‘ऋतु' शब्द काल विभाग की ओर संकेत करता है। इसी आधार पर आचार्यो ने पूरे वर्ष को छः ऋतुओं के अंतर्गत समाहित किया है। आयुर्वेदाचार्यो ने इन ऋतुओं को दो भागों में बाँटा है।विसर्गकाल वह समय है जिसमें वर्षा (जिसमें लगभग 15जुलाई-15सितंबर तक समय ) शरद ( जिसमें लगभग 15सितंबर-15नवंबर तक समय ) तथा हेमन्त ( जिसमें लगभग 15नवंबर-15जनवरी तक समय ) ऋतुऐं आतीं हैं। इस समय सूर्य की किरणें कम तेजी से पृथ्वी पर पड़ती हैं और चंद्रमा का प्रकाश अधिक होने के कारण आहार पाचन की शक्ति अच्छी होती है, जिससे शरीर का बल वर्षा ऋतु से हेमन्त की तरफ दिनों दिन बढ़ता जाता है। और हम सभी के कार्य करने की क्षमता में भी वृद्धि होती है तथा हमें जल्द ही थकान महसूस नहीं होती। इन ऋतुओं में होने वाले प्रभाव को हम इस सारणी के माध्यम से समझ सकते हैं -
आदान काल में मुख्य रुप से जनवरी से जुलाई तक का समय होता है जिसमें शिशिर ( जिसमें लगभग 15जनवरी-15मार्च तक समय ) वसंत ( जिसमें लगभग 15मार्च-15मइ तक समय र्) तथा ग्रीष्म( जिसमें लगभग 15मई-15जुलाई तक समय ) ऋतुऐं आती हैं इस समय सूर्य का प्रकाश अधिक तेज होता है और सूर्य के प्रकाश की तीव्रता शिशिर से ग्रीष्म की तरफ जाने पर क्रमशः बढ़ती है। जिसके कारण सबसे अधिक गर्मी हमें मई-जून में महसूस होती है गरमी अधिक होने के कारण शरीर में स्थित जल कम होने लगता है जिससे प्यास अधिक लगती है एवं आहार पाचन शक्ति कम होने से भूख कम लगती है तथा कार्य करने की क्षमता(शारीरिक बल)भी कम हो जाती है।इस कारण आचार्यों ने गर्मी के दिनों में हल्का एवं सुपाच्य जो कि मीठा, चिकनाई युक्त हो एवं जलीयांश की अधिकता युक्त हो ऐसा भोजन करने को कहा है क्योकि ग्रीष्म ऋतु में वात का संचय होता है। ग्रीष्म ऋतु में पथ्यापथ्य व्यवस्था निम्न सारणी के माध्यम से समझाने का प्रयास किया गया है -
शाक वर्ग (सब्जियाँ)
- सेवन करें (पथ्य) लौकी, परवल, सेम की फली ,पालक, खीरा, तरोई,प्याज,ककड़ी, टमाटर आदि द्रव्यों का सेवन करना चाहिए।
- सेवन न करें (अपथ्य)कटहल, लहसुन, अदरक, सहिजन (मुनगा)की फली, एवं मिर्च मसाले युक्त तीखे एवं चटपटे पदार्थों का सेवन नही करना चाहिए।
फल वर्ग
- सेवन करें (पथ्य)मुख्य रुप से संतरा,मौसंबी,आम,तरबूज,खरबूज सिघाड़ा,मुनक्का अंगूर खसखस कच्चा बिल्व,नारियल आँवला का सेवन करना चाहिए।
- सेवन न करें (अपथ्य)लकुच (बड़हल),सुपारी,बादाम,अपक्व शहतूत खर्जूर
द्रव वर्ग
- सेवन करें (पथ्य) ऊपर बताए गए फलों के रस का, कच्चे आम(कैरी) का रस,नारियल पानी,नींबू शरबत,गन्ने का रस,ताड़ी(महुए से बनी शराब) घड़े का ठंडा पानी,घृत मिला हुआ सत्तू का घोल जो न ही अधिक गाढ़ा हो और न ही अधिक पतला,सुगंधित एवं शर्करा मिला हुआ जल,छाछ,दूध,घी आदि मीठे एवं रसीले पदार्थों का सेवन करना चाहिए।
- सेवन न करें (अपथ्य)चाय,कॉफी,आदि उष्ण पदार्थों का एवं दही(यदि दही का सेवन करना हो तो शक्कर मिला कर लें ) मदिरा तथा बर्फ का अधिक सेवन नही करना चाहिए।
ग्रीष्म ऋतु में ध्यान रखने योग्य सामान्य बातें -
- खाली पेट घर से बाहर न निकलें।
- घर से बाहर निकलते समय मुँह पर कपड़ा बाँध कर निकलें।
- प्याज का सेवन विशेष रूप से करना चाहिए क्योकि प्याज स्निग्ध होता है।
- वातानुकूलित स्थानों से निकलकर तुरंत धूप में बाहर न निकले, तापमान सामान्य होने पर ही बाहर जाए।
- धूप से आकर तुरंत ठंडे पानी से अपना शरीर न धोयें थोड़ा आराम करने के पश्चात शरीर साफ करें।
- त्वचा पर शीतल एवं सुगंधित द्रव्यों का लेप करना चाहिए जैसे चंदन खस (उशीर)
- गर्मी के दिनों में शराब का सेवन अधिक हानिकर होता है तथा ज्यादा व्यायाम भी नही करना चाहिए यदि करना हो तो भी कम व्यायाम ही करना चाहिए।
- धूप से आने पर फ्रिज में रखे ठंडे पानी एवं बर्फ का प्रयोग कम करें तथा एक बार में अधिक मात्रा में पानी नहीं पीना चाहिए। इसके सेवन से क्षुधा मन्द होती है तथा बार-बार अधिक ठण्डा पानी पीने से प्यास नहीं मिटती है।
- एक दिन पूर्व फ्रिज में रखा हुआ भोजन अर्थात् बासी भोजन तथा खुले स्थानों पर मिलने वाले पदार्थों का सेवन भी नहीं करना चाहिए।
इस प्रकार यदि हम आहार-विहार संबंधी इन सभी बातों का घ्यान रखते हैं तो ग्रीष्म ऋतु में हम न केवल स्वयं को स्वस्थ रख सकतें हैं बल्कि रोग उत्पन्न होने पर उन्हे बिना किसी औषध के ठीक भी कर सकते हैं।
लेखक
डॅा. प्रकाश जोशी, व्याख्याता, शासकीय स्वशासी आयुर्वेद महाविद्यालय उज्जैन (म.प्र.)
डॉ. मंजुला मिश्रा, व्याख्याता, शासकीय स्वशासी आयुर्वेद महाविद्यालय जबलपुर (म.प्र.)
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