देशों की लोक एवं जनजातीय भाषा और बोलियां में है उतना ज्ञान पूरे विश्व की समस्त भाषाओं को में भी नहीं है। पांच सूत्रों के माध्यम से मातृभाषा के  प्रसार का कार्य करने की जरूरत है, संवेदना का संप्रेषण, सीखने की प्रवृत्ति, मौलिक चिंतन, गुलामी से मुक्ति, समाज में संस्कृति का विकास। विदेशियों आक्रांताओं ने हमारी संवेदना, आत्मा और विचार को भी गुलाम किया है, उससे मुक्त होने की जरूरत है।

मुख्य अतिथि डॉ राममोहन शुक्ला ने मातृभाषा दिवस की उपयोगिता एवं महत्व को बताया। उन्होंने कहा कि भाषा मूलतः दिलों का संप्रेषण है। मातृभाषा में वह सम्प्रेषणीयता सहजता से मिलती है।  कृत्रिमता ने बुद्धि के प्रयोग को छीन लेती है। भाषा हमारे व्यक्तित्व का अनिवार्य अंग है। मातृभाषा दिवस को यूनेस्को ने घोषित किया है। विविधता जहां होगी वहां विकास होगा। 

विशिष्ट अतिथि पूर्व डीएसडब्ल्यू डॉ राकेश ढंड ने कहा कि अपनी मातृभाषा को कभी भी नहीं भूलना चाहिए। अगर हमारी बोली मर गई तो हमारी परम्पराएँ भी संकट में आ जाएंगी। जितनी बोलियां हैं, सबका स्रोत संस्कृत और पालि है सिर्फ प्रस्तुति शैली का अंतर है। भारत की अनेक बोलियों में समानता है। उन्होंने कहा कि पंजाबी बोली की विशेषता मधुरता ओजपूर्ण  है। अंग्रेजी गुलामी की मानसिकता का प्रतीक है।

डॉ गीता नायक ने अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के उद्देश्य की चर्चा की। उन्होंने कहा कि शब्द ब्रह्म है।

बच्चा जब रोता है तो अपने विचार संप्रेषित करता है। भाषा की शुरुआत रोने हंसने से होती है। बच्चों की कल्पनाशीलता को बढ़ाना है तो मातृभाषा जरूरी है। प्रत्येक लोक भाषा का अपना साहित्य है, अपनी संस्कृति है। दशकों पहले बांग्ला भाषा के लिए आवाज उठाई गई थी। मातृभाषा दिवस पूरी दुनिया में मनाया जाता है।

प्रो जगदीश चंद्र शर्मा ने कहा कि हिंदी साहित्य के जाने-माने साहित्यकार अज्ञेय पंजाब से संबंध रखते थे, उन्हें  अनेक भाषाएं आती थीं। सैकडों वनस्पतियों के नाम और उनके वानस्पतिक नाम भी उनको ज्ञात थे। 

डॉ शैलेंद्र भारल ने कहा कि  एक बालक अपनी मातृभाषा जितनी जल्दी सिखाता है उतने जल्दी कोई  भी भाषा नहीं सिखता। हमें  नई पीढ़ी को बताना है कि विकास मातृभाषा में ही संभव है इसे दैनिक चर्चा में सम्मिलित किया जाए।

इस अवसर पर विभिन्न भाषाभाषी विद्यार्थियों ने अपने क्षेत्र की वेशभूषा धारण कर वाग्देवी भवन में आयोजित कार्यक्रम में भाग लिया।  उन्होंने अपनी अपनी मातृ भाषा में कविता, लोकगीत एवं भाषण दिए। प्राचीन भारतीय इतिहास विभाग के शौर्य मोहन ने पंजाबी में कविता सुनाई। वनस्पति विज्ञान की छात्रा वेदिका शर्मा ने डोगरी में कविता सुनाई। कुशल सिंह हिंदी अध्ययनशाला ने मारवाड़ी में राजस्थानी का महत्व बताते हुए आदिकाल में उसकी रचनाओं का उल्लेख किया। रणधीर आठिया ने बुंदेली में गीत प्रस्तुत किया। श्यामलाल चौधरी जी ने मालवी में गीत प्रस्तुत किया। अलका कुमारी, ललित कला ने पारंपरिक वेशभूषा में अपने क्षेत्र की अंगिका बोली में लोक गीत प्रस्तुत किया। श्री जीत डे ललित कला  अध्ययनशाला ने बांग्ला में गीत प्रस्तुत किया। दिनेश कुमार क्षीरसागर पत्रकारिता डिपार्टमेंट ने मराठी में वाचन किया। उषा कुमारी हिंदी अध्ययनशाला ने मगही में कविता प्रस्तुत की। निखिल कुमार मद्धेशिया ने अवधी भाषा में वाचन किया।

इस अवसर पर मातृभाषा में हस्ताक्षर अभियान चलाया गया। कार्यक्रम में विभागाध्यक्ष, संकाय सदस्यों, विद्यार्थियों ने बड़ी संख्या में भाग लिया। कार्यक्रम के अंत में विख्यात मानव वैज्ञानिक और साहित्यकार डॉ श्यामसिंह शशि के असामयिक निधन पर शोक व्यक्त कर श्रद्धांजलि अर्पित की गई। 

संचालन प्रो जगदीश चंद्र शर्मा ने किया। आभार प्रदर्शन डॉ प्रभु चौधरी ने किया।

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