नैसर्गिक सौन्दर्य, श्री और समृद्धि से सुसम्पन्न थी कालिदास युग की उज्जयिनी ✍️ प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा भारत की सांस्कृतिक धारा के शिखर रचनाकार महाकवि कालिदास और इतिहास, धर्म संस्कृति की रंगस्थली, उज्जयिनी का गहरा संबंध है। कालिदास की चर्चा उज्जयिनी के बिना और उज्जयिनी की चर्चा कालिदास के बिना संभव नहीं है। महाकवि कालिदास मात्र सम्राट, विक्रमादित्य ही नहीं, सम्पूर्ण भारत की रत्न सभा के अद्वितीय रत्न कहे जा सकते हैं। वैसे उनके जन्म स्थान और काल के संबंध में पर्याप्त मतभेद रहा है, किन्तु यह एक सर्वस्वीकार्य तथ्य है कि उज्जयिनी के प्रति उनके, मन में गहरा अनुराग और अभिमान था। कालिदास की कृतियों के अन्तः और बाह्य साक्ष्य इस बात को प्रमाणित करते हैं कि यह नगरी उनकी दिव्य प्रेरणा भूमि और कर्मस्थली रही है। साथ ही इस बात के भी पर्याप्त प्रमाण मिलते हैं कि महाकवि कालिदास का विक्रमादित्य के साथ स्नेह और साहचर्य का संबंध था। कालिदास के काल को लेकर पर्याप्त विमर्श हुआ है। इस संबंध में दो ही मत शेष है, पहले के अनुसार उनका समय पहली शताब्दी ईस्वी पूर्व था, जबकि दूसरा मत उनका काल चतुर्थ शताब्दी ईस...