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विक्रम विश्वविद्यालय में कविता और चित्रों की जुगलबंदी एवं सृजन सम्मान हुआ, अज्ञेय काव्य के विविध आयामों पर हुई राष्ट्रीय संगोष्ठी

अज्ञेय, श्रीनरेश मेहता जैसे कवि  सत्य बोलने की ताकत देते हैं – पूर्व कुलपति प्रो मिश्र 

हिंदी रचनाधर्मिता को आमजन के साथ - साथ विश्व फलक पर  पहुंचाया अज्ञेय ने – प्रो लोहनी 

उज्जैन। विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन में रामनवमी के पावन अवसर पर और प्रख्यात कवि - कथाकार स. ही. वात्स्यायन अज्ञेय की स्मृति में राष्ट्रीय संगोष्ठी एवं व्याख्यान, समकालीन कविताओं पर केंद्रित रूपांकन एवं सम्मान समारोह हिंदी अध्ययनशाला, वाग्देवी भवन में शनिवार दोपहर में संपन्न हुआ। इस अवसर पर ललित कला अध्ययनशाला के विद्यार्थी- कलाकारों द्वारा समकालीन रचनाकारों की कविताओं पर केंद्रित रूपांकन तथा सर्जकों का सम्मान किया गया। अध्यक्षता कुलगुरु प्रो अर्पण भारद्वाज ने की। विशिष्ट उद्बोधन पूर्व कुलपति प्रो रामराजेश मिश्र ने दिया। 

अज्ञेय के काव्य के विविध आयामों पर केंद्रित राष्ट्रीय संगोष्ठी में चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय मेरठ के हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो नवीनचंद्र लोहनी, विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के कुलानुशासक एवं विभागाध्यक्ष प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा, प्रो गीता नायक, प्रो जगदीश चंद्र शर्मा ने व्याख्यान दिए। कार्यक्रम में प्रो रामराजेश मिश्र को उनके जन्मदिन पर अतिथियों द्वारा शॉल, श्रीफल, पुष्पमाला एवं साहित्य भेंट कर उनका सारस्वत सम्मान किया गया। 

विशिष्ट वक्तव्य में पूर्व कुलपति प्रो. रामराजेश मिश्र ने अज्ञेय जी के साथ बिताए गए समय के कुछ संस्मरण सुनाए। उन्होंने अज्ञेय और नरेश मेहता के व्यक्तित्व पर बात करते हुए कहा कि हमें सत्य बोलने की ताकत अज्ञेय, सर्वेश्वरदयाल सक्सेना, श्रीनरेश मेहता जैसे कवि देते हैं। उन्होंने अज्ञेय की कविता नाच का पाठ करते हुए अज्ञेय को अपना प्रिय कवि बताया।

मुख्य अतिथि प्रो नवीनचंद्र लोहनी मेरठ ने कहा कि अज्ञेय को मानद उपाधि विक्रम विश्वविद्यालय द्वारा अर्पित की गई थी। उन्होंने कविता, निबंध, आलोचना, गद्य आदि के माध्यम से साहित्य को अत्यंत समृद्ध किया है। तारसप्तक का संकलन कर उन्होंने एक नई दिशा दिखाई। उन्होंने हिंदी रचनाधर्मिता को आमजन के साथ - साथ विश्व फलक पर भी पहुंचाया है।

मुख्य वक्ता कुलानुशासक प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा ने अपने व्याख्यान में कहा कि अज्ञेय हिंदी की बहुविध विधाओं में सृजनरत रहे कलमकार के रूप में सुविख्यात हैं। गहरा परंपरा बोध और भारतीय दार्शनिक एवं  सांस्कृतिक मूल्यों के प्रति आस्था के साथ अविराम खोजी वृत्ति, आधुनिकता के प्रति जागरूक वैचारिकी और जीवन प्रवाह को लेकर सजग दृष्टि अज्ञेय के साहित्य को विलक्षण बनाते हैं। वे महत्त्वपूर्ण कवि, कथा-साहित्य को नया मोड़ देने वाले कथाकार, अनूठे शैलीकार, सांस्कृतिक और ललित निबन्धकार के रूप में अद्वितीय हैं।

अध्यक्षीय उद्बोधन में विक्रम विश्वविद्यालय के कुलगुरु प्रो. अर्पण भारद्वाज ने पूर्व कुलपति प्रो. रामराजेश मिश्र को जन्मदिन की बधाई दी। उन्होंने अज्ञेय के साहित्यिक अवदान पर बात करते हुए कहा कि अज्ञेय के साहित्य को पढ़ते है तो हमें दो अज्ञेय दिखाई देते हैं एक पद्य में, दूसरे गद्य में। उनकी कविता में आजादी के आंदोलन का स्वर था। उनका संपूर्ण साहित्य विचारणीय है।

आयोजन में पांच समकालीन कवियों सर्वश्री श्रीराम दवे, श्री संतोष सुपेकर, डॉ राजेश रावल सुशील, श्री संदीप सृजन, डॉ अनिल जूनवाल ने अपनी चर्चित कविताओं का पाठ किया, जिन पर ललित कला विभाग के विद्यार्थी कलाकारों ने चित्रों की रचना की। इन चित्रों का सृजन कला गुरु श्री लक्ष्मीनारायण सिंहरोडिया एवं डॉ महिमा मरमट के मार्गदर्शन में विद्यार्थी कलाकारों श्री पंकज सेहरा, अलका कुमारी, लक्ष्मी कुशवाह, जगबंधु मेहतो, एनी मोदी, स्मृति गहलोत, प्रियांशी खरे, वेदांत भारद्वाज, आदित्य चौहान अलका कुमारी आदि ने किया था। कलाकारों का सम्मान अतिथियों द्वारा किया गया। 

आयोजन में विभिन्न कवियों ने काव्यपाठ किया। श्री राम दवे ने  ओटला, उनकी जरूरतें, डरते - डरते ही सही, संतोष सुपेकर ने  एक थी मुस्कान की बेचारगी और उसके बहाने, डॉ. अनिल जूनवाल ने माँ, रामवंदना, बेटियां, संदीप सृजन ने वक्त के मायने बदले है, राजेश रावल सुशील ने बेटी का सम्मान कर मनुज, डॉ. मोहन बैरागी ने कौन सा शहर है बोलो, शीर्षक से कविता वाचन किया।

इस अवसर पर अतिथियों द्वारा डॉ राजेश रावल सुशील द्वारा संपादित पत्रिका संस्कृति संवाद और डॉ अनिल जूनवाल द्वारा रचित श्रीराम वंदना फोल्डर का लोकार्पण किया गया। हिंदी अध्ययनशाला, ललित कला अध्ययनशाला और पत्रकारिता एवं जनसंचार अध्ययनशाला के इस संयुक्त आयोजन में डॉ अरुणा दुबे, डॉ शैलेंद्र भारल, श्री शरद शर्मा, डॉ क्षमाशील मिश्रा, डॉ वीरेंद्र चावरे, डॉ राज बोरिया, डॉ अजय शर्मा, श्री लक्ष्मीनारायण सिंहरोडिया, डॉ हीना तिवारी, डॉ महिमा मरमट, अंजु खेड़े, कसरावद आदि सहित बड़ी संख्या में शिक्षकों, शोधकर्ताओं और विद्यार्थियों ने भाग लिया। 

संचालन शोधार्थी पूजा परमार ने किया। आभार प्रदर्शन ललित कला अध्ययनशाला के विभागाध्यक्ष प्रो जगदीश चंद्र शर्मा ने किया।

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