विक्रम विवि में विशेष परिसंवाद का आयोजन
विक्रम विश्वविद्यालय में विश्व वाणी दिवस पर “कृषि वाणी की गूंज” विषयक विशेष परिसंवाद का आयोजन
कृषि वाणी अर्थात प्रभु वाणी - प्रो.भारद्वाज, कुलगुरु
कृषि वाणी में संवेदना और सेवा का भाव - डॉ. आर. एस. गोस्वामी
वाणी : एक भावना, एक पवित्रता का अनुभव – डॉ. धर्मेंद्र मेहता
उज्जैन। विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के पंडित जवाहरलाल नेहरू व्यवसाय प्रबंध संस्थान एवं कृषि अध्ययनशाला द्वारा संयुक्त रूप से विश्व वाणी दिवस के अवसर पर एक विशेष परिसंवाद का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की विशेषता रही नाबार्ड राजस्थान से पधारे डॉ. आर. एस. गोस्वामी, निदेशक (से.नि.) ग्रामीण पशु एवं कृषि विकास प्रशिक्षण सेवा संस्थान, भीलवाड़ा/कोटा से संबद्ध विषय विशेषज्ञ की गरिमामयी उपस्थिति।
कार्यक्रम का शुभारंभ कुलपति प्रो. भारद्वाज के आशीर्वचन संदेश से हुआ, जिसमें उन्होंने आयोजन को आत्मीयता और पवित्रता से परिपूर्ण बताते हुए कहा कि कृषि वाणी वास्तव में प्रभु वाणी के समान है। उन्होंने संस्थान के निदेशक प्रो. डॉ. धर्मेंद्र मेहता एवं कृषि अध्ययनशाला के प्रो. डॉ. राजेश टेलर को इस अभिनव पहल के लिए बधाई दी और कहा कि वाणी की शक्ति और उसके महत्व को समझना, उसे संजोना और उसका सम्मान करना हम सभी का कर्तव्य है।
मुख्य वक्ता डॉ. आर. एस. गोस्वामी ने अपने 32 वर्षों के नाबार्ड राजस्थान के फील्ड अनुभवों को साझा करते हुए बताया कि कृषि वाणी में गहराई, संवेदना और सेवा की भावना होती है। उन्होंने आधुनिक ड्रोन टेक्नोलॉजी को वाणी दिवस से जोड़ते हुए अपने नेचुरल रिसोर्स एवं ह्यूमन रिसोर्स मैनेजमेंट से संबंधित अनुभव भी साझा किए।
प्रो. डॉ. धर्मेंद्र मेहता, निदेशक, पंडित जवाहरलाल नेहरू व्यवसाय प्रबंध संस्थान ने आयोजन की रूपरेखा प्रस्तुत करते हुए कहा कि “विश्व वाणी दिवस महज स्पीच नहीं, एक भावना, विनम्रता और पवित्रता का अहसास है।” उन्होंने बताया कि यह दिवस हर वर्ष 16 अप्रैल को मनाया जाता है। वाणी केवल ध्वनि नहीं, बल्कि आत्मा की अभिव्यक्ति है। यह हमारे विचारों, भावनाओं और पहचान को व्यक्त करने का माध्यम है, चाहे वह मां की लोरी, शिक्षक की सीख हो या कवि की कविता — वाणी हर स्तर पर लोगों को जोड़ती है, प्रेरित करती है और सामाजिक परिवर्तन की नींव रखती है।
उन्होंने यह भी कहा कि बड़े-बड़े भाषण नहीं, प्रभावी संवाद ज़रूरी है। वाणी दिवस का उद्देश्य केवल बोलना नहीं बल्कि सार्थक संवाद, सहानुभूति से सुनना और समझना है।
कार्यक्रम के द्वितीय चरण में संप्रेषण विशेषज्ञ प्रो. डॉ. धर्मेंद्र मेहता, कार्य परिषद सदस्य प्रो. डॉ. कामरान सुल्तान, प्रो. डॉ. डी. डी. बेदिया, प्रो. डॉ. संदीप तिवारी, डॉ. सचिन राय ने भी अपने विचार प्रस्तुत किए। उन्होंने बताया कि वाणी का एक वैज्ञानिक पहलू भी है, जो हमें याद दिलाता है कि हमारी आवाज़ भी हमारे स्वास्थ्य का अभिन्न हिस्सा है। गायक, शिक्षक, कॉमेंटेटर, वक्ता, कॉल सेंटर, कृषि, व्यवसाय, कानून जैसे क्षेत्रों में वाणी एक उपकरण के समान है, जिसकी नियमित देखभाल आवश्यक है। गलत बोलने की आदतें, अत्यधिक चिल्लाना, धूम्रपान और प्रदूषण वाणी को क्षतिग्रस्त कर सकते हैं।
प्रो. डॉ. राजेश टेलर, विभागाध्यक्ष, कृषि सांख्यिकी अध्ययनशाला ने कार्यक्रम का समापन करते हुए कहा कि भावनाओं और जिम्मेदारियों से भरी वाणी का सभी को संकल्प लेना चाहिए। वाणी केवल अभिव्यक्ति का माध्यम नहीं, बल्कि एक जिम्मेदारी भी है। एक गलत शब्द जहां किसी को तोड़ सकता है, वहीं एक सही शब्द किसी के जीवन में आशा और हौसला भर सकता है।
इस अवसर पर डॉ. रंजना जनबंधु, डॉ. अनीता यादव, डॉ. राजेश परमार, पंकज ढुंगे, गोविंद तोमर, वर्षा डेडिंग, ध्रुव मालवीय, ओम प्रकाश यादव एवं दिनेश सिंगार ने भी सहभागिता की। सभी ने अपने वक्तव्यों में यह कहा कि हमें अपनी वाणी में करुणा, विनम्रता और विवेक को शामिल करना चाहिए, जिससे न केवल स्वयं का विकास होता है बल्कि दूसरों की भावनाओं का भी सम्मान होता है।
कार्यक्रम की समन्वयक एवं जेएनआईबीएम इनोवेशन काउंसिल की डॉ. नयनतारा डामोर ने आयोजन की रूपरेखा प्रस्तुत की तथा सभी अतिथियों, वक्ताओं एवं प्रतिभागियों का आभार व्यक्त किया।
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