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न्यूरोबिक्स से मानसिक स्वास्थ्य को नई ऊर्जा मिलती है, यह मस्तिष्क का व्यायाम है - डॉ. महीप भटनागर

विक्रम विश्वविद्यालय के ‘विक्रमादित्य वाणी’ शृंखला की प्रमुख परिचर्चा रेडियो दस्तक पर हुई प्रसारित

उज्जैन। तनाव, चिंता, अवसाद जैसी समस्याएं आज केवल मानसिक स्थिति नहीं, बल्कि सामाजिक स्वास्थ्य का भी प्रश्न बन चुकी हैं। इनसे निपटने के लिए दवाओं से ज़्यादा ज़रूरी है — मस्तिष्क की सक्रियता, इंद्रियों का रचनात्मक उपयोग और सकारात्मक विचारों की संरचना। न्यूरोबिक्स इसी दिशा में एक कारगर विधा है, जो मस्तिष्क को सक्रिय रखने और जीवन में उत्साह बनाए रखने का व्यावहारिक विज्ञान है।     

उक्त विचार प्रख्यात शिक्षाविद् और न्यूरोबिक्स विशेषज्ञ , मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर के पूर्व डीन एवं प्रोफेसर,  डॉ. महीप भटनागर ने विक्रम विश्वविद्यालय के अद्भुत फ्लैगशिप कार्यक्रम के अंतर्गत 'विक्रमादित्य वाणी' की दूसरी कड़ी में रेडियो दस्तक 90.8 एफएम पर एक परिचर्चा में व्यक्त किए। 

संवाद के दौरान, विक्रम विश्वविद्यालय के फार्मेसी संस्थान के विभागाध्यक्ष डॉ. कमलेश दशोरा ने डॉ. भटनागर से मानसिक स्वास्थ्य की चुनौतियों, युवाओं में बढ़ते तनाव, और न्यूरोबिक्स की भूमिका से जुड़े प्रश्न रखे। उत्तर में डॉ. भटनागर ने बताया कि न्यूरोबिक्स केवल मानसिक क्रियाओं का अभ्यास नहीं, बल्कि एक जीवनशैली है, जिसमें हम अपनी आदतों में छोटे बदलाव लाकर मस्तिष्क के नए तंत्र विकसित कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि मानसिक रोगों को लेकर समाज में संवाद की ज़रूरत है, जिससे व्यक्ति समय रहते समाधान की ओर बढ़ सके। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि न्यूरोबिक्स का अभ्यास ध्यान, हास्य, रचनात्मक लेखन, नई भाषाओं या कलाओं को सीखना, या यहां तक कि बंद आंखों से ब्रश करने जैसे सरल प्रयोगों से किया जा सकता है। यह मस्तिष्क को यांत्रिकता से निकालकर लचीलेपन और नवाचार की ओर ले जाता है।  

विक्रम विश्वविद्यालय के कुलगुरु प्रो. अर्पण भारद्वाज ने बताया कि यह प्रसारण, विक्रम विश्वविद्यालय और रेडियो दस्तक 90.8 एफएम के बीच हुए एमओयू के अंतर्गत ‘विक्रमादित्य वाणी’  नामक रेडियो गतिविधियां अद्भुत फ्लैगशिप शृंखला का हिस्सा है, जिसका उद्देश्य वैज्ञानिक दृष्टिकोण, भारतीय ज्ञान परंपरा, और सामाजिक विषयों पर सार्थक संवाद स्थापित करना है। यह शृंखला समाज को जागरूक करने की दिशा में एक नवाचारी प्रयास है।

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