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सिंधिया प्राच्य विद्या शोध प्रतिष्ठान द्वारा पांडुलिपियों का अन्य विषयों से सहसंबंध विषय पर आयोजित कार्यशाला में हुए व्याख्यान



उज्जैन। सिंधिया प्राच्य विद्या शोध प्रतिष्ठान द्वारा पांडुलिपियों का अन्य विषयों से सहसंबंध विषय पर आयोजित पांच दिवसीय कार्यशाला के आज तीसरे दिन 24/ 4/ 2025 को दो सत्र संपन्न हुए। 

 प्रथम सत्र में डॉ पूजा उपाध्याय, प्राध्यापक पाणिनि संस्कृत विश्वविद्यालय तथा डॉ सर्वेश्वर शर्मा प्राध्यापक ज्योतिर्विज्ञान एवं कर्मकांड अध्ययनशाला विक्रम विश्वविद्यालय उपस्थित थे। 

डॉ पूजा उपाध्याय ने संस्कृत विषय के व्याकरण के कई ऐसे दृष्टांत उपस्थित किए, जिनके द्वारा पांडुलिपियों को समझा जा सके। उन्होंने कहा कि प्राचीन ज्ञान की संवाहक पांडुलिपियों के लिए संस्कृत को समझना अत्यंत आवश्यक है।  उनका यह मानना था कि पांडुलिपियों का अध्ययन और संपादन एक महत्वपूर्ण कार्य है जो कि अभी भी पूर्ण रूप से नहीं हो सका है । उस हेतु संस्कृत को समझना आवश्यक है और संस्कृत के  सभी अंगों को समझना आवश्यक है । डॉ सर्वेश्वर शर्मा ने ज्योतिष एवं पांडुलिपियों के बीच में संबंध स्थापित करते हुए यह बताया कि किस प्रकार वृहत संहिता, सूर्य सिद्धांतिका पांडुलिपि के रूप में ही लिखे गए थे। भोजन अवकाश के बाद द्वितीय सत्र में डॉ गोविंद गंधे निदेशक कालिदास संस्कृत अकादमी तथा श्री घनश्याम रतनानी प्रकल्प अधिकारी श्री विष्णु श्रीधर वाकणकर वेधशाला डोंगला तथा महेंद्र पंड्या प्राध्यापक ज्योतिर्विज्ञान एवं कर्मकांड अध्ययनशाला विक्रम विश्वविद्यालय उपस्थित थे।

 घनश्याम रतनानी जी ने काल गणना विषय पर विस्तार से समझाते हुए डोंगला वेधशाला के महत्व को स्पष्ट किया तथा डोंगला के सभी खगोलीय यंत्रों के बारे में परिचय दिया।  वहीं महेंद्र पंड्या जी ने स्रोत परंपरा को किस प्रकार वैदिक कर्मकांडीय समाज ने आगे बढ़ाया है उसको स्पष्ट करते हुए या बताया कि सर्वप्रथम अक्षर शब्द के माध्यम से हमारे मस्तिष्क में लिखे जाते हैं और बाद में जब आवश्यकता पड़ी तो उनको लिपिबद्ध करके हस्तलिखित पांडुलिपियों का निर्माण किया गया। डॉ गोविंद गंधे ने चर्चा करते हुए यह बताया कि समय सबसे छोटे खंड को  पल के रूप में  भारतीय कालगणना प्रारंभ होती है और पल घटी के द्वारा यह कार्य करना होता है। विश्व में जो भारतीय काल गणना है वह पूर्णतया सैद्धांतिक और वैज्ञानिक है। उन्होंने यह भी बताया कि युधिष्ठिर के बाद अर्थात महाभारत काल के बाद यदि कोई काल गणना जो कि वैज्ञानिक और शास्त्रीय संबंध है तो वह विक्रमादित्य के द्वारा चलाई गई 57 ईसा पूर्व का संबंध है या उज्जैन के लिए एक अत्यंत गौरव का विषय है। 

इस प्रकार दो सत्रों में आज की कार्यशाला संपन्न हुई कार्यशाला का संचालन और आभार कार्यशाला में पंजीकृत विद्यार्थियों ने किया। संपूर्ण कार्यशाला में लगभग 50 लोगों उपस्थित थे जिसमें से 30 पंजीकृत विद्यार्थी तथा अन्य प्राध्यापक थे।

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