87% आर्द्रभूमि नष्ट हो चुकी हैं - प्रो. भारद्वाज कुलगुरु
उज्जैन। विश्व आर्द्रभूमि दिवस प्रति वर्ष 2 फरवरी को मनाया जाता है, जिसका उद्देश्य आर्द्रभूमियों के महत्व को समझाना और इनके संरक्षण के प्रति जागरूकता फैलाना है। आर्द्रभूमियां प्राकृतिक संसाधनों के रूप में मानव जीवन हेतु सदैव अत्यधिक मूल्यवान हैं। ये जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित करने, जैव विविधता को बढ़ावा देने और पानी को शुद्ध करने का काम भी करती हैं। पिछले 300 वर्षों में दुनिया की 87% आर्द्रभूमि नष्ट हो चुकी है, और इनमें से अधिकांश क्षति 1900 के बाद हुई है, जबकि मानव आबादी के लिए इनका बहुत महत्व है।
यह बातें विक्रम विवि के कुलगुरु प्रो. डॉ. अर्पण भारद्वाज ने विश्व आर्द्रभूमि दिवस के अवसर पर अपने जागरूकता संदेश में कहीं। उन्होंने विक्रम विवि के पंडित जवाहरलाल नेहरू व्यवसाय प्रबंध संस्थान एवं कैंपस आउटरीच आर.यु.वि.वि. के सहभागियों को इस संदर्भ में जानकारी दी।
भारत और दुनिया में आर्द्रभूमि का महत्व: प्रो. धर्मेंद्र मेहता की व्याख्या
कैंपस आउटरीच में सहभागिता करते हुए प्रो. डॉ. धर्मेंद्र मेहता, निदेशक, पं.ज. ने. व्यवसाय प्रबंध संस्थान उज्जैन ने वहां के आर.यु. विद्यार्थियों से स्वर्णप्रस्थ स्थलीय क्षेत्र में चर्चा करते हुए भारत के प्रमुख आर्द्रभूमि क्षेत्रों के पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रकाश डाला। उन्होंने कदलुर झील (तमिलनाडु), पुणे का डबके तड़का (महाराष्ट्र), और भारतीय सुंदरवन (पश्चिम बंगाल) जैसे क्षेत्रों को महत्वपूर्ण स्थलों के रूप में उद्धृत किया। साथ ही, वेस्ट साइबेरियन लोलैंड, अमेज़न रिवर बेसिन और हडसन बे लोलैंड जैसे दुनिया के प्रमुख आर्द्रभूमि क्षेत्रों का जिक्र करते हुए उन्होंने बताया कि दुनिया की सबसे बड़ी संरक्षित वेटलैंड बोलीविया में स्थित लानोस डी मोक्सोस है, जो 17 मिलियन एकड़ से ज़्यादा क्षेत्र में फैला हुआ है और आकार में लगभग नॉर्थ डकोटा के समकक्ष है। यह क्षेत्र कई पक्षियों और जानवरों का सुरक्षित घर है।
इस आयोजन में विक्रम विवि के विद्यार्थियों कनिष्का शर्मा, मेहा शर्मा, रितिका राय और अक्षिता झा ने उज्जैन में आयोजित राष्ट्रीय स्तर के अंग्रेजी मीडिया समूह की ड्राइंग-पेंटिंग प्रतियोगिता में भी अपनी सक्रिय सहभागिता की। यह उल्लेखनीय है कि 1971 में रामसर सम्मेलन के दौरान इस विश्व वेटलैंड्स दिवस की शुरुआत हुई थी।
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