उज्जैन। आज दिनांक 22 अप्रैल 2025 को सिंधिया प्राच्य विद्या शोध प्रतिष्ठान में पांच दिवसीय कार्यशाला का आयोजन प्रारंभ हुआ। यह कार्यशाला पांडुलिपियों एवं अन्य विषयों में सह संबंध" पर आधारित थी।
उद्घाटन के अवसर पर विक्रम विश्वविद्यालय के माननीय कुलगुरु प्रो अर्पण भारद्वाज, अश्विनी शोध संस्थान के निदेशक डॉक्टर आरसी ठाकुर, सिंधिया प्राच्य विद्या शोध प्रतिष्ठान के निदेशक डॉ शीतांशु रथ एवं रसायन विज्ञान की विभागाध्यक्षा प्रो उमा शर्मा अतिथि के रूप में उपस्थित थे कुलगुरु महोदय ने यह स्पष्ट किया कि नवीन शिक्षा नीति में समस्त विषयों के अंतर्संबंध पर कार्य किया जाना कितना आवश्यक है इस कारण से यह कार्यशाला अत्यंत महत्वपूर्ण सिद्ध होगी। उमा शर्मा जी ने पांडुलिपियों के संरक्षण और परिक्षण में रसायन विज्ञान के उपयोग पर प्रकाश डाला । डॉ आर सी ठाकुर जी ने मुद्राओं के महत्व पर अपने विचार रखें । प्रो शीतांशु रथ ने समस्त अतिथियों का स्वागत करके कार्यक्रम की रूपरेखा प्रस्तुत की।इस सत्र में डॉ रमण सोलंकी पुरातत्वविद विक्रम विश्वविद्यालय, डॉ डी डी बेदिया, डॉ वी एस परमार, डॉ संदीप तिवारी, डॉ अजय शर्मा ,डॉ सर्वेश्वर शर्मा, डॉ हेमंत लोदवाल, डॉ अंजना गौर ,डॉ एकता व्यास सहित लगभग 40 प्रशिक्षणार्थी उपस्थित थे ।कार्यक्रम का संचालन डॉ प्रीति पांडे ने किया एवं आभार डॉ अंजना सिंह गौर ने माना।
उद्घाटन सत्र के पश्चात भोजन अवकाश हुआ और उसके पश्चात कार्यशाला की प्रथम कक्षा आयोजित की गई ।इस कक्ष में प्रमुख वक्ता के रूप में डॉ आरसी ठाकुर जी एवं डॉ एस एल वरे उपस्थित थे ।इस एल वरे जी ने इतिहास पर्यटन और पांडुलिपि में अंतर्संबंध बताया एवं व्यवहारिक पक्ष पर अपने विचार रखे। उन्होंने यह भी बताया कि किस प्रकार स्रोत के रूप में पांडुलिपियों का प्रयोग इतिहास में किया जा सकता है। डॉ आरसी ठाकुर जी ने रामायण और महाभारत से संबंधित महत्वपूर्ण पांडुलिपियों का उल्लेख किया और साथ ही इनके संरक्षण के पारंपरिक तरीकों पर भी प्रकाश डाला। इस कार्यक्रम का संचालन आलोक निगम ने किया एवं आभार श्रीमती भारती जी ने माना।
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