Skip to main content

प्राची द्वारा आयोजित सम्मान समारोह में प्रो शर्मा एवं हेमन्त श्रीमाल साहित्य सेवा सम्मान से अलंकृत

डॉ. शैलेन्द्र कुमार शर्मा एवं गीतकार हेमंत श्रीमाल को साहित्य सेवा सम्मान

उज्जैन। बैंकर्स साहित्यिक संस्था प्राची के पुनर्स्थापना दिवस पर प्रसिद्ध व्यंग्यकार शशांक दुबे की अध्यक्षता में शिक्षाविद एवं साहित्यकार डॉ. शैलेन्द्र कुमार शर्मा एवं गीतकार हेमंत श्रीमाल को साहित्य सेवा सम्मान से सम्मानित किया गया। उन्हें अतिथियों द्वारा शॉल, सम्मान चिह्न और पुष्पमाला अर्पित कर सम्मानित किया गया। 

आयोजन में डॉ. शैलेन्द्र कुमार शर्मा ने अपने उद्गार व्यक्त करते हुए कहा कि जो जितना गतिमान है वो साधना में उतना ही स्थिर है।  गीत शिरोमणि हेमंत श्रीमाल को मां सरस्वती ने अतुलनीय काव्य प्रतिभा के साथ साथ मधुर कंठ भी दिया है । 

आयोजन में श्री हेमंत श्रीमाल के गीत सुन श्रोता आनंद विभोर हो गए।

केशव पंड्या ने डॉ. शैलेन्द्र कुमार शर्मा तथा संस्था अध्यक्ष मानसिंह शरद ने हेमंत श्रीमाल के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डाला।

स्वागत भाषण राजेंद्र नागर निरंतर ने दिया। नीता कावलकर के द्वारा प्रस्तुत सरस्वती वंदना ने सबको मंत्र मुग्ध कर दिया। 

हमेशा की तरह नृसिंह ईनानी ने शानदार संचालन किया। आभार संस्था सचिव गोपाल कृष्ण निगम ने व्यक्त किया।

इस अवसर पर कॉमरेड यू एस छाबड़ा, दिलीप जैन, रविन्द्र जेठवा, प्रदीप सक्सेना, प्रांजल मांदलिया शांतिलाल जैन,राजेश सक्सेना, दिनेश रावल, वी एस खंडायत, प्रदीप माहेश्वरी,अशोक जैन, आनंद श्रीवास्तव, संतोष राव, अंकित वर्मा,शायर रफीक नागोरी, प्रसिद्ध कवि अशोक भाटी, सुगनचंद जैन,सुरेंद्र सर्किट, मुकेश जोशी, धनसिंह चौहान,राम त्यागी आदि की गरिमामयी उपस्थिति रही।

Comments

मध्यप्रदेश समाचार

देश समाचार

Popular posts from this blog

आधे अधूरे - मोहन राकेश : पाठ और समीक्षाएँ | मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे : मध्यवर्गीय जीवन के बीच स्त्री पुरुष सम्बन्धों का रूपायन

  आधे अधूरे - मोहन राकेश : पीडीएफ और समीक्षाएँ |  Adhe Adhure - Mohan Rakesh : pdf & Reviews मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा हिन्दी के बहुमुखी प्रतिभा संपन्न नाट्य लेखक और कथाकार मोहन राकेश का जन्म  8 जनवरी 1925 को अमृतसर, पंजाब में  हुआ। उन्होंने  पंजाब विश्वविद्यालय से हिन्दी और अंग्रेज़ी में एम ए उपाधि अर्जित की थी। उनकी नाट्य त्रयी -  आषाढ़ का एक दिन, लहरों के राजहंस और आधे-अधूरे भारतीय नाट्य साहित्य की उपलब्धि के रूप में मान्य हैं।   उनके उपन्यास और  कहानियों में एक निरंतर विकास मिलता है, जिससे वे आधुनिक मनुष्य की नियति के निकट से निकटतर आते गए हैं।  उनकी खूबी यह थी कि वे कथा-शिल्प के महारथी थे और उनकी भाषा में गज़ब का सधाव ही नहीं, एक शास्त्रीय अनुशासन भी है। कहानी से लेकर उपन्यास तक उनकी कथा-भूमि शहरी मध्य वर्ग है। कुछ कहानियों में भारत-विभाजन की पीड़ा बहुत सशक्त रूप में अभिव्यक्त हुई है।  मोहन राकेश की कहानियां नई कहानी को एक अपूर्व देन के रूप में स्वीकार की जाती ...

खाटू नरेश श्री श्याम बाबा की पूरी कहानी | Khatu Shyam ji | Jai Shree Shyam | Veer Barbarik Katha |

संक्षेप में श्री मोरवीनंदन श्री श्याम देव कथा ( स्कंद्पुराणोक्त - श्री वेद व्यास जी द्वारा विरचित) !! !! जय जय मोरवीनंदन, जय श्री श्याम !! !! !! खाटू वाले बाबा, जय श्री श्याम !! 'श्री मोरवीनंदन खाटू श्याम चरित्र'' एवं हम सभी श्याम प्रेमियों ' का कर्तव्य है कि श्री श्याम प्रभु खाटूवाले की सुकीर्ति एवं यश का गायन भावों के माध्यम से सभी श्री श्याम प्रेमियों के लिए करते रहे, एवं श्री मोरवीनंदन बाबा श्याम की वह शास्त्र सम्मत दिव्यकथा एवं चरित्र सभी श्री श्याम प्रेमियों तक पहुंचे, जिसे स्वयं श्री वेद व्यास जी ने स्कन्द पुराण के "माहेश्वर खंड के अंतर्गत द्वितीय उपखंड 'कौमारिक खंड'" में सुविस्तार पूर्वक बहुत ही आलौकिक ढंग से वर्णन किया है... वैसे तो, आज के इस युग में श्री मोरवीनन्दन श्यामधणी श्री खाटूवाले श्याम बाबा का नाम कौन नहीं जानता होगा... आज केवल भारत में ही नहीं अपितु समूचे विश्व के भारतीय परिवार ने श्री श्याम जी के चमत्कारों को अपने जीवन में प्रत्यक्ष रूप से देख लिया हैं.... आज पुरे भारत के सभी शहरों एवं गावों में श्री श्याम जी से सम्बंधित संस्थाओं...

दुर्गादास राठौड़ : जिण पल दुर्गो जलमियो धन बा मांझल रात - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा

अमरवीर दुर्गादास राठौड़ : जिण पल दुर्गो जलमियो धन बा मांझल रात। - प्रो शैलेन्द्रकुमार शर्मा माई ऐड़ा पूत जण, जेहड़ा दुरगादास। मार मंडासो थामियो, बिण थम्बा आकास।। आठ पहर चौसठ घड़ी घुड़ले ऊपर वास। सैल अणी हूँ सेंकतो बाटी दुर्गादास।। भारत भूमि के पुण्य प्रतापी वीरों में दुर्गादास राठौड़ (13 अगस्त 1638 – 22 नवम्बर 1718)  के नाम-रूप का स्मरण आते ही अपूर्व रोमांच भर आता है। भारतीय इतिहास का एक ऐसा अमर वीर, जो स्वदेशाभिमान और स्वाधीनता का पर्याय है, जो प्रलोभन और पलायन से परे प्रतिकार और उत्सर्ग को अपने जीवन की सार्थकता मानता है। दुर्गादास राठौड़ सही अर्थों में राष्ट्र परायणता के पूरे इतिहास में अनन्य, अनोखे हैं। इसीलिए लोक कण्ठ पर यह बार बार दोहराया जाता है कि हे माताओ! तुम्हारी कोख से दुर्गादास जैसा पुत्र जन्मे, जिसने अकेले बिना खम्भों के मात्र अपनी पगड़ी की गेंडुरी (बोझ उठाने के लिए सिर पर रखी जाने वाली गोल गद्देदार वस्तु) पर आकाश को अपने सिर पर थाम लिया था। या फिर लोक उस दुर्गादास को याद करता है, जो राजमहलों में नहीं,  वरन् आठों पहर और चौंसठ घड़ी घोड़े पर वास करता है और उस पर ही बैठकर बाट...