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डॉ अम्बेडकर का सन्देश सार्वभौमिक है, जो समानता और बन्धुत्व का मार्ग प्रशस्त करता है – प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा

राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना द्वारा आयोजित अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में हुआ भारतीय परंपरा में वैशाखी पर्व और डॉ भीमराव अंबेडकर के वैश्विक सन्देश पर मंथन

देश की प्रतिष्ठित संस्था राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना द्वारा आयोजित अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में भारतीय संस्कृति और परम्परा में वैशाखी पर्व पर मंथन हुआ। कार्यक्रम में डॉ भीमराव अंबेडकर के जीवन दर्शन और अवदान पर वक्ताओं ने प्रकाश डाला। संगोष्ठी के मुख्य वक्ता विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन के कुलानुशासक एवं हिंदी विभागाध्यक्ष प्रोफेसर शैलेंद्र कुमार शर्मा थे। मुख्य अतिथि नागरी लिपि परिषद नई दिल्ली के महामंत्री डॉ हरिसिंह पाल थे। विशिष्ट अतिथि भारत नॉर्वेजियन सांस्कृतिक फोरम के संस्थापक अध्यक्ष श्री सुरेश चंद्र शुक्ल शरद आलोक, ओस्लो नॉर्वे, संस्था के संगठन मंत्री डॉक्टर प्रभुलाल चौधरी, डॉ मुक्ता कान्हा कौशिक, रायपुर, डॉ मुक्ति शर्मा, श्रीमती श्वेता मिश्रा बरेली ने विचार व्यक्त किए। 

मुख्य व्याख्यान देते हुए प्रो शैलेन्द्र कुमार शर्मा ने कहा कि वैशाखी पर्व  ऋतु वैभव, प्रकृति राग और सांस्कृतिक विरासत का समन्वित पर्व है। इस पर्व पर मनुष्य प्रकृति के उल्लास को विविध गीत, संगीत,  और नृत्य के माध्यम से प्रकट करता है। वैशाखी पर्व को दक्षिण एशिया में कई नामों से पुकारा जाता है, लेकिन सभी स्थानों पर इसमें भारत की सनातन संस्कृति के दर्शन होते हैं। डॉ अंबेडकर का सन्देश सार्वभौमिक है, जो समानता और बन्धुत्व का मार्ग प्रशस्त करता है। उन्होंने लोकतांत्रिक व्यवस्था की मजबूती के लिए सामाजिक परिवर्तन की अलख जगाई। उनकी चिन्ताएँ हमें गहरे सामाजिक - सांस्कृतिक उत्तरदायित्व से जोड़ती हैं। उनका जीवन दर्शन क्रांतिकारी वैचारिकता एवं नैतिकता के सूत्रों पर आधारित है। भारतीय समाज के साथ-साथ संपूर्ण विश्व में जहां कहीं भी विषमतावादी भेदभाव मौजूद है, वहां डॉ. अम्बेडकर के दृष्टिकोण को चरितार्थ करने की आवश्यकता है। 

इस आयोजन में सम्मिलित मुख्य अतिथि डॉ हरिसिंह पाल ने अपने उद्बोधन में वैशाखी पर्व के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि यह पर्व सम्पूर्ण भारत वर्ष में मनाया जाता है। उन्होंने कहा कि डॉ भीमराव अंबेडकर ने स्वतंत्र भारत के लिए जो सपना देखा था, उसे साकार करने की आवश्यकता है। 

श्री सुरेश चंद्र शुक्ल शरद आलोक, ओस्लो नॉर्वे ने नॉर्वे में वैशाखी पर्व मनाने की परंपरा का परिचय देते हुए गीत की प्रस्तुति की।  

प्रस्तावना में डा प्रभु चौधरी जी ने कहा वैशाखी पर्व बहुत ही महत्वपूर्ण होता है। एक किसान के लिए फसलें सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण होती है, जिसके आने की प्रसन्नता में प्रत्येक साल वैशाखी पर्व मनाया जाता है। उन्होंने डॉ अम्बेडकर जी के समाज, संस्कृति तथा परम्परा पर प्रभाव की चर्चा की।

डॉ मुक्ता कौशिक रायपुर ने कहा कि वैशाखी पर्व का भारत की प्राचीन परम्परा में महत्वपूर्ण स्थान है। उन्होंने पंजाब और अमृतसर की सहज संस्कृति का वर्णन किया।

मुक्ति शर्मा ने कहा कि पर्वों के माध्यम से आज भी भारतीय संस्कृति की जीवंतता के दर्शन होते हैं। भारतीय संस्कृति और सभी धर्म से जुड़े लोग वैशाखी पर्व को अलग अलग नाम से मनाते हैं। 

संगोष्ठी के संयोजक डॉ प्रभु चौधरी, राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना थे। कार्यक्रम की सूत्रधार श्रीमती श्वेता मिश्रा बरेली ने सरस्वती वंदना से कार्यक्रम की शुरुआत की। अंत में अध्यक्षीय भाषण संस्थाध्यक्ष डॉ शैलेंद्रकुमार शर्मा ने दिया। संचालन श्रीमती श्वेता मिश्रा बरेली ने किया तथा आभार प्रदर्शन डॉ मुक्ता कान्हा कौशिक रायपुर ने किया।

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