Skip to main content

"बुके नहीं बुक्स" : विक्रम विवि में विश्व पुस्तक दिवस पर प्रेरणादायक आयोजन

किताबें ज्ञान, संस्कृति और सकारात्मक परिवर्तन की कुंजी : प्रो. अर्पण भारद्वाज, कुलगुरु 

उज्जैन। विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के पंडित जवाहरलाल नेहरू व्यवसाय प्रबंध संस्थान में विश्व पुस्तक दिवस, विश्व पुस्तक कॉपीराइट दिवस एवं विश्व अंग्रेज़ी भाषा दिवस के संयुक्त अवसर पर एक प्रेरणादायक एवं रोचक कार्यक्रम का आयोजन हुआ। इस अवसर पर कुलगुरु प्रो. अर्पण भारद्वाज ने विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए कहा कि "पुस्तकें मित्रों में सबसे शांत और स्थिर होती हैं, वे सलाहकारों में सबसे सुलभ, बुद्धिमान, धैर्यवान और श्रेष्ठ होती हैं।"

प्रो. भारद्वाज ने अपने शैक्षणिक अनुभवों को साझा करते हुए यह भी कहा कि निःसंदेह पुस्तकें ज्ञानार्जन, मार्गदर्शन एवं परामर्श देने में विशेष भूमिका निभाती हैं। उन्होंने संस्थान द्वारा रचनात्मकता और नवाचार के क्षेत्र में किए जा रहे प्रयासों की सराहना की और विद्यार्थियों से आग्रह किया कि वे पुस्तकों के माध्यम से अपने व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास करें।

कार्यक्रम के दौरान पंडित जवाहरलाल नेहरू व्यवसाय प्रबंध संस्थान के निदेशक प्रो. डॉ. धर्मेंद्र मेहता ने माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के विचार "बुके नहीं बुक्स" का उल्लेख करते हुए कहा कि "साहित्य में तोप, टैंक और एटम से भी अधिक शक्ति होती है।" उन्होंने कहा कि पुस्तकें, अपने सभी रूपों में, हमें सीखने और आत्म-सशक्तिकरण का अवसर देती हैं।

कार्य परिषद सदस्य प्रो. डॉ. कामरान सुल्तान, डॉ. सचिन राय और डॉ. नयनतारा डामोर ने भी साहित्य के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा कि "साहित्य मानव मूल्यों में आस्था पैदा कर एक स्वस्थ एवं शांतिपूर्ण समाज की संरचना करता है और सकारात्मक परिवर्तन का मार्ग प्रशस्त करता है।"

इस अवसर पर विद्यार्थियों ने भी अपने विचार साझा किए। उन्होंने बताया कि विश्व पुस्तक दिवस, जिसे विश्व पुस्तक कॉपीराइट दिवस भी कहा जाता है, हर वर्ष 23 अप्रैल को पुस्तक-संस्कृति को बल देने और पढ़ने की प्रवृत्ति को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से मनाया जाता है। यह दिन अतीत और भविष्य के बीच एक कड़ी बनाता है और पीढ़ियों तथा संस्कृतियों के बीच पुल का कार्य करता है।

कार्यक्रम के अंत में प्रो. डॉ. कामरान सुल्तान (संकायाध्यक्ष) एवं प्रो. डॉ. धर्मेंद्र मेहता (निदेशक) ने संयुक्त रूप से "कम्युनिकेशन स्किल्स" और "आत्मवृत्त (बायोडाटा)" जैसे करिअर उपयोगी विषयों पर विद्यार्थियों के साथ एक बुक रीडिंग एवं प्रश्नोत्तरी परामर्श सत्र का भी आयोजन किया, जो विद्यार्थियों के लिए अत्यंत उपयोगी सिद्ध हुआ।

इस वर्ष विश्व पुस्तक दिवस 2025 की थीम "अपने तरीके से पढ़ें" रही, जो सभी आयु वर्ग के लोगों को उनकी रुचि के अनुसार किताबें चुनने और पढ़ने के लिए प्रोत्साहित करती है।

Comments

मध्यप्रदेश समाचार

देश समाचार

Popular posts from this blog

आधे अधूरे - मोहन राकेश : पाठ और समीक्षाएँ | मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे : मध्यवर्गीय जीवन के बीच स्त्री पुरुष सम्बन्धों का रूपायन

  आधे अधूरे - मोहन राकेश : पीडीएफ और समीक्षाएँ |  Adhe Adhure - Mohan Rakesh : pdf & Reviews मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा हिन्दी के बहुमुखी प्रतिभा संपन्न नाट्य लेखक और कथाकार मोहन राकेश का जन्म  8 जनवरी 1925 को अमृतसर, पंजाब में  हुआ। उन्होंने  पंजाब विश्वविद्यालय से हिन्दी और अंग्रेज़ी में एम ए उपाधि अर्जित की थी। उनकी नाट्य त्रयी -  आषाढ़ का एक दिन, लहरों के राजहंस और आधे-अधूरे भारतीय नाट्य साहित्य की उपलब्धि के रूप में मान्य हैं।   उनके उपन्यास और  कहानियों में एक निरंतर विकास मिलता है, जिससे वे आधुनिक मनुष्य की नियति के निकट से निकटतर आते गए हैं।  उनकी खूबी यह थी कि वे कथा-शिल्प के महारथी थे और उनकी भाषा में गज़ब का सधाव ही नहीं, एक शास्त्रीय अनुशासन भी है। कहानी से लेकर उपन्यास तक उनकी कथा-भूमि शहरी मध्य वर्ग है। कुछ कहानियों में भारत-विभाजन की पीड़ा बहुत सशक्त रूप में अभिव्यक्त हुई है।  मोहन राकेश की कहानियां नई कहानी को एक अपूर्व देन के रूप में स्वीकार की जाती ...

खाटू नरेश श्री श्याम बाबा की पूरी कहानी | Khatu Shyam ji | Jai Shree Shyam | Veer Barbarik Katha |

संक्षेप में श्री मोरवीनंदन श्री श्याम देव कथा ( स्कंद्पुराणोक्त - श्री वेद व्यास जी द्वारा विरचित) !! !! जय जय मोरवीनंदन, जय श्री श्याम !! !! !! खाटू वाले बाबा, जय श्री श्याम !! 'श्री मोरवीनंदन खाटू श्याम चरित्र'' एवं हम सभी श्याम प्रेमियों ' का कर्तव्य है कि श्री श्याम प्रभु खाटूवाले की सुकीर्ति एवं यश का गायन भावों के माध्यम से सभी श्री श्याम प्रेमियों के लिए करते रहे, एवं श्री मोरवीनंदन बाबा श्याम की वह शास्त्र सम्मत दिव्यकथा एवं चरित्र सभी श्री श्याम प्रेमियों तक पहुंचे, जिसे स्वयं श्री वेद व्यास जी ने स्कन्द पुराण के "माहेश्वर खंड के अंतर्गत द्वितीय उपखंड 'कौमारिक खंड'" में सुविस्तार पूर्वक बहुत ही आलौकिक ढंग से वर्णन किया है... वैसे तो, आज के इस युग में श्री मोरवीनन्दन श्यामधणी श्री खाटूवाले श्याम बाबा का नाम कौन नहीं जानता होगा... आज केवल भारत में ही नहीं अपितु समूचे विश्व के भारतीय परिवार ने श्री श्याम जी के चमत्कारों को अपने जीवन में प्रत्यक्ष रूप से देख लिया हैं.... आज पुरे भारत के सभी शहरों एवं गावों में श्री श्याम जी से सम्बंधित संस्थाओं...

दुर्गादास राठौड़ : जिण पल दुर्गो जलमियो धन बा मांझल रात - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा

अमरवीर दुर्गादास राठौड़ : जिण पल दुर्गो जलमियो धन बा मांझल रात। - प्रो शैलेन्द्रकुमार शर्मा माई ऐड़ा पूत जण, जेहड़ा दुरगादास। मार मंडासो थामियो, बिण थम्बा आकास।। आठ पहर चौसठ घड़ी घुड़ले ऊपर वास। सैल अणी हूँ सेंकतो बाटी दुर्गादास।। भारत भूमि के पुण्य प्रतापी वीरों में दुर्गादास राठौड़ (13 अगस्त 1638 – 22 नवम्बर 1718)  के नाम-रूप का स्मरण आते ही अपूर्व रोमांच भर आता है। भारतीय इतिहास का एक ऐसा अमर वीर, जो स्वदेशाभिमान और स्वाधीनता का पर्याय है, जो प्रलोभन और पलायन से परे प्रतिकार और उत्सर्ग को अपने जीवन की सार्थकता मानता है। दुर्गादास राठौड़ सही अर्थों में राष्ट्र परायणता के पूरे इतिहास में अनन्य, अनोखे हैं। इसीलिए लोक कण्ठ पर यह बार बार दोहराया जाता है कि हे माताओ! तुम्हारी कोख से दुर्गादास जैसा पुत्र जन्मे, जिसने अकेले बिना खम्भों के मात्र अपनी पगड़ी की गेंडुरी (बोझ उठाने के लिए सिर पर रखी जाने वाली गोल गद्देदार वस्तु) पर आकाश को अपने सिर पर थाम लिया था। या फिर लोक उस दुर्गादास को याद करता है, जो राजमहलों में नहीं,  वरन् आठों पहर और चौंसठ घड़ी घोड़े पर वास करता है और उस पर ही बैठकर बाट...