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आधुनिक साहित्य में उतरे हैं लोक संस्कृति के विविध उपादानों के साथ सामाजिक - सांस्कृतिक मूल्य - कुलानुशासक प्रो शर्मा

लोक संस्कृति और आधुनिक साहित्य पर केंद्रित राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन हुआ विक्रम विश्वविद्यालय में 

सुधी विदुषी प्रो सुचित्रा मलिक का हुआ सारस्वत सम्मान, विश्व रंग अंतरराष्ट्रीय हिंदी ओलम्पियाड 2025 के विशेष पोस्टर का लोकार्पण  हुआ

उज्जैन। विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन में  लोक संस्कृति और आधुनिक साहित्य पर केंद्रित राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। वाग्देवी भवन में सम्पन्न इस कार्यक्रम की अध्यक्षता विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के कुलानुशासक एवं विभागाध्यक्ष प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा ने की। मुख्य अतिथि गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय हरिद्वार की पूर्व हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो सुचित्रा मलिक एवं सौराष्ट्र विश्वविद्यालय के हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो बी के कलासवा थे। कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि ललित कला नृत्य संगीत एवं नाट्य अध्ययनशाला के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर जगदीश चंद्र शर्मा, वरिष्ठ पुरातत्ववेत्ता डॉक्टर नारायण व्यास, भोपाल, डॉक्टर सीएल शर्मा रतलाम, शिक्षा मंत्रालय दिल्ली सरकार की उप निदेशक डॉ नीरज ने विचार व्यक्त किए। इस अवसर पर सुधी विदुषी प्रो सुचित्रा मलिक, हरिद्वार को शॉल, साहित्य एवं पुष्पमाला अर्पित कर उनका सारस्वत सम्मान किया गया। कार्यक्रम में विश्व रंग फाउंडेशन, रवीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय, भोपाल, वनमाली सृजन पीठ द्वारा संयुक्त तत्वावधान में आयोजित होने वाले विश्व रंग अंतरराष्ट्रीय हिंदी ओलम्पियाड 2025 के विशेष पोस्टर का लोकार्पण अतिथियों द्वारा किया गया। 

विक्रम विश्वविद्यालय के कुलानुशासक एवं हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा ने संगोष्ठी में उद्गार व्यक्त करते हुए कहा कि भारतीय लोक संस्कृति की अविरल धारा सदियों से प्रवहमान है, जिसमें संवेदना, ज्ञान और अनुभव की अक्षय निधि है। आधुनिक साहित्य में लोक संस्कृति के विविध उपादानों के साथ सामाजिक - सांस्कृतिक मूल्यों के परंपरागत रूप उतरे हैं, जो जीवन को नई गति और लय देते हैं। भारतीय लोक एवं जनजातीय समुदाय सांस्कृतिक दृष्टि से अत्यंत समृद्ध है। अनेक कथाकारों और कवियों ने साहित्य में स्थान देकर विलुप्त होती जा रही लोक संस्कृति के मूल्यवान तत्वों को जीवन्त किया है। लोक संस्कृति की संरक्षण के साथ उसके सामने मौजूद चुनौतियों की अभिव्यक्ति आधुनिक साहित्य में हुई है। हिंदी के वैश्विक प्रसार में सौ से अधिक देशों में बसे भारतवंशियों ने अविस्मरणीय भूमिका निभाई है। नए दौर में इस दिशा में व्यापक प्रयासों की आवश्यकता है, जिसमें विश्वरंग हिंदी ओलंपियाड महत्वपूर्ण कदम सिद्ध होगा। इस आयोजन के अंतर्गत ओलम्पियाड विजेताओं को पुरस्कार प्रदान किए जाएंगे। 

मुख्य अतिथि प्रो. सुचित्रा मलिक, हरिद्वार उत्तराखंड ने अपने वक्तव्य में लोक संस्कृति से जुड़े आधुनिक हिंदी लेखकों पर बात की और बताया कि वृन्दावनलाल वर्मा ने अपने साहित्य में बुंदेलखंड की लोक संस्कृति को जीवित रखा है। आंतरिक और सीमांत जाति की बात करते हुए कहा कि सीमांत जाति का कार्य था देश की सीमा पर रह कर बाहरी आक्रांताओं के आने पर ढोल आदि बजा कर सूचित करना। ऐसे ही हर जनजाति का कुछ न कुछ कार्य हुआ करता था। लेखक अपने साहित्य में लोक जीवन को जीवंत करता है, ऐसे रचनाकारों में कृष्णा सोबती, उषा किरण खान, चंद्रकांता, पद्मा सचदेवा, मधु कांकरिया, आदि ने अपने साहित्य के माध्यम से लोक जीवन को चित्रित किया है। प्रकृति हमारी मां है। प्रकृति की हर वस्तुओं का हमें सदुपयोग करना चाहिए उनका दोहन नहीं। जिन शहरों के किनारे पर नदियां नहीं होती वहां की गन्दगी का भी कहीं निपटान किया जाता है, तो फिर नदी किनारों के शहरों की गन्दगी नदियों में क्यों बहाना है इस विषय पर हमें सोचना चाहिए और स्वच्छ बनाए रखनी चाहिए।

प्रो. बी. के. कलासवा, गुजरात ने अपने उद्बोधन में कहा कि आज हम लोक संस्कृति से दूर होते जा रहे हैं। लोक परंपराएं, लोककथाएं, लोक गीत संपूर्ण जीवन की उपलब्धि हैं, लेकिन अब हम इससे दूर हो गए है, इस सम्बन्ध में हमें सोचना चाहिए। सामाजिक और सांस्कृतिक आधार से भी देखें तो लोक संस्कृति में बहुत अनुसंधान किए जा सकते हैं। लोक संस्कृति भारत की आत्मा है। लोक परम्पराओं को हम विज्ञान की कसौटी पर भी कस कर देखें तो यह खरी उतरती हैं।

प्रो जगदीशचंद्र शर्मा ने कहा कि लोक संस्कृति को आधुनिक कथा साहित्य में जीवन्त अभिव्यक्ति मिली है। हिंदी साहित्य के बड़े लेखक नरेश मेहता, राजिन्दर सिंह बेदी आदि ने अपने उपन्यासों में लोक संस्कृति को चित्रित कर महत्वपूर्ण कार्य किया है।

डॉ. सी. एल. शर्मा, रतलाम ने अपने उद्बोधन में लोक संस्कृति में लोक तत्वों की विवेचना करते हुए कहा कि किसी समाज की जड़ें जितनी गहरी होती है, वह समाज उतना समृद्ध होता है। किसी भी साहित्य को अगर लोगों तक पहुँचाना है तो वह बिना लोकतत्व के नहीं पहुंच सकता। लोक संस्कृति के अनुसंधान में शिल्प और संवेदना बहुत आवश्यक है।

पुरातत्ववेत्ता डॉ. नारायण व्यास ने अपने उद्बोधन में कहा कि सांस्कृतिक और लोक संबंधित गाथाएं, कथाएं पुरातत्व के संग्रहों में भी होती हैं जो हमें लोक से जोड़े रखती हैं।

विश्वविद्यालय की हिंदी अध्ययनशाला, पत्रकारिता एवं जनसंचार अध्ययनशाला एवं ललित कला, नाट्य एवं संगीत अध्ययनशाला के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित इस कार्यक्रम में कलागुरु श्री लक्ष्मीनारायण सिंहरोड़िया, डॉ हीना तिवारी, डॉ महिमा मरमट आदि बड़ी संख्या में साहित्यकार, संस्कृतिकर्मी, शिक्षकों, शोधार्थी और विद्यार्थियों ने भाग लिया। 

संचालन शोधार्थी पूजा परमार ने किया तथा आभार प्रदर्शन ललित कला अध्ययनशाला के विभागाध्यक्ष प्रो जगदीश चंद्र शर्मा ने किया।

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