जीवन्त धरोहर हैं पाण्डुलिपियाँ, जिनमें समाहित है भारत की अक्षय ज्ञान निधि – प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा
कार्यशाला में हुए पांडुलिपियों के विविध विषयों से सम्बन्ध पर हुए विशिष्ट व्याख्यान
उज्जैन। सिंधिया प्राच्य विद्या शोध प्रतिष्ठान, विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन में आयोजित पंच दिवसीय कार्यशाला चतुर्थ दिन 25 अप्रैल को पांच व्याख्यान हुए।
कार्यशाला में विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन के कुलानुशासक एवं हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा ने पांडुलिपि विज्ञान और पाठ सम्पादन के सिद्धांतों पर व्याख्यान दिया। उन्होंने कहा कि पांडुलिपि विज्ञान अत्यंत महत्वपूर्ण विधा है। भारत की लाखों पांडुलिपियां अक्षय ज्ञान निधि है। उनमें से अब तक मात्र तीन - चार प्रतिशत पांडुलिपियों का ही संपादन हुआ है। अतः मूल पांडुलिपियों का संपादन अत्यंत आवश्यक है। पांडुलिपियां जीवंत धरोहर हैं जिसमें अनुसंधान की असीम संभावनाएं हैं। पांडुलिपियाँ भारत के ज्ञान-विज्ञान, इतिहास, साहित्य, भाषा, लिपि एवं चिन्तन का जाग्रत प्रमाण हैं। ज्ञान क्षेत्र के विस्तार और विश्व सभ्यता के विकास के लिए इनका सम्पादन और प्रकाशन निरन्तर होना चाहिए।
पांच दिवसीय कार्यशाला में प्रथम सत्र में डॉ सदानंद त्रिपाठी संस्कृत महाविद्यालय, डॉ शुभम शर्मा पाणिनि विश्वविद्यालय एवं डॉ नारायण व्यास, प्रसिद्ध पुरातत्वविद, भोपाल सम्मिलित थे। डॉ शुभम शर्मा ने पांडुलिपियों के इतिहास, उद्भव और विकास पर अपना व्याख्यान दिया।
डॉ सदानंद त्रिपाठी ने पांडुलिपियों के विशेष संदर्भ में यह बताया कि पांडुलिपि में दो लोगों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है एक शास्त्रकार और दूसरा लिपिकार। उन्होंने दास रथीयतंत्रम जैसी पांडुलिपि के चित्र सभी को दिखाए।
डॉ नारायण व्यास भोपाल ने बताया कि पांडुलिपि यदि चिपक जाती है तो उसको रासायनिक संरक्षण किया जाता है। उन्होंने यह भी बताया कि उनके पिता ने 300 पांडुलिपियां सिंधिया प्राच्य विद्या संस्थान में दान की हैं। इस प्रकार संपूर्ण सत्र में तीन व्याख्यान हुए।
दोपहर में हुए सत्र में प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा कुलानुशासक, विक्रम विश्वविद्यालय तथा जीवाजीराव पुस्तकालय के अध्यक्ष डॉ अनिल कुमार जैन उपस्थित थे। विशिष्ट वक्ता के रूप में डॉ अनिल कुमार जैन ने अपने उद्बोधन में बताया कि किस प्रकार प्राचीन भारतीय संस्कृति दूर-दूर तक फैली थी किंतु उनसे संबंधित पांडुलिपियां सीमित मात्रा में उपस्थित हैं। साथ उन्होंने यह भी बताया की पांडुलिपियों के डिजिटिलाइजेशन की अत्यंत आवश्यकता है। सिंधिया संस्थान की 4500 पांडुलिपियां डिजिटल हो चुकी हैं। इस प्रकार यह सत्र समाप्त हुआ।
सत्र के अंत में पुलवामा में हुए आतंकी हमले को लेकर सभा में उपस्थित सभी सदस्यों के द्वारा 2 मिनट का मौन रखा गया और मृत आत्माओं को श्रद्धाजंलि अर्पित की। इस कार्यशाला में लगभग पचास से अधिक प्रतिभागियों ने भाग लिया।
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